कर्नाटक हाईकोर्ट ने मंगलवार को तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की जमानत याचिका खारिज कर दी। खचाखच भरे अदालत कक्ष में अपना फैसला सुनाते हुए जज ने कहा कि तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री को जमानत देने का कोई आधार नहीं है। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार से मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है और इससे आर्थिक असंतुलन पैदा होता है।
फिल्म अभिनेत्री से राजनेता बनीं 66-वर्षीय जयललिता को बंगलौर की एक अदालत द्वारा आय से अधिक संपत्ति रखने के मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद पिछले सप्ताह गिरफ्तार किया गया था।
हालांकि कर्नाटक हाईकोर्ट में जारी सुनवाई के दौरान मंगलवार को सरकारी वकील (अभियोजन पक्ष के वकील) ने जयललिता को शर्तों के साथ ज़मानत दिए जाने का विरोध नहीं किया, और कहा कि इस तरह शर्तों सहित ज़मानत प्रदान किए जाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
विशेष लोक अभियोजक ने अदालत से कहा कि वह जयललिता की जमानत का विरोध नहीं करते, इस पर जेल के पास और अदालत के पास एकत्रित अन्नाद्रमुक के समर्थक उनकी रिहाई का अनुमान लगाकर जश्न मनाने लगे। लेकिन जब फैसला सुनाया गया, तो उन्हें इस पर भरोसा नहीं हुआ। इस फैसले के खिलाफ जयललिता के सुप्रीम कोर्ट जाने के बारे में पूछे जाने पर जयललिता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी ने कहा कि मेरा मुवक्किल (भविष्य के बारे में) फैसला करेगा।
अदालत ने जयललिता की करीबी शशिकला और उनके रिश्तेदारों, दत्तक पुत्र वीएन सुधाकरण और इलावरासी की जमानत याचिकाएं भी खारिज कर दीं। इन लोगों को भी 18 साल पुराने मामले में चार-चार साल की सजा हुई है। जेठमलानी ने चारा घोटाले में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई राहत वाले फैसले का हवाला देते हुए अपनी दलीलों में जयललिता को तुरंत जमानत दिए जाने का पुरजोर समर्थन किया। हालांकि अदालत ने जेठमलानी की दलीलें स्वीकार नहीं कीं।
न्यायाधीश ने कहा कि लालू प्रसाद ने शीर्ष अदालत द्वारा जमानत मंजूर किए जाने से पहले जेल में 10 महीने गुजारे थे। जेठमलानी ने इससे पहले जयललिता को चार साल के कारावास की सजा सुनाने वाली विशेष अदालत की सजा पर रोक लगाने का भी अनुरोध किया।
(इनपुट भाषा से भी)
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