प्रतीकात्मक तस्वीर
श्रीनगर:
अज्ञात बंदूकधारियों द्वारा अलगाववादियों के सक्रिय समर्थकों और पूर्व आतंकवादियों की हत्याओं के बाद पूर्व आतंकवादियों और अलगाववादियों से सहानुभूति रखने वालों के बीच अफरातफरी मच गई है और वे कश्मीर के सोपोर कस्बे से पलायन करने लगे हैं।
सोपोर कस्बे में पिछले छह दिनों के दौरान अब तक चार पूर्व आतंकवादियों और अलगाववादी आंदोलन के सक्रिय समर्थकों की हत्या की जा चुकी है। सोपोर के मुंडजी में हरकत-उल-मुजाहिदीन समूह से जुड़े पूर्व आतंकवादी एजाज अहमद रेशी की सोमवार को हत्या कर दी गई।
पूर्व आतंकवादियों और अलगाववादियों के सक्रिय समर्थकों के बीच डर का कारण यह है कि ये हत्याएं घाटी में 'इखवानी काल' की याद दिलाती हैं, जिस दौरान दर्जनभर अलगाववादी समर्थक और आतंकवादियों की हत्या हुई थी।
कुक्का पारे, जावेद शाह, यूसुफ गदरू, आजाद नबी सहित कई सारे भारत समर्थक आतंकवादी कमांडरों की बाद में रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या कर दी गई थी।
सरकार समर्थक आतंकवादियों को इख्वानी कहा जाता है, क्योंकि सबसे पहले इस तरह का समूह जो सामने आया था, वह 1990 के मध्य में कुका पारे के नेतृत्व में इखवान-उल-मुस्लिमून था। पारे ने बाद में राजनीतिक पार्टी, अवामी लीग का गठन किया और उत्तर कश्मीर के सोनावरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की।
इससे पहले 14 सितंबर, 2003 में पारे की अज्ञात बंदूकधारियों ने बंदीपोरा जिले के हाजिन इलाके में हत्या कर दी थी। हालांकि, 1990 के दशक के अंत में श्रीनगर में सरकार समर्थक बंदूकधारियों की ज्यादा उपस्थिति नहीं थी। बल्कि उत्तर और दक्षिण के खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के बंदूकधारियों की उपस्थिति ज्यादा थी।
इन बंदूकधारियों ने सेना और राज्य पुलिस के विशेष संचालन समूह (एसओजी) के आंख और कान बनने के लिए सुरक्षाबलों के साथ मिलकर काम किया।
खुफिया अधिकारियों का मानना है कि इन सरकार समर्थक बंदूकधारियों ने कश्मीर में अलगाववादी हिंसा की रीढ़ तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये बंदूकधारी लकड़ी तस्करी, जबरन वसूली, डराने-धमकाने और दुष्कर्म में शामिल अनधिकारिक मिलीशिया बन गए थे।
एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी का कहना है कि अलगाववादी समूहों के कम से कम तीन दर्जन पूर्व राजनीतिक कार्यकर्ता और पूर्व आतंकवादियों ने पिछले चार दिनों में अज्ञात बंदूकधारियों के डर की वजह से सोपोर और इसके आसपास के क्षेत्रों को छोड़ दिया है।
वरिष्ठ अलगाववादी नेताओं सैयद अली गिलानी, मीरवाइज़ उमर फारुख और अन्य ने इन हत्याओं के लिए भारतीय एजेंटों को जिम्मेदार ठहराया है।
सोपोर कस्बे में पिछले छह दिनों के दौरान अब तक चार पूर्व आतंकवादियों और अलगाववादी आंदोलन के सक्रिय समर्थकों की हत्या की जा चुकी है। सोपोर के मुंडजी में हरकत-उल-मुजाहिदीन समूह से जुड़े पूर्व आतंकवादी एजाज अहमद रेशी की सोमवार को हत्या कर दी गई।
पूर्व आतंकवादियों और अलगाववादियों के सक्रिय समर्थकों के बीच डर का कारण यह है कि ये हत्याएं घाटी में 'इखवानी काल' की याद दिलाती हैं, जिस दौरान दर्जनभर अलगाववादी समर्थक और आतंकवादियों की हत्या हुई थी।
कुक्का पारे, जावेद शाह, यूसुफ गदरू, आजाद नबी सहित कई सारे भारत समर्थक आतंकवादी कमांडरों की बाद में रहस्यमय परिस्थितियों में हत्या कर दी गई थी।
सरकार समर्थक आतंकवादियों को इख्वानी कहा जाता है, क्योंकि सबसे पहले इस तरह का समूह जो सामने आया था, वह 1990 के मध्य में कुका पारे के नेतृत्व में इखवान-उल-मुस्लिमून था। पारे ने बाद में राजनीतिक पार्टी, अवामी लीग का गठन किया और उत्तर कश्मीर के सोनावरी विधानसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत दर्ज की।
इससे पहले 14 सितंबर, 2003 में पारे की अज्ञात बंदूकधारियों ने बंदीपोरा जिले के हाजिन इलाके में हत्या कर दी थी। हालांकि, 1990 के दशक के अंत में श्रीनगर में सरकार समर्थक बंदूकधारियों की ज्यादा उपस्थिति नहीं थी। बल्कि उत्तर और दक्षिण के खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के बंदूकधारियों की उपस्थिति ज्यादा थी।
इन बंदूकधारियों ने सेना और राज्य पुलिस के विशेष संचालन समूह (एसओजी) के आंख और कान बनने के लिए सुरक्षाबलों के साथ मिलकर काम किया।
खुफिया अधिकारियों का मानना है कि इन सरकार समर्थक बंदूकधारियों ने कश्मीर में अलगाववादी हिंसा की रीढ़ तोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ये बंदूकधारी लकड़ी तस्करी, जबरन वसूली, डराने-धमकाने और दुष्कर्म में शामिल अनधिकारिक मिलीशिया बन गए थे।
एक वरिष्ठ खुफिया अधिकारी का कहना है कि अलगाववादी समूहों के कम से कम तीन दर्जन पूर्व राजनीतिक कार्यकर्ता और पूर्व आतंकवादियों ने पिछले चार दिनों में अज्ञात बंदूकधारियों के डर की वजह से सोपोर और इसके आसपास के क्षेत्रों को छोड़ दिया है।
वरिष्ठ अलगाववादी नेताओं सैयद अली गिलानी, मीरवाइज़ उमर फारुख और अन्य ने इन हत्याओं के लिए भारतीय एजेंटों को जिम्मेदार ठहराया है।
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