मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने शुक्रवार को कहा कि वह अयोध्या राम मंदिर मसले पर अपनी पार्टी की लाइन पर ही चले हैं. कमलनाथ ने कहा, 'राम मंदिर पर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूजी और पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का जो रूख था, मैं उसी पर हूं. इसे किसी अन्य परिप्रेक्ष्य में नहीं देखा जाना चाहिए.' उनसे केरल में त्रिशूर के सांसद टीएन प्रतापन द्वारा कांग्रेस के 'सॉफ्ट हिन्दुत्व' को अपनाने को लेकर पार्टी आलाकमान को आगाह करने वाली खबरों के बारे में सवाल किया गया था. इस पर, उन्होंने कहा, 'राजीव जी ने (1985 में) राम मंदिर का ताला खुलवाया था. हम बाबरी मस्जिद गिराए जाने के खिलाफ थे. कांग्रेस का रुख साफ था कि हम इस पर अदालत के फैसले का पालन करेंगे.'
कमलनाथ ने कहा, 'मैंने छिंदवाड़ा में सबसे बड़ा हनुमान मंदिर बनवाया था. मैं हिंदू धर्म में आस्था रखता हूं. लेकिन, मैं अन्य सभी धर्मों का अत्यधिक सम्मान करता हूं.' उन्होंने सवाल किया, 'क्या भाजपा ने हिंदू धर्म का पेटेंट कराया है? क्या उन्होंने (भाजपा) धर्म और भगवान राम के लिए एजेंसी ली है?'
कमलनाथ ने अयोध्या में पांच अगस्त को भगवान राम के मंदिर के निर्माण के भूमि पूजन के एक दिन पहले भोपाल में अपने सरकारी निवास पर राम दरबार सजाकर हनुमान चालीसा के पाठ का आयोजन किया था. हनुमान चालीसा का पाठ करने के बाद राम मंदिर निर्माण का स्वागत करते हुए उन्होंने घोषणा की थी कि मध्य प्रदेश कांग्रेस अयोध्या स्थित राम मंदिर निर्माण के लिये प्रदेश की जनता की ओर से चांदी की 11 ईंट भेजेगी.
अयोध्या में पांच अगस्त को मंदिर के भूमि पूजन के अवसर को देखते हुए कमलनाथ ने भोपाल स्थित प्रदेश कांग्रेस कार्यालय के मुख्य द्वार पर भगवान श्रीराम की तस्वीर के सामने दीप प्रज्वलित कर भगवान श्री राम का पूजन किया था. इसके अलावा, उस दिन यहां कांग्रेस मुख्यालय पर भगवान राम की एक विशाल तस्वीर भी लगाई थी. रंगारंग आतिशबाजी और पूरे कार्यालय को रंगबिरंगी रोशनी से सजाने के साथ-साथ बैंड की धुन पर मधुर संगीतमय भजनों की प्रस्तुति होती रही. पूरा कांग्रेस कार्यालय जय-जय श्रीराम के नारों से गूंजता रहा और कांग्रेसी राममय हो गये थे.
कांग्रेस के लोकसभा सदस्य टीएन प्रतापन ने राम मंदिर निर्माण के लिए हुए भूमि पूजन के बारे में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों कमलनाथ और दिग्विजय सिंह सहित अन्य कांग्रेस नेताओं की प्रतिक्रया का विरोध करते हुए सोनिया गांधी को पत्र लिखा था. इस पत्र में उन्होंने कहा, 'हम अति धार्मिक राष्ट्रवाद के पीछे इसके नरम स्वरूप के साथ भाग नहीं सकते. हमें इस हालात का अहसास करना चाहिए और तत्काल विकल्प को स्वीकार करना चाहिए. यह एकता, सौहार्द और सहिष्णुता की राजनीति की विरासत पर आधारित होना चाहिए.'
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