पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शस्त्री की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
अब लाल बहादुर शास्त्री के परिवार वालों ने भी सरकार से मांग की है कि शास्त्री जी की मौत से जुड़ी फाइलें सार्वजनिक की जाएं। शास्त्री जी के बेटे अनिल शास्त्री ने कहा है कि जब अब सुभाष चन्द्र बोस से जुड़ी फाइल सार्वजनिक की जा सकती है तो फिर शास्त्रीजी की मृत्य से जुड़ी फाइल क्यों नहीं?
देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत रहस्यमय हालात में रूस के ताशकंद में 11 जनवरी 1966 को हो गई थी। उनकी मौत पाक के साथ ताशकंद समझौते के बाद हो गई। 1965 के युद्ध में भारत की पाक पर विजय के बाद तात्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री रूस गए थे।
अनिल शास्त्री कहते हैं कि उस वक्त तो मैं सिर्फ 17 साल का था लेकिन मां ने बताया था कि जब शास्त्री जी का पार्थिव शरीर दिल्ली आया तो उस वक्त उनका चेहरा नीला पड़ गया था और आंख के पास सफेद धब्बे पड़ गए थे। मैंने भी खुद देखा था। मां ने अपने करीबियों से इस बात को कहा भी कि शास्त्री जी की मौत प्राकृतिक नहीं लग रही, बावजूद उस वक्त ना तो कोई जांच कमीशन बैठाया गया और ना ही रूस में कोई पोस्टमार्ट्म हुआ था।
इतना ही नहीं अनिल कहते हैं कि हमारा संदेह तब और बढ़ गया जब पता चला कि शास्त्री जी को ताशकंद से 20 किलोमीटर दूर ठहराया गया जहां ना कमरे में कोई घंटी था और ना ही कोई टेलीफोन। जबकि देश के बाकी प्रतिनिधिमंडल को ताशकंद में ठहराया गया था।
इतना ही नही 2012 में एक आरटीआई से खुलासा हुआ कि सरकार इसलिए शास्त्री जी से जुड़े फाइल को इसलिए खुलासा नहीं करना चाहती क्योंकि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ एक देश के साथ संबध बिगड़ जाने का खतरा था। अब जबकि सरकार पहली बार 1965 में पाकिस्तान पर मिली जीत का स्वर्ण जंयति समारोह मना रही तो परिवार वालों को उम्मीद है कि शायद मोदी सरकार शास्त्री जी की मौत से जुड़े रहस्य पर से पर्दा उठाए।
देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत रहस्यमय हालात में रूस के ताशकंद में 11 जनवरी 1966 को हो गई थी। उनकी मौत पाक के साथ ताशकंद समझौते के बाद हो गई। 1965 के युद्ध में भारत की पाक पर विजय के बाद तात्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री रूस गए थे।
अनिल शास्त्री कहते हैं कि उस वक्त तो मैं सिर्फ 17 साल का था लेकिन मां ने बताया था कि जब शास्त्री जी का पार्थिव शरीर दिल्ली आया तो उस वक्त उनका चेहरा नीला पड़ गया था और आंख के पास सफेद धब्बे पड़ गए थे। मैंने भी खुद देखा था। मां ने अपने करीबियों से इस बात को कहा भी कि शास्त्री जी की मौत प्राकृतिक नहीं लग रही, बावजूद उस वक्त ना तो कोई जांच कमीशन बैठाया गया और ना ही रूस में कोई पोस्टमार्ट्म हुआ था।
इतना ही नहीं अनिल कहते हैं कि हमारा संदेह तब और बढ़ गया जब पता चला कि शास्त्री जी को ताशकंद से 20 किलोमीटर दूर ठहराया गया जहां ना कमरे में कोई घंटी था और ना ही कोई टेलीफोन। जबकि देश के बाकी प्रतिनिधिमंडल को ताशकंद में ठहराया गया था।
इतना ही नही 2012 में एक आरटीआई से खुलासा हुआ कि सरकार इसलिए शास्त्री जी से जुड़े फाइल को इसलिए खुलासा नहीं करना चाहती क्योंकि इससे राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ एक देश के साथ संबध बिगड़ जाने का खतरा था। अब जबकि सरकार पहली बार 1965 में पाकिस्तान पर मिली जीत का स्वर्ण जंयति समारोह मना रही तो परिवार वालों को उम्मीद है कि शायद मोदी सरकार शास्त्री जी की मौत से जुड़े रहस्य पर से पर्दा उठाए।
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