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This Article is From Dec 02, 2017

मनमोहन सिंह का मोदी सरकार पर निशाना- जीडीपी में वृद्धि से अर्थव्यवस्था में सुधार का निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी

जीडीपी में 6.3 फीसदी वृद्धि दर ने आर्थिक मंदी खत्म नहीं की, इसमें नोटबंदी और जीएसटी के कारण बड़ा नुकसान उठाने वाले छोटे और मझौले क्षेत्रों के आंकड़े नहीं

मनमोहन सिंह का मोदी सरकार पर निशाना- जीडीपी में वृद्धि से अर्थव्यवस्था में सुधार का निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि जीडीपी में मौजूदा वृद्धि को लेकर आर्थिक मंदी खत्म होने का निष्कर्ष निकलना जल्दबाजी होगी.
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Summary is AI generated, newsroom reviewed.
नोटबंदी, जीएसटी का असर खत्म होने पर फिलहाल नहीं निकल सकता निष्कर्ष
जीएसटी और नोटबंदी के प्रभाव का सही आकलन नहीं करता सीएसओ
कृषि क्षेत्र की पिछली तिमाही की 2.3 फीसदी वृद्धि दर गिरकर 1.7 फीसदी हुई
सूरत: पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जुलाई-सितंबर तिमाही की 6.3 फीसदी वृद्धि दर का स्वागत किया है लेकिन चेतावनी भी दी है कि अभी यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है.

मनमोहन सिंह ने शनिवार को सूरत में कहा कि अभी यह कहना जल्दबाजी होगी कि जुलाई-सितंबर तिमाही में जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की 6.3 फीसदी वृद्धि दर के रूप में आर्थिक मंदी का रुख उलट गया है, क्योंकि इसमें छोटे और मझौले क्षेत्रों के आंकड़े नहीं हैं, जिसे नोटबंदी और जल्दबाजी में लागू किए गए जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) के कारण बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है.

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पेशेवरों और व्यापारियों को संबोधित करते हुए मनमोहन सिंह ने कहा, "यह निष्कर्ष निकालना जल्दबाजी होगी कि अर्थव्यवस्था में गिरावट का रुख खत्म हो गया है, जो पिछली पांच तिमाहियों से देखा जा रहा था. कुछ अर्थशास्त्रियों का मानना है कि सीएसओ (केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय), जो इन आकंड़ों को जारी करता है, वह अनौपचारिक क्षेत्र पर जीएसटी और नोटबंदी के प्रभाव का सही आकलन नहीं करता है. जबकि अनौपचारिक क्षेत्र हमारी अर्थव्यवस्था का करीब 30 फीसदी है." उन्होंने जानेमाने अर्थशास्त्री गोविंद राव का हवाला देते हुए कहा कि कॉरपोरेट नतीजों के आधार पर विनिर्माण क्षेत्र की रफ्तार के आकलन में 'समस्या' है. सिंह ने राव के हवाले से कहा, "इसमें छोटे और मझौले क्षेत्र की गणना नहीं की जाती है, जो नोटबंदी और जीएसटी से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ हैं. अभी भी बड़ी समस्याएं बरकरार हैं. कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर गिरकर 1.7 फीसदी हो चुकी है, जो कि पिछली तिमाही में 2.3 फीसदी थी. जबकि पिछले साल की समान तिमाही में यह 4.1 फीसदी थी."

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पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा कि कृषि के बाद सबसे ज्यादा नौकरियां विनिर्माण क्षेत्र में कम हुई हैं. उन्होंने भाजपा सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना करते हुए कहा, "अर्थव्यवस्था पर नोटंबदी के असर से सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर 2017-18 की पहली तिमाही में नई गणना के तहत 5.7 फीसदी पर आ गई. जबकि इसमें वास्तविक असर का बहुत कम अंदाजा लगता है, क्योंकि अनौपचारिक क्षेत्र की हालत की गणना जीडीपी की गणना में पर्याप्त तरीके से नहीं की जाती है." उन्होंने कहा, "हमारी जीडीपी की विकास दर में हर एक फीसदी की गिरावट से देश को 1.5 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होता है. इस गिरावट से देशवासियों पर पड़े असर के बारे में सोचें. उनकी नौकरियां खो गईं और नौजवानों के लिए रोजगार के अवसर खत्म हो गए. व्यवसायों को बंद करना पड़ा और जो उद्यमी सफलता की राह पर थे, उन्हें निराशा हाथ लगी है."

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मनमोहन सिंह ने कहा कि कृषि और विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट इस तथ्य के बावजूद आई है कि सरकार अपनी परियोजनाओं पर खूब खर्च कर रही है. "यहां तक कि इसके कारण राजकोषीय घाटा पूरे वित्त वर्ष के लक्ष्य का महज सात महीनों में ही 96.1 फीसदी तक जा पहुंचा है. पूरे साल का लक्ष्य 5,46,432 करोड़ रुपये तय किया गया है." सिंह ने कहा, "इसका मतलब है कि विनिर्माण क्षेत्र पर निजी क्षेत्र द्वारा न्यूनतम खर्च किया जा रहा है. इसके बावजूद जीडीपी की विकास दर को लेकर अनिश्चितता बरकरार है. आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) ने अनुमान लगाया है कि वित्त वर्ष 2018-19 में विकास दर 6.7 फीसदी रहेगी. हालांकि अगर यह 2017-18 में 6.7 फीसदी तक पहुंच भी जाती है तो मोदीजी के चार साल के कार्यकाल की औसत विकास दर केवल 7.1 फीसदी ही रहेगी." उन्होंने कहा, "संप्रग (संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन) के 10 साल के औसत में अर्थव्यवस्था की रफ्तार पांचवे साल में बढ़कर 10.6 फीसदी तक आ गई थी. अगर ऐसा दोबारा होता है तो मुझे बहुत खुशी होगी, लेकिन सच कहूं तो मुझे ऐसा होने की उम्मीद नहीं है."
(इनपुट आईएएनएस से)

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