डॉ कलाम का इंतज़ार करते स्कूली बच्चे
नई दिल्ली:
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का पार्थिव शरीर कल जब शिलॉन्ग से उनके आधिकारिक निवास 10 राजा जी मार्ग लाया गया तब, दिल्ली की सड़कों पर सैंकड़ों की संख्या में स्कूली बच्चे इस उमस भरी गर्मी में रोड पर खड़े उनका अंतिम दर्शन पाने का इंतज़ार कर रहे थे।
ये बच्चे जनता के राष्ट्रपति को सिर्फ़ अंतिम बार देखने के इच्छुक थे और इसके लिए वो घंटो इंतज़ार करते रहे।
थोड़ी ही दूर पर 10 राजा जी मार्ग के बाहर, एपीजे अब्दुल कलाम के घर पर स्पेशल वीवीआईपी लोगों का आना शुरु हो गया था। इनमें देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, सीताराम येचुरी और ब्यूटीशियन शहनाज़ हुसैन शामिल थीं।
10 राजाजी मार्ग पर साफ़तौर पर कुछ लोग ऐसे थे जो अन्य लोगों से ज्य़ादा महत्वपूर्ण थे। कुछ ऐसे लोग जो ये समझते थे कि पूर्व राष्ट्रपति के घर में अंतिम दर्शन का अधिकार उनका बाकियों से कुछ ज़्यादा था।
डिफेंस मिनिस्ट्री के अनुसार ये प्रोटोकॉल था, सिक्योरिटी अफ़सरों के अनुसार ये सिक्योरिटी था, ये सब सच है इसमें कोई शक नहीं है, लेकिन सच्चाई ये है कि ये सब उस वीआईपी कल्चर का हिस्सा था जो हमारे दिमाग में बसा है, वो वीआईपी कल्चर जो कभी भी अपनी आदतों में बदलाव नहीं कर सकता है, देश के आम आदमी को 'जनता के राष्ट्रपति' को श्रद्धांजलि पहले देने का मौका नहीं दे सकता है।
वीवीआईपी पहले, जनता बाद में
घड़ी की सुईंया आगे बढ़ती रहीं, जनता के लिए अंदर जाने का समय तीन बजे तय किया गया, लेकिन जाने का मौका दिया गया एक घंटे के बाद। डिफेंस मिनिस्ट्री इसे एक मामूली असुविधा मानेगी, क्योंकि उनके अनुसार लोगों के प्रतिनिधियों को वहाँ पहले जाने का पूरा हक़ जो है।
उनके जाने के बाद आम जनता का सैलाब डॉ कलाम के घर की तरफ़ उमड़ पड़ा, उनमें हाथों में गुलाब लिए स्कूली छात्र थे, डॉक्टर, सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले प्यून, सेना के तीनों विंग के अफ़सर जिनके कलाम कभी सुप्रीम कमांडर हुआ करते थे।
इन लोगों को व्यवस्थित करने के लिए पुलिस को थोड़ी मेहनत भी करनी पड़ी, लेकिन मौके की गंभीरता को देखते हुए जल्दी ही वहाँ मौजूद लोग पंक्ति में खड़े हो गये, एक-दूसरे को धक्का-मुक्की करना छोड़ दिए और शांति से अपनी बारी का इंतज़ार करने लग गए।
वहाँ कोई बहुत ज़्यादा लंबी भीड़ भी नहीं थी, तक़रीबन 1 हज़ार लोग थे और शाम 7.30 बजे तक सभी लोग घंटों लाइन में खड़े होने के बाद, श्रद्धांजलि देकर अपने-अपने घरों को लौट गए थे।
लेकिन नेताओं को कल भी इंतज़ार करने की ज़रुरत नहीं पड़ी थी, वे अपनी गाड़ियों के काफ़िले में आए.....सीधे अंदर गए और 10 मिनट में डॉ कलाम को श्रद्धांजलि देकर लौट गए थे।
ये बच्चे जनता के राष्ट्रपति को सिर्फ़ अंतिम बार देखने के इच्छुक थे और इसके लिए वो घंटो इंतज़ार करते रहे।
थोड़ी ही दूर पर 10 राजा जी मार्ग के बाहर, एपीजे अब्दुल कलाम के घर पर स्पेशल वीवीआईपी लोगों का आना शुरु हो गया था। इनमें देश के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, सीताराम येचुरी और ब्यूटीशियन शहनाज़ हुसैन शामिल थीं।
10 राजाजी मार्ग पर साफ़तौर पर कुछ लोग ऐसे थे जो अन्य लोगों से ज्य़ादा महत्वपूर्ण थे। कुछ ऐसे लोग जो ये समझते थे कि पूर्व राष्ट्रपति के घर में अंतिम दर्शन का अधिकार उनका बाकियों से कुछ ज़्यादा था।
डिफेंस मिनिस्ट्री के अनुसार ये प्रोटोकॉल था, सिक्योरिटी अफ़सरों के अनुसार ये सिक्योरिटी था, ये सब सच है इसमें कोई शक नहीं है, लेकिन सच्चाई ये है कि ये सब उस वीआईपी कल्चर का हिस्सा था जो हमारे दिमाग में बसा है, वो वीआईपी कल्चर जो कभी भी अपनी आदतों में बदलाव नहीं कर सकता है, देश के आम आदमी को 'जनता के राष्ट्रपति' को श्रद्धांजलि पहले देने का मौका नहीं दे सकता है।
वीवीआईपी पहले, जनता बाद में
घड़ी की सुईंया आगे बढ़ती रहीं, जनता के लिए अंदर जाने का समय तीन बजे तय किया गया, लेकिन जाने का मौका दिया गया एक घंटे के बाद। डिफेंस मिनिस्ट्री इसे एक मामूली असुविधा मानेगी, क्योंकि उनके अनुसार लोगों के प्रतिनिधियों को वहाँ पहले जाने का पूरा हक़ जो है।
उनके जाने के बाद आम जनता का सैलाब डॉ कलाम के घर की तरफ़ उमड़ पड़ा, उनमें हाथों में गुलाब लिए स्कूली छात्र थे, डॉक्टर, सरकारी दफ्तरों में काम करने वाले प्यून, सेना के तीनों विंग के अफ़सर जिनके कलाम कभी सुप्रीम कमांडर हुआ करते थे।
इन लोगों को व्यवस्थित करने के लिए पुलिस को थोड़ी मेहनत भी करनी पड़ी, लेकिन मौके की गंभीरता को देखते हुए जल्दी ही वहाँ मौजूद लोग पंक्ति में खड़े हो गये, एक-दूसरे को धक्का-मुक्की करना छोड़ दिए और शांति से अपनी बारी का इंतज़ार करने लग गए।
वहाँ कोई बहुत ज़्यादा लंबी भीड़ भी नहीं थी, तक़रीबन 1 हज़ार लोग थे और शाम 7.30 बजे तक सभी लोग घंटों लाइन में खड़े होने के बाद, श्रद्धांजलि देकर अपने-अपने घरों को लौट गए थे।
लेकिन नेताओं को कल भी इंतज़ार करने की ज़रुरत नहीं पड़ी थी, वे अपनी गाड़ियों के काफ़िले में आए.....सीधे अंदर गए और 10 मिनट में डॉ कलाम को श्रद्धांजलि देकर लौट गए थे।
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