नवीन और विनोदा अब अपनी दादी के पास रहते हैं....
हैदाराबाद:
बारह साल की विनोदा की आंखों में आंसू भर आते हैं जब वह बताती है कि पिता ने कीटनाशक पीकर मरने से पहले कहा था, माफ करना....। तेंलगाना के मेडक जिले में रह रहने वाले बालानरसैया विनोदा के पिता थे और कपास की खेती करते थे। 3 लाख रुपए के कर्ज से दबे बालानरसैया ने पिछले महीने कीटनाशक पीकर जान दे दी। वह अपने पीछे दो बच्चे और अपनी मां (बच्चों की दादी) छोड़ गए हैं।
क्या अब बच्चों को बना लिया जाएगा बंधुआ मजदूर... ?
बच्चों की दादी को डर है कि कर्ज के बोझ से दबे परिवार के लिए कहीं अब यह विपत्ति न खड़ी हो जाए कि साहूकार उनके बच्चों को बंधुआ मजदूर बना लें...। विनोदा कहती है, 'उन्हें कई सारे कर्ज चुकाने थे, इसलिए मेरे पिता मर गए.... ।' विनोदा को वह पढ़ाना चाहते थे। विनोदा अपनी मां की मौत से पहले का अच्छा वक्त याद करते हुए बताती है, 'उन्होंने हमें कभी काम पर नहीं भेजा, वह कहते थे कि स्कूल जाओ।'
इलाज करवाने में अमसर्थ थे, मां की मौत हुई पिछले साल...
बालानरसैया की पत्नी की पिछले साल मौत हो गई थी। वह गरीबी के चलते उनका इलाज नहीं करवा पाए। इसके बाद सूखा पड़ा और डेढ़ एकड़ की उनकी जमीन पर उगी फसल भी चौपट हो गई। बालानरसैया बेहद निराश हो चुके थे।
सरकार से कोई मदद नहीं...
परिवार को सरकार की ओर से कोई मदद अभी तक नहीं मिली है। बालानरसैया की मौत पर आत्महत्या का मामला भी पुलिस में दर्ज हो चुका है। विनोदा और उसके भाई नवीन को हॉस्टल भेजे जाने की उम्मीद भी अब धुंधला गई है। बच्चों की दादी उन्हें पास के गांव के हॉस्टल में पढ़ाई के लिए भेजना चाहती थी। वह बोलीं- वे मुझसे दूर रहेंगे। लेकिन वे तो पहले ही अनाथ हो चुके हैं। ... मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। उम्मीद है वे पढ़ाई जारी रख सकें।
बच्चे सदमे में हैं...
बालानरसैया का बेटा नवीन अब एकदम खामोश रहता है। कभी खेलने कूदने वाला यह बच्चा अपनी मां की तस्वीर देखते हुए कहता है- जब मेरी मां जिन्दा थी, वह हमारे लिए सबकुछ थी। अब हमें जो करना है खुद करना है।
क्या अब बच्चों को बना लिया जाएगा बंधुआ मजदूर... ?
बच्चों की दादी को डर है कि कर्ज के बोझ से दबे परिवार के लिए कहीं अब यह विपत्ति न खड़ी हो जाए कि साहूकार उनके बच्चों को बंधुआ मजदूर बना लें...। विनोदा कहती है, 'उन्हें कई सारे कर्ज चुकाने थे, इसलिए मेरे पिता मर गए.... ।' विनोदा को वह पढ़ाना चाहते थे। विनोदा अपनी मां की मौत से पहले का अच्छा वक्त याद करते हुए बताती है, 'उन्होंने हमें कभी काम पर नहीं भेजा, वह कहते थे कि स्कूल जाओ।'
इलाज करवाने में अमसर्थ थे, मां की मौत हुई पिछले साल...
बालानरसैया की पत्नी की पिछले साल मौत हो गई थी। वह गरीबी के चलते उनका इलाज नहीं करवा पाए। इसके बाद सूखा पड़ा और डेढ़ एकड़ की उनकी जमीन पर उगी फसल भी चौपट हो गई। बालानरसैया बेहद निराश हो चुके थे।
सरकार से कोई मदद नहीं...
परिवार को सरकार की ओर से कोई मदद अभी तक नहीं मिली है। बालानरसैया की मौत पर आत्महत्या का मामला भी पुलिस में दर्ज हो चुका है। विनोदा और उसके भाई नवीन को हॉस्टल भेजे जाने की उम्मीद भी अब धुंधला गई है। बच्चों की दादी उन्हें पास के गांव के हॉस्टल में पढ़ाई के लिए भेजना चाहती थी। वह बोलीं- वे मुझसे दूर रहेंगे। लेकिन वे तो पहले ही अनाथ हो चुके हैं। ... मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। उम्मीद है वे पढ़ाई जारी रख सकें।
बच्चे सदमे में हैं...
बालानरसैया का बेटा नवीन अब एकदम खामोश रहता है। कभी खेलने कूदने वाला यह बच्चा अपनी मां की तस्वीर देखते हुए कहता है- जब मेरी मां जिन्दा थी, वह हमारे लिए सबकुछ थी। अब हमें जो करना है खुद करना है।
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