जयललिता की फाइल फोटो
नई दिल्ली:
वरिष्ठ वकील बीवी आचार्य अब कर्नाटक हाई कोर्ट को सरकारी वकील के तौर पर मदद करेंगे। सुप्रीम कोर्ट की नाराज़गी के बाद अब तक इस मामले में सरकारी वकील की भूमिका रहे भवानी सिंह को हटा दिया गया है।
बीवी आचार्य इस मामले के ट्रायल के वक़्त भी सरकारी वकील थे। नियुक्ति के फ़ौरन बाद आचार्य ने 18 पन्नों का एक लिखित दस्तावेज़ हाई कोर्ट को सौंपा जिसमें उन्होंने कोर्ट से अपील की है कि रहत के लिए जयललिता की ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ लगाई गयी याचिका ख़ारिज कर दी जाये।
तक़रीबन 67 करोड़ रुपये के आय से अधिक संपत्ति के 1996 के इस मामले में पिछले साल बेंगलुरु के एक विशेष ट्रायल कोर्ट ने जयललिता को 4 साल की जेल और 100 करोड़ रुपये के जुर्माने की सजा दी थी। इस फैसले के खिलाफ़ जयललिता ने कर्नाटक हाई कोर्ट में अपील की थी।
सुनवाई के दौरान भवानी सिंह सरकारी वकील की भूमिका निभाने लगे और इस सन्दर्भ में उन्हें तमिलनाडु सरकार ने नियुक्ति पत्र भी दिया। चूंकि प्रॉसेक्युटिंग एजेंसी कर्नाटक है ऐसे में सरकारी वकील की नियुक्ति इसी राज्य सरकार की तरफ से होनी चाहिए थी।
हालांकि कर्नाटक हाई कोर्ट की तरफ से सुनवाई के दौरान भवानी सिंह की नियुक्ति पर सवाल नहीं उठाये गए। डीएमके ने उनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनोति दी जिसके बाद कोर्ट ने भवानी सिंह की सरकारी वकील के तौर पर इस मामले की सुनवाई में भागीदारी को अवैध ठहराया। हालांकि साथ ही ये भी साफ़ किया कि इस वजह से जयललिता की अपील पर दुबारा सुनवाई नहीं होगी। कर्नाटक हाई कोर्ट अब कभी भी जयललिता की अपील पर फैसला सुना सकती है जो फिलहाल सुरक्षित है।
बीवी आचार्य इस मामले के ट्रायल के वक़्त भी सरकारी वकील थे। नियुक्ति के फ़ौरन बाद आचार्य ने 18 पन्नों का एक लिखित दस्तावेज़ हाई कोर्ट को सौंपा जिसमें उन्होंने कोर्ट से अपील की है कि रहत के लिए जयललिता की ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ लगाई गयी याचिका ख़ारिज कर दी जाये।
तक़रीबन 67 करोड़ रुपये के आय से अधिक संपत्ति के 1996 के इस मामले में पिछले साल बेंगलुरु के एक विशेष ट्रायल कोर्ट ने जयललिता को 4 साल की जेल और 100 करोड़ रुपये के जुर्माने की सजा दी थी। इस फैसले के खिलाफ़ जयललिता ने कर्नाटक हाई कोर्ट में अपील की थी।
सुनवाई के दौरान भवानी सिंह सरकारी वकील की भूमिका निभाने लगे और इस सन्दर्भ में उन्हें तमिलनाडु सरकार ने नियुक्ति पत्र भी दिया। चूंकि प्रॉसेक्युटिंग एजेंसी कर्नाटक है ऐसे में सरकारी वकील की नियुक्ति इसी राज्य सरकार की तरफ से होनी चाहिए थी।
हालांकि कर्नाटक हाई कोर्ट की तरफ से सुनवाई के दौरान भवानी सिंह की नियुक्ति पर सवाल नहीं उठाये गए। डीएमके ने उनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनोति दी जिसके बाद कोर्ट ने भवानी सिंह की सरकारी वकील के तौर पर इस मामले की सुनवाई में भागीदारी को अवैध ठहराया। हालांकि साथ ही ये भी साफ़ किया कि इस वजह से जयललिता की अपील पर दुबारा सुनवाई नहीं होगी। कर्नाटक हाई कोर्ट अब कभी भी जयललिता की अपील पर फैसला सुना सकती है जो फिलहाल सुरक्षित है।
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