नगालैंड : जहां हर किसी से होती है अवैध टैक्स की वसूली

नगालैंड : जहां हर किसी से होती है अवैध टैक्स की वसूली

नगा संगठन की वसूली के लिए जारी की गई पर्चियां

दीमापुर, नगालैंड:

'उनकी वसूली की चिट्ठी मार्च, अप्रैल में आती है और हमें एक महीने में पेमेंट करना होता है।'  ये कहना है अकाली (नाम बदला हुआ) का जिनका दीमापुर में व्यवसाय है। प्यार से 'टैक्स' कहे जाने वाले इस पेमेंट की दो पर्चियां अकाली की टेबल पर रखी हैं जिसमें से एक NSCN(IM) की और दूसरी नगा नैश्नल काउंसिल (Accordist) की है।

इन दोनों गुटों ने टैक्स के नाम पर कुल मिलाकर 2.5 लाख रुपए की मांग की है। अकाली ने बताया 'ये टैक्स तो हमारे बस के बाहर होता जा रहा है, यहां 9 अंडरग्राउंड गुट हैं और हर एक का यही दावा है कि उसे टैक्स लेने का अधिकार है।' पुलिस से मदद मांगने के सवाल पर अकाली कहती हैं 'कोई बिना बात के मरना नहीं चाहता।'

नगालैंड की ऐसी कोई छोटी-बड़ी दुकान, कंपनी नहीं है जो चरमपंथी संगठनों की इस वसूली का शिकार नहीं हुई है। NSCN(IM), NSCN(Unification), NSCN (Khaplang) और बाकी के गुट इस टैक्स को अपनी 'क्रांतिकारी सरकार' को चलाने की लिए जरुरी बताते हैं।

सवाल है कि ये वसूली होती कैसे है? नगालैंड में घुसने वाली हर ट्रक से उस पर लादे गए सामान के हिसाब से टैक्स लिया जाता है। इसके बाद सामान के गोदाम पर पहुंचने के बाद 'गोदाम टैक्स' लगाया जाता है। यही नहीं, रिटलेर और थोक व्यापारियों से अलग से वसूली की जाती है।

रिटायर्ड आईएएस अफसर खेकिए.के.सेमा ने बताया कि हर आयटम पर कम से कम सात बार टैक्स लगता है। सेमा उन चुनींदा लोगों में से हैं जो चरमपंथियों द्वारा लगाए जाने वाले टैक्स का विरोध कर रहे हैं। सेमा कहते हैं अगर सरकार को टैक्स से 50 करोड़ मिलते हैं तो ये अंडरग्राउंड गुट उससे 5 से 10 गुना ज्यादा की वसूली करते हैं।

हालांकि राज्य के व्यापारियों ने मिलकर Association Against Corruption and Unabated Taxation (ACAUT) संगठन के ज़रिए इस अवैध वसूली के खिलाफ आवाज़ उठाना शुरु कर दिया है। वहीं गांववालों ने भी ऐसा करना शुरु कर दिया है जैसे शौबा गांव की महिलाओं ने फरवरी में वसूली करने आए 20 चरमपंथियों को लाठियों से मार भगाया।

महिला एक्शन समिति की सदस्य अजिका ने बताया 'वो लोग काफी समय से यहां आ रहे थे, हमारी सहनशक्ति ने जवाब दे दिया था इसलिए हमने उन्हें मार भगाया।' 60 दिनों तक इस गांव की औरतें बारी बारी से निगरानी पर बैठती रही जिसके बाद नगा संगठनों ने आना बंद कर दिया।

चौंकाने वाली बात ये है कि सरकारी कर्मचारी भी अपनी कमाई का 24 प्रतिशत हिस्सा इन भूमिगत गुटों को देते हैं। सेमा के मुताबिक 'कोई विकल्प ही नहीं है। वेतन देने वाला अफसर 24 प्रतिशत घटा कर ही कर्मचारी को पैसा देता है। लोगों को नगा आंदोलन के लिए पैसा देने में समस्या नहीं है लेकिन इतने सारे गुटों ने जो टैक्स का पहाड़ लगा दिया है, उसने तो नगालैंड की आर्थिक हालात बिगाड़ कर रख दी है।'

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NSCN(IM) का कहना है कि इसमें ACAUT जैसे संगठनों का निहित स्वार्थ है, वहीं NSCN (Unification) ने माना कि व्यापारियों की बात में दम है लेकिन क्रांतिकारी सरकार भी टैक्स वसूल कर सकती है। पिछले हफ्ते हुए नगा शांति समझौते के बाद ये देखना होगा कि इस अवैध वसूली पर कितनी जल्दी और कैसे लगाम कसी जा सकती है और क्या नगा संगठन अपने इस हथियार को डालने के लिए राज़ी होंगे।