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This Article is From Dec 24, 2020

बिशन सिंह बेदी के समर्थन में कीर्ति आजाद, कोटला में जेटली की प्रतिमा लगाने का किया विरोध, बताई ये वजह...

"सब दबी-दबी जुबान में बोलते हैं, बिशन सिंह बेदी जैसे लोग बहुत कम हैं, वे एक लड़ाका इंसान हैं और मैं उनमें अपने पिता को देखता हूं. उन्होंने सच को सच बोलना सिखाया है."

कीर्ति आजाद ने NDTV से खास बातचीत की.

नई दिल्ली:

Kirti Azad On Statue Of Arun Jaitley : दिल्ली के अरुण जेटली स्टेडियम (फिरोजशाह कोटला मैदान) पर डीडीसीए के दिवंगत अध्यक्ष अरुण जेटली (Arun Jaitley) की प्रतिमा लगाने के फैसले से खफा महान स्पिनर बिशन सिंह बेदी (Bishan Singh Bedi) ने क्रिकेट संघ से उनका नाम दर्शक दीर्घा से हटाने के लिये कहा है. उनके नाम पर दीर्घा 2017 में बनाई गई थी. साथ ही उन्होंने डीडीसीए की सदस्या भी छोड़ दी है. जेटली की प्रतिमा लगाने के फैसले पर विवाद गहराता जा रहा है. इस मुद्दे पर डीडीसीए के ख‍िलाफ लंबी लड़ाई लड़ने वाले पूर्व क्रिकटर कीर्ति आजाद (Kirti Azad) ने एनडीटीवी से खास बातचीत की.

कीर्ति आजाद का कहना है,  "बिशन सिंह बेदी विश्व के सबसे बेहतरीन बाएं हाथ के गेंदबाज़ रहे. भारत के कप्तान रहे. युवा खिलाड़ी लैजेंड से प्रेरणा लेते हैं. स्टेडियम में महान खिलाड़ियों की प्रतिमा लगाना चाहिए. "

"400 करोड़ की गड़बड़ियां हुई थीं"
कीर्ति आजाद ने स्टेडियम में अरुण जेटली के समय में डीडीसीए में हुई गड़बड़ियों की बात दोहराता हुए कहा, "अरुण जेटली के रहते कई सारी गड़बड़ियां हुई थी. मैं ये नहीं कहता कि वे व्यक्तिगत रूप से उसमें थे. लेकिन उनके समय में क़रीब 400 करोड़ की गड़बड़ियां हुई थीं. मैं बिशन सिंह जी की भावना की कद्र करता हूं. स्टेडियम में स्पोर्ट्समैन की ही प्रतिमा ही होनी चाहिए. बिशन सिंह बेदी मन की बात हमेशा सामने रखते हैं. उन्होंने अपनी पीड़ा लोगों के सामने रखी."

"9 साल से ज्यादा पद पर नहीं रह सकते"
पूर्व भारतीय खिलाड़ी ने कहा कि क्रिकेट एडवाइज़री कमेटी बनी तो ये सुझाव मैंने ही दिए थे.अब टाइम लिमिट हो गया है. 9 साल से ज़्यादा आप नहीं रह सकते. उन्होंने कहा, "क्या 70 साल की लिमिट रहेगी? 40-45 साल तक लोग अपने पद पर रहा करते थे. खेल के अंदर राजनीति आ गई, लेकिन राजनीति में खेल की भावना आ जाए तो मज़ा आ जाए."

"40-45 करोड़ साल के दिए गए , कभी ऑडिट नहीं हुआ"
कीर्ति आजाद ने ये भी कहा कि क्रिकेट में टीवी के आने के बाद से गड़बड़ियां शुरू हुई, उन्होंने  कहा, "जहां गुड़ होगा, वहां मक्खी आएगी ही. बहुत लोगों ने अच्छा काम किया. लेकिन एक मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है. एसोसिएशन को 40-50 करोड़ साल के दिए गए. लेकिन कभी कोई आडिट नहीं हुआ. एसोसिएशन हमेशा घाटा ही दिखाते थे. ऐसी चीज़ों ने राजनीतिज्ञों का नाम खराब किया. वे चाहें तो निस्वार्थ भाव से सेवा कर सकते हैं."

"लोग पद का दुरुपयोग करते हैं"
कीर्ति आजाद ने पूर्व भारतीय कप्तान और बीसीसीआई के वर्तमान अध्यक्ष सौरव गांगुली की तरफ इशारा करते हुए कहा, "क्रिकेट एक लोकप्रिय खेल है. इसमें बड़े बड़े बिजनेसमैन आते हैं, पुलिस और सरकारी अधिकारी आते हैं. ये लोग क्रिकेट के साथ खुद को जुड़ा हुआ देखना चाहते हैं. एसे हालात में एसोसिएशन के अंदर लोग अपने पद का दुरुपयोग करते हैं. कॉन्फ्लिक्ट आफ़ इंट्रेस्ट देखिए, एक कंपनी ने स्पान्सर किया, एक गेमिंग ऐप था, जिसके अंदर पैसा कमाने की बात थी. उसी की एक प्रतिस्पर्धी कंपनी के साथ अध्यक्ष ने खुद को जोड़ लिया. तो ये अच्छा नहीं दर्शाता था. सौरव को हम सभी सलाम करते हैं. वे टाइगर पटौदी की याद दिलाते हैं तो अगर तुलना करें तो लगता है कि स्तर थोड़ा गिरा है. 

"मैं खेल के साथ दगाबाज़ी नहीं कर सकता"
83 विश्व विजेता टीम के हिस्सा रहे खिलाड़ी ने आगे कहा, "मैं दिल से एक खिलाड़ी हूं और स्वेच्छा से राजनीति में आया हूं. मैंने कभी भी अपने स्वार्थ को खेल से आगे नहीं रखा. खेल के चलते ही लोग मुझे जानते हैं. 83 में हमने विश्व कप जीता. खेल ने ही मुझे सबकुछ दिया. मैं खेल के साथ दगाबाज़ी नहीं कर सकता. मैं चाहता हूं कि राजनीति में खेल की भावना होनी चाहिए. सब दबी-दबी जुबान में बोलते हैं, बिशन सिंह बेदी जैसे लोग बहुत कम हैं, वे एक लड़ाका इंसान हैं और मैं उनमें अपने पिता को देखता हूं. उन्होंने सच को सच बोलना सिखाया है."

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