यह ख़बर 05 जनवरी, 2014 को प्रकाशित हुई थी

श्रीहरिकोटा से सफलतापूर्वक लॉन्च हुआ सबसे बड़ा रॉकेट जीएसएलवी डी 5

श्रीहरिकोटा:

देश को नववर्ष का तोहफा देते हुए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार को श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से भूस्थतिक उपग्रह प्रक्षेपण वाहन (जीएसएलवी डी 5) का स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ सफल प्रक्षेपण किया और इसके साथ ही वह यह उपलब्धि हासिल करने वाले चुनिंदा देशों की श्रेणी में शामिल हो गया।

इसके प्रक्षेपण के साथ ही इसरो अमेरिका, रूस, जापान, चीन और फ्रांस के बाद दुनिया की छठी अंतरिक्ष एजेंसी बन गया जिसने स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ सफलता का स्वाद चखा है।

सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के मिशन कंट्रोल रूम से इसरो प्रमुख के राधाकृष्णन ने कहा, 'मैं बेहद खुश हूं और मुझे यह कहते हुए गर्व हो रहा है कि टीम इसरो ने इसे कर दिखाया है। भारतीय क्रायोजेनिक इंजन और स्टेज ने वैसा ही प्रदर्शन किया है जैसा इस मिशन के लिए अनुमान जताया गया था और जैसी अपेक्षा थी और उसने जीसैट-14 संचार उपग्रह को कक्षा में ठीक तरीके से स्थापित कर दिया है।'

राधाकृष्णन ने यह बात प्रक्षेपण वाहन के 1982 किलोग्राम के जीसैट 14 उपग्रह को निश्चित कक्षा में स्थापित करने के तुरंत बाद कही।

अनेक असफल प्रयासों के बावजूद स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन के साथ जीएसएलवी का प्रक्षेपण करना साल 2001 के समय से इसरो के लिए बड़ी चुनौती बना रहा है। सात प्रयासों में से सिर्फ चार सफल रहे हैं।

जीएसएलवी डी 5 का प्रक्षेपण पिछले साल 19 अगस्त को किया जाना था लेकिन ईंधन लीक होने के बाद अंतिम समय में प्रक्षेपण स्थगित कर दिया गया था। उसके बाद इसरो ने वाहन को व्हीकल असेंबली बिल्डिंग में भेजा और त्रुटियों को दूर किया। आज का प्रक्षेपण भारत की ओर से जीएसएलवी का आठवां प्रक्षेपण है और जीएसएलवी की चौथी विकास उड़ान है। इस उड़ान के दौरान स्वदेश विकसित क्रायोजेनिक अपर स्टेज (सीयूएस) का दूसरी बार उड़ान परीक्षण किया गया।

जीसैट-14 भारत का 23 वां भूस्थिर संचार उपग्रह है। जीसैट-14 के चार पूर्ववर्तियों का प्रक्षेपण जीएसएलवी ने 2001, 2003, 2004 और 2007 में किया था। जीसैट-14 भारत के नौ ऑपरेशनल भूस्थिर उपग्रहों के समूह में शामिल होगा। इस मिशन का प्राथमिक उद्देश्य विस्तारित सी और केयू-बैंड ट्रांसपोंडरों की अंतर्कक्षा क्षमता को बढ़ाना और नये प्रयोगों के लिए मंच प्रदान करना है।

जीसैट-14 को 74 डिग्री पूर्वी देशांतर पर स्थापित किया जाएगा और इनसैट-3 सी, इनसैट-4 सीआर और कल्पना-1 उपग्रहों के साथ स्थित होगा।

जीसैट-14 पर मौजूद 12 संचार ट्रांसपोंडर इनसैट, जीसैट प्रणाली की क्षमता को और बढ़ाएंगे।

इसरो की क्रायोजेनिक अपर स्टेज परियोजना ने स्वदेशी क्रायोजेनिक अपर स्टेज की डिजाइन और विकास की परिकल्पना की ताकि रूस से हासिल किए गए स्टेज को बदला जा सके और जीएसएलवी के प्रक्षेपणों में उसका इस्तेमाल किया जा सके।

इसरो के अधिकारी इस बार असफलता से बचने के लिए किसी भी समस्या को दूर करने के प्रति बेहद सतर्क थे। प्रक्षेपण वाहन में जहां भी जरूरत थी डिजाइन में सुधार को लागू किया गया। उसके साथ ही विस्तृत जमीनी परीक्षण और सुधार भी किए गए।

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जो सुधार किए गए हैं उसमें निचले आवरण की फिर से डिजाइनिंग करना शामिल है। यह जीएसएलवी-डी 5 की वातावरण में उड़ान के दौरान क्रायोजेनिक इंजन की रक्षा करता है। इसके अतिरिक्त क्रायो स्टेज के वायर टनेल की भी फिर से डिजाइनिंग की गई ताकि वह उड़ान में बड़े बलों को सह सके।