जज लोया की मौत का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मामले को अत्यंत गंभीरता से ले रहे हैं

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे को आश्वस्त किया कि कोई भी इस मामले में उन्हें दलील रखने से नहीं रोक सकता है और शीर्ष अदालत मामले पर ‘अत्यंत सावधानी’ से विचार कर रही है.

जज लोया की मौत का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा, मामले को अत्यंत गंभीरता से ले रहे हैं

भारतीय सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)

नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वह विशेष सीबीआई न्यायाधीश बी एच लोया की मौत के मामले को ‘अत्यंत गंभीरता’ से ले रहा है और अदालत कक्ष के बाहर जो कुछ भी कहा गया हो उसपर ध्यान दिये बिना वह इसे एक उद्देश्य मानता है. प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे को आश्वस्त किया कि कोई भी इस मामले में उन्हें दलील रखने से नहीं रोक सकता है और शीर्ष अदालत मामले पर ‘अत्यंत सावधानी’ से विचार कर रही है. पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 'ये मामला गंभीर है और एक जज की मौत हुई है. मामले को गंभीरता से देख रहे हैं और तथ्यों को समझ रहे हैं. अगर इस दौरान अगर कोई संदिग्ध तथ्य आया तो कोर्ट इस मामले की जांच के आदेश देगा. सुप्रीम कोर्ट के लिए ये बाध्यकारी है. हम इस मामले में लोकस पर नहीं जा रहे हैं.'

पीठ की यह टिप्पणी तब आई जब बांबे लॉयर्स एसोसिएशन की तरफ से उपस्थित अधिवक्ता दवे ने दावा किया कि बार काउन्सिल ऑफ इंडिया ने लोया की मौत से संबंधित मामले में दलील रखने को लेकर हाल में उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया है. लोया मृत्यु से पहले हाई प्रोफाइल सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले पर सुनवाई कर रहे थे. लोया अपने एक साथी की बेटी की शादी में शरीक होने के लिये नागपुर गए थे जब एक दिसंबर 2014 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो गई थी.

पीठ ने कहा, ‘‘न्यायिक बिरादरी के एक सदस्य की मौत हुई है. हम इस मामले को बेहद गंभीरता से ले रहे हैं और इसपर उद्देश्य के तौर पर विचार कर रहे हैं. अदालत कक्ष के बाहर चाहे जो कुछ भी कहा गया हो, हम अपना काम करेंगे. जहां तक हमारा सवाल है, हम आपको आश्वस्त करते हैं कि कोई भी आपको मामले में दलील रखने से नहीं रोक सकता है.’’ पीठ ने कहा, ‘‘पहले दिन ही हमने कहा था कि यह गंभीर चिंता का विषय है. अगर किसी तरह का संदेह है तो हम देखेंगे कि क्या जांच की जरूरत है.’’ पीठ ने कहा, ‘‘अगर हमारा अंत:करण उत्प्रेरित हुआ तो हम जांच के लिये कह सकते हैं.’’

पीठ की यह टिप्पणी तब आयी जब दवे ने दावा किया कि मामले में याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील दबाव में हैं. ऐसा इस तथ्य के बावजूद हो रहा है कि वे एक उद्देश्य के लिये मामले के पीछे लगे हुए हैं. दवे ने पीठ से कहा, ‘‘कोई इस बात की कल्पना नहीं कर सकता कि हम कितने दबाव में काम कर रहे हैं. हम एक उद्देश्य के लिये इसे लड़ रहे हैं. यह बेहद गंभीर मामला है. एक न्यायाधीश की रहस्यमय परिस्थितियों में मृत्यु हुई है. हम अपने हाथ पीछे बांधकर काम कर रहे हैं. चीजें वैसी नहीं हैं जैसी सामने नजर आ रही हैं.’’ पीठ ने कहा कि बार काउन्सिल ऑफ इंडिया उसके समक्ष पक्षकार नहीं है और दवे मामले में पूरी स्वतंत्रता से दलील रख सकते हैं.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि वह सिर्फ पीठ को नोटिस के बारे में सूचित कर रहे हैं और इससे खुद निपटेंगे क्योंकि याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व कर रहे वकीलों को धमकाने का प्रयास हुआ. उन्होंने कहा कि अपने करियर में उन्होंने शीर्ष अदालत द्वारा इस तरह की अपनायी गयी प्रक्रिया कभी नहीं देखी और महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करने के मुद्दे पर अदालत की अनिच्छा पर सवाल उठाया. उन्होंने कहा, ‘इतने बड़े स्तर के मामले में प्लीडिंग उच्चतम न्यायालय नियमों के अनुसार दाखिल किये जाने चाहिये. लोया की मौत से जुड़े न्यायाधीशों के बयान शपथ लेकर होने चाहिये और अदालत को उन्हें हलफनामा दायर करने का निर्देश देना चाहिये.’’ इसपर पीठ ने कहा, ‘‘हलफनामे से आपके मामले में सुधार नहीं होगा. हम फिलहाल यह देख रहे हैं कि सीआरपीसी की धारा 174 का पालन हुआ था या नहीं. हमने आपके साथ-साथ श्रीमान रोहतगी से सवाल किये हैं. अगर किसी तथ्य से संदेह पैदा हुआ तो हम अपना काम करेंगे.’’

वहीं महाराष्ट्र सरकार की ओर से मुकुल रोहतगी ने दवे की दलीलों का विरोध किया और कहा कि इस तरह का कोई नियम नहीं है और रिट याचिकाओं में अगर दम नहीं रहा है तो शुरुआत में या एकपक्षीय तरीके से भी खारिज की गई हैं. कहा कि लोया की मौत के तीन साल बाद मैगजीन में जो आर्टिकल छपा वो मोटिवेटिड था. क्योंकि इस मामले में एक पार्टी के अध्यक्ष (अमित शाह) को आरोपमुक्त किया गया. सुप्रीम कोर्ट में भी केस आया लेकिन खारिज हो गया. अब आर्टिकल छपने के बाद ये याचिका दाखिल की गई.'

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पिछली सुनवाई में महाराष्ट्र सरकार ने SIT जांच का विरोध किया था. महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश मुकुल रोहतगी ने कहा था कि ये याचिका न्यायपालिका को सकेंडलाइज करने के लिए दायर की गई है. ये राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश है. सिर्फ इसलिए कि सत्तारूढ़ पार्टी के अध्यक्ष हैं, आरोप लगाए जा रहे हैं, प्रेस कांफ्रेस की जा रही है. अमित शाह के आपराधिक मामले में आरोपमुक्त करने को इस मौत से लिंक किया जा रहा है. उनकी मौत के पीछे कोई रहस्य नहीं है. इसकी आगे जांच की कोई जरूरत नहीं.

(इनपुट भाषा से...)


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