फ्रांस ने 36 राफेल विमानों की खरीद (Rafale Deal) की भारत की घोषणा के बाद अनिल अंबानी (Anil Ambani) की अगुवाई वाली रिलायंस कम्युनिकेशन्स की एक अनुषंगी (अधीनस्थ अथवा सहायक कंपनी) कंपनी के 14.37 करोड़ यूरो का कर माफ किया था. फ्रांस के एक प्रमुख समाचार पत्र ला मोंदे ने ऐसा दावा किया है. इस दावे के बाद अब मोदी सरकार विपक्षियों के निशाने पर आ गई है. बेगूसराय से सीपीआई प्रत्याशी और जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष रह चुके कन्हैया कुमार ने भी हमला बोला है. कन्हैया कुमार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगाया है कि उनका दोस्त टैक्स नहीं चुका पा रहा था, इसलिए उन्होंने टैक्स ही माफ करवा दिया.
बेगूसराय से लोकसभा चुनाव 2019 में किस्मत आजमा रहे कन्हैया ने ट्वीट कर कहा कि 'दोस्त टैक्स नहीं चुका पा रहा था, इसलिए चौकीदार ने विमान तिगुनी कीमत पर ख़रीदकर बेचने वाले से टैक्स माफ़ करवा लिया. मतलब चौकीदार ने दोस्त को देश से बड़ा माना. राफ़ेल डील की नई ख़बर तो यही बताती है. साफ़ दिख रहा है कि राफ़ेल का रास्ता जेल की तरफ़ जा रहा है.'
दोस्त टैक्स नहीं चुका पा रहा था, इसलिए चौकीदार ने विमान तिगुनी कीमत पर ख़रीदकर बेचने वाले से टैक्स माफ़ करवा लिया। मतलब चौकीदार ने दोस्त को देश से बड़ा माना। राफ़ेल डील की नई ख़बर तो यही बताती है। साफ़ दिख रहा है कि राफ़ेल का रास्ता जेल की तरफ़ जा रहा है।#RafaleChorChowkidar
— Kanhaiya Kumar (@kanhaiyakumar) April 13, 2019
दरअसल, अखबार की खबर के मुताबिक रिलायंस कम्युनिकेशन की संबद्धी अनुषंगी कंपनी फ्रांस में पंजीकृत है और दूरसंचार क्षेत्र में काम करती है. रिलायंस कम्युनिकेशन ने इस खबर पर अपनी प्रतिक्रिया में किसी भी तरह के गलत काम से इनकार किया है. कंपनी ने कहा है कि कर विवाद को कानूनी ढांचे के तहत निपटाया गया. उन्होंने कहा कि फ्रांस में काम करने वाली सभी कंपनियों के लिए इस तरह का तंत्र उपलब्ध है. फ्रांस के समाचारपत्र ने कहा है कि देश के कर अधिकारियों ने रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस से 15.1 करोड़ यूरो के कर की मांग की थी लेकिन 73 लाख यूरो में यह मामला सुलट गया.
इस समाचार पर प्रतिक्रिया देते हुए भारतीय रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि कर मामले और राफेल के मुद्दे में किसी तरह का संबंध स्थापित करना पूरी तरह अनुचित, निहित उद्देश्य से प्रेरित और गलत जानकारी देने की कोशिश है. मंत्रालय ने यहां एक बयान जारी कर कहा है, ''हम ऐसी खबरें देख रहे हैं, जिसमें एक निजी कंपनी को कर में दी गयी छूट एवं भारत सरकार द्वारा राफेल लड़ाकू विमान की खरीद के बीच अनुमान के आधार पर संबंध स्थापित किया जा रहा है. ना तो कर की अवधि और ना ही रियायत के विषय का वर्तमान सरकार के कार्यकाल में हुई राफेल की खरीद से दूर-दूर तक कोई लेना-देना है.''
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेरिस में 10 अप्रैल, 2015 को फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के साथ बातचीत के बाद 36 राफेल विमानों की खरीद की घोषणा की थी. कांग्रेस इस सौदे में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का आरोप लगाती रही है. विपक्षी दल ने आरोप लगाया है कि सरकार 1,670 करोड़ रुपये की दर से एक विमान खरीद रही है जबकि तत्कालीन यूपीए सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ की दर से सौदा पक्का किया था.
कांग्रेस अनिल अंबानी की अगुवाई वाली रिलायंस डिफेंस को दसाल्ट एवियशन का ऑफसेट साझीदार बनाने को लेकर भी सरकार पर हमालवर है. सरकार ने आरोपों को खारिज किया है.
अखबार ने कहा कि फ्रांस के अधिकारियों ने रिलायंस फ्लैग अटलांटिक फ्रांस की जांच की और पाया कि 2007-10 के बीच उसे छह करोड़ यूरो का कर देना था. हालांकि मामले को सुलटाने के लिए रिलायंस ने 76 लाख यूरो की पेशकश की लेकिन फ्रांस के अधिकारियों ने राशि स्वीकार करने से इनकार कर दिया. अधिकारियों ने 2010-12 की अवधि के लिए भी जांच की और कर के रूप में 9.1 करोड़ यूरो के भुगतान का निर्देश दिया.
अप्रैल, 2015 तक रिलायंस को फ्रांस के अधिकारियों को 15.1 करोड़ यूरो का कर देना था. हालांकि पेरिस में मोदी द्वारा राफेल सौदे की घोषणा के छह महीने बाद फ्रांस अधिकारियों ने अंबानी की कंपनी की 73 लाख यूरो की पेशकश स्वीकार कर ली. रिलायंस कम्युनिकेशन्स के एक प्रवक्ता ने बताया कि कर की मांग 'पूरी तरह अमान्य और गैर-कानूनी थी.' कंपनी ने किसी तरह के पक्षपात या सुलह से किसी तरह के फायदे की बात से इनकार किया. (इनपुट भाषा से)
(डिस्क्लेमर : अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप ने NDTV पर राफेल सौदे की कवरेज को लेकर 10,000 करोड़ रुपये का मुकदमा किया है.)
VIDEO: अनिल अंबानी की कंपनी ने एरिक्सन को चुकाए 462 करोड़ रुपये
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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