
हंगामे और लंबी बहस के बाद आखिरकार सरकार ने धारा 370 और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन का प्रस्ताव राज्यसभा में पारित करा लिया. लेकिन एनडीए के सहयोगी दल जेडीयू की शिकायत है कि उनसे सलाह नहीं ली गई. धारा 370 और जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पर जेडीयू ने खुद को सरकार के रुख से अलग कर लिया है. जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने एनडीटीवी से कहा कि इस मसले पर नीतीश से कोई राय-मशविरा मोदी सरकार ने नहीं किया. यह एनडीए का एजेंडा नहीं है.
जेडीयू के प्रधान महासचिव केसी त्यागी ने कहा कि हम इस फैसले से असहमत हैं. नीतीश कुमार ने इसका समर्थन नहीं करने का फैसला किया है. ये एनडीए का एजेंडा नहीं है, बीजेपी का एजेंडा है. बीजेपी ने हमें कॉन्फिडेंस में नहीं लिया. सरकार ने हमसे कोई चर्चा नहीं की.
बीजेपी की सहयोगी शिवसेना ने माना कि सरकार गोपनीयता से प्रस्ताव लाई लेकिन वह सरकार के साथ है.
शिवसेना के सांसद संजय राउत ने कहा कि 'सरकार ने हमसे भी समझ लो बात नहीं की. लेकिन ऐसे फैसले गोपनीयता से ही लेने चाहिए. हम इसका समर्थन करते हैं.'
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हालांकि सरकार ने कहा कि धारा 370 पर बीजेपी का एजेंडा साफ है और इसकी जानकारी सबके पास है.
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में कहा, "ये कहना गलत होगा कि इस प्रस्ताव पर सलाह-मशविरा नहीं किया गया. इस पर लंबे समय से विचार चल रहा था और हम इस बारे में बात करते रहे हैं." जबकि रेल राज्यमंत्री सुरेश अंगाड़ी ने एनडीटीवी से कहा, "सबको कंसल्ट किया गया. सरकार सबसे पूछकर ही फैसले करती है. सरकार सबका साथ,सबका विश्वास लेकर ही आगे बढ़ती है."
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सबसे अहम सवाल है कि क्या धारा 370 को खत्म करने के सरकार के फैसले से असहमत और सार्वजनिक तौर पर नाराजगी जताने वाले एनडीए के घटक दल अपने विरोध को लेकर कितना आगे बढ़ेंगे? जेडीयू ने तीन तलाक बिल का भी संसद में विरोध किया था लेकिन एनडीए में शामिल है. सरकार को शायद यह अंदाज़ा है कि जेडीयू अपने विरोध को लेकर ज़्यादा आगे नहीं बढ़ेगी.
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