नई दिल्ली:
जम्मू-कश्मीर के उरी में पिछले हफ्ते हुए आतंकवादी हमले में 18 सैनिकों के शहीद होने के बाद से ही देशभर में माहौल गर्म है. पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए आवाजें लगातार तेज हो रही हैं. इस बीच एक सुझाव यह भी आया कि हमें भारत से होकर पाकिस्तान जाकर उसके ज्यादातर भूभाग में सिंचित करने वाली सिंधु नदी के पानी को रोक देना चाहिए. यह सुझाव देते हुए कहा गया कि इससे पाकिस्तान पर भारत के विरुद्ध ताकतों के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बनेगा.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने पिछले हफ्ते कहा, 'किसी भी संधि में दोनों पक्षों की तरफ से सद्भावना और आपसी विश्वास जरूरी होता है.'
एनडीटीवी पर विशेषज्ञ इस बात पर एकमत नहीं दिखे कि सिंधु नदी समझौते को तोड़ देना चाहिए या नहीं. जबकि यह अंतरराष्ट्रीय जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच दो बड़े युद्धों के बीच भी बनी रही. पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब हमें इस संधि पर फिर से विचार करना चाहिए.
यशवंत सिन्हा ने कहा, 'भारत ने इस संधि की हर एक बात को माना है. लेकिन आप संधि के प्रावधानों को मित्र देश के साथ संधि के रूप में देख रहे हैं, दुश्मन राष्ट्र के रूप में नहीं. भारत को दो काम करने चाहिए. एक तो सिंधु जल समझौते को खत्म कर देना चाहिए और दूसरा पाकिस्तान से सर्वाधिक तरजीह वाले राष्ट्र का दर्जा वापस ले लेना चाहिए.'
लेकिन अगर पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए भारत एकतरफा इस संधि को तोड़ता है तो इसमें जोखिम भी है.
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ जी. पार्थसारथी कहते हैं, 'यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसका मतलब है कि भारत अकेले इसे खत्म नहीं कर सकता. अगर ऐसा हुआ तो इसका मतलब यह होगा कि हम कानूनी रूप से लागू संधि का उल्लंघन कर रहे हैं.' उन्होंने चेताया कि इससे न केवल भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा, बल्कि इससे एक विशेष देश चीन भी गुस्सा हो जाएगा.
बता दें कि सिंधु नदी का उद्गम स्थल चीन में है और भारत-पाकिस्तान की तरह उसने जल बंटवारे की कोई अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं की है. अगर चीन ने सिंधु नदी के बहाव को मोड़ने का निर्णय ले लिया तो भारत को नदी के पानी का 36 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ेगा.
उत्तर-पूर्वी भारत में बहने वाली नदी ब्रह्मपुत्र का उद्गम भी चीन में ही है और यह वहां यारलुंग जांग्बो के नाम से जानी जाती है, जो भारत से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है. इस नदी के पानी के सहारे ही भारत और बांग्लादेश में करोड़ों लोग हैं.
भारत में तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट के टेम्पा जामल्हा का कहना है कि भारत को अपना अगला कदम बड़ी ही सावधानी से उठाना चाहिए. चीन पहले ही ब्रह्मपुत्र नदी पर 11 बड़े बांध बना रहा है और वह भारत के हितों को चोट पहुंचाने की स्थिति में है.
सिंधु जल समझौता करीब एक दशक तक विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच हुआ था.
इस समझौते के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिम की ओर बहने वाली 6 नदियों में से तीन (सतलुज, व्यास और रावि) पर भारत का पूरा अधिकार है, जबकि पाकिस्तान को झेलम, चेनाव और सिंधु नदियों का पानी लगभग बेरोक-टोक के मिलता है.
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने पिछले हफ्ते कहा, 'किसी भी संधि में दोनों पक्षों की तरफ से सद्भावना और आपसी विश्वास जरूरी होता है.'
एनडीटीवी पर विशेषज्ञ इस बात पर एकमत नहीं दिखे कि सिंधु नदी समझौते को तोड़ देना चाहिए या नहीं. जबकि यह अंतरराष्ट्रीय जल संधि भारत और पाकिस्तान के बीच दो बड़े युद्धों के बीच भी बनी रही. पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने एनडीटीवी से बात करते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब हमें इस संधि पर फिर से विचार करना चाहिए.
यशवंत सिन्हा ने कहा, 'भारत ने इस संधि की हर एक बात को माना है. लेकिन आप संधि के प्रावधानों को मित्र देश के साथ संधि के रूप में देख रहे हैं, दुश्मन राष्ट्र के रूप में नहीं. भारत को दो काम करने चाहिए. एक तो सिंधु जल समझौते को खत्म कर देना चाहिए और दूसरा पाकिस्तान से सर्वाधिक तरजीह वाले राष्ट्र का दर्जा वापस ले लेना चाहिए.'
लेकिन अगर पाकिस्तान पर दबाव बनाने के लिए भारत एकतरफा इस संधि को तोड़ता है तो इसमें जोखिम भी है.
सामरिक मामलों के विशेषज्ञ जी. पार्थसारथी कहते हैं, 'यह एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसका मतलब है कि भारत अकेले इसे खत्म नहीं कर सकता. अगर ऐसा हुआ तो इसका मतलब यह होगा कि हम कानूनी रूप से लागू संधि का उल्लंघन कर रहे हैं.' उन्होंने चेताया कि इससे न केवल भारत को अंतरराष्ट्रीय आलोचनाओं का सामना करना पड़ेगा, बल्कि इससे एक विशेष देश चीन भी गुस्सा हो जाएगा.
बता दें कि सिंधु नदी का उद्गम स्थल चीन में है और भारत-पाकिस्तान की तरह उसने जल बंटवारे की कोई अंतरराष्ट्रीय संधि नहीं की है. अगर चीन ने सिंधु नदी के बहाव को मोड़ने का निर्णय ले लिया तो भारत को नदी के पानी का 36 फीसदी हिस्सा गंवाना पड़ेगा.
उत्तर-पूर्वी भारत में बहने वाली नदी ब्रह्मपुत्र का उद्गम भी चीन में ही है और यह वहां यारलुंग जांग्बो के नाम से जानी जाती है, जो भारत से होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है. इस नदी के पानी के सहारे ही भारत और बांग्लादेश में करोड़ों लोग हैं.
भारत में तिब्बत पॉलिसी इंस्टीट्यूट के टेम्पा जामल्हा का कहना है कि भारत को अपना अगला कदम बड़ी ही सावधानी से उठाना चाहिए. चीन पहले ही ब्रह्मपुत्र नदी पर 11 बड़े बांध बना रहा है और वह भारत के हितों को चोट पहुंचाने की स्थिति में है.
सिंधु जल समझौता करीब एक दशक तक विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद 1960 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान के बीच हुआ था.
इस समझौते के अनुसार भारतीय उपमहाद्वीप में पश्चिम की ओर बहने वाली 6 नदियों में से तीन (सतलुज, व्यास और रावि) पर भारत का पूरा अधिकार है, जबकि पाकिस्तान को झेलम, चेनाव और सिंधु नदियों का पानी लगभग बेरोक-टोक के मिलता है.
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