जानिए कैसे नया वॉरियर ड्रोन हवाई युद्ध में भारत का पलड़ा भारी कर पूरी तस्वीर बदल देगा

वॉरियर (Warrior) ड्रोन स्वदेशी कार्यक्रम (CATS) यानी कांबैट एयर टीमिंग सिस्टम का हिस्सा है. यह मानव और मानवरहित प्लेटफॉर्म का बेहद सटीक मिश्रण है, जो दुश्मन के बेहद चौकसी भरे हवाई क्षेत्र को भी भेद देगा.

जानिए कैसे नया वॉरियर ड्रोन हवाई युद्ध में भारत का पलड़ा भारी कर पूरी तस्वीर बदल देगा

दो मानवरहित वॉरियर ड्रोन की हल्के लड़ाकू विमान तेज के साथ उड़ान भरने की एनिमेटेड तस्वीर

नई दिल्ली:

भारत का सबसे पहला सेमी स्टील्थ ड्रोन (Indigenous Drone Warrior) का मॉडल भी बेंगलुरु में अगले हफ्ते होने वाले मेगा एयर सो एयरो इंडिया में पेश किया जाएगा. वॉरियर (Warrior) नाम का ड्रोन स्वदेशी कार्यक्रम (CATS) यानी कांबैट एयर टीमिंग सिस्टम का हिस्सा है. यह मानव और मानवरहित प्लेटफॉर्म का बेहद सटीक मिश्रण है, जो दुश्मन के बेहद चौकसी भरे हवाई क्षेत्र को भी भेद देगा. 

सामान्य शब्दों में कहें तो वॉरियर ड्रोन इस तरह से डिजाइन किया जा रहा है कि वह स्वदेशी हल्के लड़ाकू विमान तेजस कांबैट एय़रक्राफ्ट (Tejas combat aircraft ) के साथ उड़ाया जा सके. जो युद्ध के मैदान में तेजस की रक्षा करेगा और दुश्मन से बराबरी का मुकाबला भी करेगा.

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वॉरियर का पहला प्रोटोटाइम 3 से 5 सा के भीतर उड़ान भरने की उम्मीद है. हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड  (HAL) की ओर से इसके लिए वित्तीय मदद दी जा रही है.CATS प्रोग्राम के तहत देश में अगली पीढ़ी के कई हथियार और उपकरण विकसित किए जा रहे हैं. 

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प्रोजेक्ट से जुड़े एक सूत्र ने कहा, एक तेजस के साथ कई वॉरियर ड्रोन को संचालित किया जा सकेगा. ड्रोन के पीछे आइडिया है कि हर हवाई मिशन पूरी तरह सफल रहे और पायलट की जिंदगी सुरक्षित रहे. लिहाजा पायलट के साथ ड्रोन की पूरी कमांड रहेगी, जो उसके सुरक्षा कवच का काम करेगी. वॉरियर हवा से हवा में और हवा से सतह पर मार करने वाली मिसाइलों से लैस होगा. ताकि हवा और जमीन दोनों जगह पर दुश्मन को जवाब दिया जा सके. 

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वॉरियर (The Warrior) पूरी तरह से तो स्टील्थ विमान नहीं है. स्टील्थ विमान रडारों की पकड़ में भी नहीं आते. मौजूदा निगरानी सिस्टमों के जरिये उन्हें पकड़ पाना बेहद मुश्किल होता है. मौजूदा समय में हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड , जो वॉरियर ड्रोन युद्धक प्रणाली के डिजाइन, डेवलपमेंट और इंटीग्रेशन से जुड़े महत्वपूर्ण हिस्सों पर पिछले 5 साल से काम कर रहा है. वॉरियर ड्रोन भी लो ऑर्ब्जवर प्लेटफॉर्म पर तैयार किया जा रहा है और इसके रडार की पकड़ में आना मुश्किल होगा.
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द हंटर ड्रोन भी नई डिजाइन बनाने और विकसित करने की प्रक्रिया का हिस्सा रहा है. हंटर क्रूज मिसाइल भी इसमें शामिल है, जो 200 किलोमीटर तक के टारगेट पर निशाना साध सकती है. साथ ही स्वार्म ड्रोन (ड्रोनों के झुंड) के सिस्टम ALFA-S को भी विकसित किया जा रहा है, ताकि एक ही समय पर एक साथ कई लक्ष्यों की आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग के जरिये पहचान कर निशाना साधा जा सके. ताकि अलग-अलग लक्ष्यों की आसानी से पहचान भी हो सके.