जमीयत उलमा-ए-हिन्द के सदर मौलाना सैयद अरशद मदनी.
नई दिल्ली:
सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को अयोध्या में जमीन विवाद मामले की सुनवाई टल गई है. अब जनवरी में तय होगा कि सुनवाई कब होगी. सुप्रीम कोर्ट में आज तीन जजों की नई बेंच को अयोध्या में जमीन विवाद मामले की सुनवाई करनी थी. नई बेंच में मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई, संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसेफ शामिल हैं. उन्होंने मामले की सुनवाई टाल दी है.
दरअसल, इलाहबाद हाइकोर्ट ने 2010 में विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षकारों भगवान रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के बीच बराबर-बराबर बांटने का फ़ैसला सुनाया था. इसके विरोध में कई पक्षों की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.
संवेदनशील बाबरी मस्जिद स्वामित्व मामले की सुनवाई आगामी जनवरी तक के लिए स्थगित करने पर जमीयत उलमा-ए-हिन्द के सदर मौलाना सैयद अरशद मदनी ने एनडीटीवी से कहा कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ द्वारा सुनवाई आगामी जनवरी तक स्थगित करने के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि यह कोई साधारण मामला नहीं है बल्कि देश का महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामला है. उन्होंने कहा कि हम समझते हैं कि इस फैसले के आने के बाद उनके अनावश्यक बयानों का सिलसिला अब बंद हो जाएगा जो न्यायपालिका और कानून को चैलेंज करने वाले होते हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ लोग अदालत से बाहर इस मामले में अनावश्यक और आक्रामक बयानबाजी कर रहे हैं. यहां तक कि कुछ लोग मीडिया पर आकर वहीं मंदिर बनाने की बात कह रहे हैं. उन्होंने सवाल किया कि जब मामला अदालत में लंबित है तो इस तरह की उत्तेजक बयानबाजी के बारे में क्या कहा जा सकता है? इसलिए हम अनुरोध करेंगे कि माननीय अदालत दूसरे मामलों की तरह इसका नोटिस ले और ऐसे लोगों को चेतावनी दे जिनके बयानों से शांति व मुल्क की फिजा खराब होने और समाज में तनाव फैल जाने का गंभीर खतरा हो.
मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि इस तरह के बयान देने वालों की प्रमुख मंशा यही है कि देश में शांति व्यवस्था व फ़िज़ा खराब होकर सांप्रदायिक माहौल स्थापित हो. उन्होंने कहा कि एक देशभक्त नागरिक की तरह मुसलमान सब्र के साथ अदालत के फैसले का इन्तज़ार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें न्यायपालिका में पूर्ण विश्वास है. उन्होंने दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह के बयानों से एक वर्ग की की भावनाएं आहत भी हो रही थीं. मौलाना मदनी ने कहा कि कानूनी निर्णय इस पर आधारित होगा, इस बारे में हम गहराई से चिंतित हैं और न्यायालय के हर निर्णय का स्वागत करेंगे.
दरअसल, इलाहबाद हाइकोर्ट ने 2010 में विवादित 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षकारों भगवान रामलला, निर्मोही अखाड़ा और सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड के बीच बराबर-बराबर बांटने का फ़ैसला सुनाया था. इसके विरोध में कई पक्षों की तरफ़ से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.
संवेदनशील बाबरी मस्जिद स्वामित्व मामले की सुनवाई आगामी जनवरी तक के लिए स्थगित करने पर जमीयत उलमा-ए-हिन्द के सदर मौलाना सैयद अरशद मदनी ने एनडीटीवी से कहा कि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय खंडपीठ द्वारा सुनवाई आगामी जनवरी तक स्थगित करने के फैसले का स्वागत किया. उन्होंने कहा कि यह कोई साधारण मामला नहीं है बल्कि देश का महत्वपूर्ण और संवेदनशील मामला है. उन्होंने कहा कि हम समझते हैं कि इस फैसले के आने के बाद उनके अनावश्यक बयानों का सिलसिला अब बंद हो जाएगा जो न्यायपालिका और कानून को चैलेंज करने वाले होते हैं.
उन्होंने कहा कि कुछ लोग अदालत से बाहर इस मामले में अनावश्यक और आक्रामक बयानबाजी कर रहे हैं. यहां तक कि कुछ लोग मीडिया पर आकर वहीं मंदिर बनाने की बात कह रहे हैं. उन्होंने सवाल किया कि जब मामला अदालत में लंबित है तो इस तरह की उत्तेजक बयानबाजी के बारे में क्या कहा जा सकता है? इसलिए हम अनुरोध करेंगे कि माननीय अदालत दूसरे मामलों की तरह इसका नोटिस ले और ऐसे लोगों को चेतावनी दे जिनके बयानों से शांति व मुल्क की फिजा खराब होने और समाज में तनाव फैल जाने का गंभीर खतरा हो.
मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि इस तरह के बयान देने वालों की प्रमुख मंशा यही है कि देश में शांति व्यवस्था व फ़िज़ा खराब होकर सांप्रदायिक माहौल स्थापित हो. उन्होंने कहा कि एक देशभक्त नागरिक की तरह मुसलमान सब्र के साथ अदालत के फैसले का इन्तज़ार कर रहे हैं क्योंकि उन्हें न्यायपालिका में पूर्ण विश्वास है. उन्होंने दुःख व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह के बयानों से एक वर्ग की की भावनाएं आहत भी हो रही थीं. मौलाना मदनी ने कहा कि कानूनी निर्णय इस पर आधारित होगा, इस बारे में हम गहराई से चिंतित हैं और न्यायालय के हर निर्णय का स्वागत करेंगे.
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