
महाराष्ट्र सरकार ने बुधवार को विवादास्पद कृषि कानूनों को लागू करने के लिए अगस्त में जारी अपने आदेश को वापस ले लिया है. बता दें कि कई राज्यों में इन कानूनों का जमकर विरोध किया जा रहा है. राज्य में सत्तारूढ़ गठबंधन कृषि कानूनों को लेकर दुविधा में रहा है. हालांकि कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने इन कानूनों का मजबूती से विरोध किया है.
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पंजाब और हरियाणा में किसानों के विरोध का समर्थन कर रही कांग्रेस कानून के सख्त खिलाफ है तो वहीं शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी ने संसद में कृषि कानूनों को "किसान विरोधी" करार दिया था. महाराष्ट्र कांग्रेस अध्यक्ष बालासाहेब थोरात ने पहले दावा किया था कि तीनों सत्ताधारी दलों ने कानून का विरोध किया है. पिछले सप्ताह, महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री और राकांपा नेता अजीत पवार ने घोषणा की थी कि राज्य सरकार कृषि सुधार कानूनों को लागू नहीं करेगी. यह मुद्दा आज कैबिनेट की बैठक में उठाया गया और आदेश वापस लेने का निर्णय लिया गया.
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फार्म बिलों को संसद के मानसून सत्र में लाया गया था. हंगामे के बीच, राज्यसभा से बिल को पारित करा लिया गया था. बाद में राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने मामले में आठ विपक्षी सदस्यों को निलंबित कर दिया था. तब से, भारत भर में विपक्षी दल और कई किसान समूह कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.
सरकार ने कहा है कि कानून किसानों को उनकी आय बढ़ाने और बिचौलियों के हस्तक्षेप से मुक्त करने में मदद करेंगे. वे किसानों को देश में कहीं भी उपज बेचने और बड़े कॉरपोरेशन से सीधे फसल बेचने में सक्षम बनाएंगे. हालांकि, किसान सीधे कॉर्पोरेट्स को फसल बेचने के लिए आशंकित हैं. उन्हें डर है कि सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य का भी उन्हें भुगतान नहीं किया जाएगा. नई प्रणाली को "किसान विरोधी" बताते हुए उन्होंने मांग की है कि कानूनों को निरस्त किया जाए.
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