यह देर रात का वक्त है लेकिन साई तेजा के हैदराबाद स्थित आवास में काम जारी है. 29 साल का यह techie (तकनीकी विशेषज्ञ) और उसके दोस्त, हर कोई (इसमें उसकी मां, दादी, भतीजी भी शामिल हैं) दवाओं के बड़े बक्सों को खोलने और इन्हें वापस छोटी किट में पैक करने में व्यस्त हैं ताकि इन्हें तेलंगाना के सुदूर स्थित आदिवासी इलाकों में वितरित किया जा सके. यह कोविड दवाएं, सेनिटरी मास्क, पीपीई किट, सैनिटाइजर और अन्य चीजें दानदाताओं की ओर से प्रदान की गई हैं और इन्हें उन इलाकों में बांटा जाना है जहां ऐसे संसाधनों की पहुंच नहीं है या फिर ये लोगों की आर्थिक क्षमता के बाहर हैं.
ऐसी 500 मेडिकल आइसोलेशन किट तैयार होने के बाद साई तेजा और उनके दोस्त राकेश इन्हें वाहन पर लोड करते हैं और अगली सुबह इस खेप के साथ Eturunagaram (एटुरुनगरम) के आदिवासी इलाकों में रवाना होते हैं जहां हैदराबाद से पहुंचने में पांच घंटे का वक्त लगता है. ये सभी काम करने वाले प्रोफेशल्स हैं, ऐसे में कार से अपनी यात्रा के दौरान भी ये तकनीकी विशेषज्ञ अपना काम करते रहे हैं. हैदराबाद के इन 10 तकनीकी विशेषज्ञों के लिए पिछले 15 माह का समय, घटनाप्रधान और सार्थक रहा है, पिछले साल मार्च में लॉकडाउन के दौरान ये भूखे प्रवासियों और जरूरतमंदों को भोजन कराने के मकसद से साथ आए थे. यह मुश्किलों से भरा ऐसा समय था जब पहली बार लॉकडाउन लगा था, ऐसे में इस ग्रुप को महसूस हुआ कि काम के लिहाज से उनकी जिंदगी में बदलाव आया है और उन्हें बाहर जाए बिना ही घर से काम करना पड़ेगा. इन्होंने खुद को व्यवस्थित किया और जरूरतमंद लोगों की मदद करना प्रारंभ कर दिया. जब खुद के संसाधन पर्याप्त साबित नहीं हुए तो इन्होंने ऐसे लोगों से ऑनलाइन संपर्क साधा जो जरूरतमंदों की मदद तो करना चाहते थे लेकिन पता नहीं था कि यह किस तरह की जा सकती है. साई तेजा कहते हैं, 'हम लोगों की चिंता और जरूरतों को समझ पा रहे थे. हमने संसाधन जुटाए और ट्रस्टी की तरह यह सुनिश्चित किया कि दानदाताओं का योगदान उन लोगों तक पहुंच पाए जिन्हें वाकई इसकी जरूरत है. हमने सूत्रधार की भूमिका निभाई और चीजों को जरूरतमंदों तक पहुंचाना संभव किया.'
हर गतिविधि की सबूत के तौर पर वीडियो रिकार्डिंग की गई और पारदर्शिता व विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए इस बात का पूरा हिसाब रखा गया कि दानदाताओं के 'योगदान' को किस तरह खर्च किया गया. जब कोरोना महामारी के कारण मौतों का आंकड़ा बढ़ने लगा तो इन्होंने शवों को पहुंचाने के लिए मुफ्त वाहन सेवा प्रारंभ की. इन्होंने उन लोगों का खर्च भी वहन किया जो एंबुलेंस का भारीभरकम खर्च चुकाने में सक्षम नहीं थे या जो आर्थिक कारण के चलते अंतिम संस्कार कर पाने की स्थिति में नहीं थे. एक अन्य कार्यकर्ता प्रशांत बताते हैं, 'हमने ऐसे प्रभावितों के अंतिम संस्कार के लिए लास्ट राइड सेवा(Last Ride Service) शुरू की जिनका कोई रिश्तेदार या करीबी ऐसा करने के लिए या तो उपलब्ध नहीं हैं या फिर इसका खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं. हमने एक वाहन किराए पर लिया, शव उठाने वालों (body carriers) और ड्राइवर की व्यवस्था की.' ये लोग 220 शवों का अंतिम संस्कार करा चुके हैं, इसमें कोरोना की पहली लहर के दौरान मारे गए 150 मरीज शामिल हैं. कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इन्होंने 169 शवों का अंतिम संस्कार कराया, जिसमें 120 कोरोना मरीज थे. 101 शवों के अंतिम संस्कार के लिए इन्होंने राशि दी.
कोरोना की दूसरी लहर के दौरान ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में कोरोना के केसों की संख्या में काफी तेजी आई, ऐसे में ये हैदराबाद से बाहर के स्थानों में भी पहुंचे. ये दवाओं और अन्य सामान की खेप के साथ सुदूर के क्षेत्रों में जाते हैं जहां ये मेडिकल किट, हेल्थकेयर एजेंसियों को सौंपी जाती हैं. जो इसे जरूरतमंदों के बीच बांटते हैं. प्रशांत कहते हैं कि यह अभूतपूर्व संकट के समय में एक-दूसरे की मदद करने का समय है क्योंकि सरकार अकेले सब कुछ नहीं कर सकती. यदि हम सब, एक-दूसरे की मदद करेंगे तो ऐसी कोशिशें बढ़ती जाएंगी. प्रशांत ने कहा कि कोइ भी नागरिक +917995404040 या +91-9490617440 नंबर पर कॉल करके 'फीड द नीडी' (Feed The Needy) सेवा का लाभ उठा सकता है.
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