फाइल फोटो
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की कोशिशों को सोमवार को उस समय एक बड़ी सफलता मिली, जब परिषद ने सुधारों पर चर्चा के मसौदे को मंजूरी दे दी। दरअसल संयुक्त राष्ट्र में सुधार और विस्तार की मांग काफी लंबे समय से चली आ रही है, जो शीत युद्ध खत्म होने के बाद 1992 से तेज हो गई थी, लेकिन अमेरिका ने साथ नहीं दिया।
बाद में भारत ने साल 1997 में जी-4 नाम से समूह बनाया, जिसमें भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील शामिल हुए। इस समूह ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए कूटनीतिक दबाव बनाया, लेकिन स्थायी सदस्य देशों ने इसके विरोध में एक नया समूह खड़ा कर दिया, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल था। तब से भारत लगातार विश्वभर से स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन जुटाता रहा, जिसमें उसे 23 साल बाद सफलता मिली है।
पहली बार लिखित सुझाव
भारत के लिए यह खास उपलब्धि इसलिए है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह पहला मौका है, जब महासभा के विभिन्न सदस्य राष्ट्रों ने इस सुधार प्रस्ताव के लिए अपने लिखित सुझाव दिए हैं। अभी तक अमेरिका, रूस, फ्रांस जैसे स्थायी सदस्य केवल बयान देकर ही इसका समर्थन करते थे, लेकिन लिखित में समर्थन करने के लिए तैयार नहीं थे। हालांकि इस बार भी अमेरिका, चीन और रूस इसमें शामिल नहीं हुए, लेकिन अन्य देशों ने उनका साथ नहीं दिया।
भारत को वीटो पावर मिलने के खिलाफ
स्थायी सदस्य देश चाहते हैं कि भारत को स्थायी सदस्यता मिलने पर भी वीटो पावर नहीं मिलना चाहिए, जबकि भारत वीटो पावर भी चाहता है, इसीलिए विस्तार पर चर्चा लंबे से टलती रही, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो सका। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य हैं, जिनमें अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस स्थायी सदस्य हैं। पांचों स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार है।
जापान-ब्राजील भी दौड़ में
स्थायी सदस्यता पाने की दौड़ में जापान और ब्राजील भी शामिल हैं। हालांकि भारत के पक्ष में एशिया, यूरोप, अफ्रीका और खाड़ी के अधिकतर देश हैं।
एक साल का इंतजार
-इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के अगले साल के एजेंडा पर बात की गई है जिसका विषय 'सुरक्षा परिषद की सदस्यता में बढ़ोतरी या बराबरी का प्रतिनिधित्व' है। इस प्रक्रिया में अभी एक साल का समय लगेगा।
-सदस्य देश विभिन्न बिंदुओं पर अपने सुझाव देंगे। जैसे विस्तार का आधार क्या हो? प्रक्रिया में क्या-क्या बदलाव किए जाएं, नए देशों को वीटो पावर दिया जाए या नहीं आदि।
-मसौदा तैयार हो जाने के बाद जनरल असेंबली में उसे वोटिंग के लिए रखा जाएगा। वहां पास होने के लिए दो-तिहाई वोट की जरूरत होगी।
- मसौदे पर वोटिंग के समय यदि दो-तिहाई यानी 129 देश समर्थन दे देंगे, तो स्थायी सदस्यों के लिए वीटो का उपयोग करना आसान नहीं होगा। ऐसे में भारत को 129 से अधिक देशों का समर्थन हासिल करना होगा।
बाद में भारत ने साल 1997 में जी-4 नाम से समूह बनाया, जिसमें भारत, जर्मनी, जापान और ब्राजील शामिल हुए। इस समूह ने मिलकर संयुक्त राष्ट्र में सुधार के लिए कूटनीतिक दबाव बनाया, लेकिन स्थायी सदस्य देशों ने इसके विरोध में एक नया समूह खड़ा कर दिया, जिसमें पाकिस्तान भी शामिल था। तब से भारत लगातार विश्वभर से स्थायी सदस्यता के लिए समर्थन जुटाता रहा, जिसमें उसे 23 साल बाद सफलता मिली है।
पहली बार लिखित सुझाव
भारत के लिए यह खास उपलब्धि इसलिए है क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में यह पहला मौका है, जब महासभा के विभिन्न सदस्य राष्ट्रों ने इस सुधार प्रस्ताव के लिए अपने लिखित सुझाव दिए हैं। अभी तक अमेरिका, रूस, फ्रांस जैसे स्थायी सदस्य केवल बयान देकर ही इसका समर्थन करते थे, लेकिन लिखित में समर्थन करने के लिए तैयार नहीं थे। हालांकि इस बार भी अमेरिका, चीन और रूस इसमें शामिल नहीं हुए, लेकिन अन्य देशों ने उनका साथ नहीं दिया।
भारत को वीटो पावर मिलने के खिलाफ
स्थायी सदस्य देश चाहते हैं कि भारत को स्थायी सदस्यता मिलने पर भी वीटो पावर नहीं मिलना चाहिए, जबकि भारत वीटो पावर भी चाहता है, इसीलिए विस्तार पर चर्चा लंबे से टलती रही, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हो सका। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 15 सदस्य हैं, जिनमें अमेरिका, रूस, चीन, ब्रिटेन और फ्रांस स्थायी सदस्य हैं। पांचों स्थायी सदस्यों के पास वीटो का अधिकार है।
जापान-ब्राजील भी दौड़ में
स्थायी सदस्यता पाने की दौड़ में जापान और ब्राजील भी शामिल हैं। हालांकि भारत के पक्ष में एशिया, यूरोप, अफ्रीका और खाड़ी के अधिकतर देश हैं।
एक साल का इंतजार
-इस प्रस्ताव में संयुक्त राष्ट्र के अगले साल के एजेंडा पर बात की गई है जिसका विषय 'सुरक्षा परिषद की सदस्यता में बढ़ोतरी या बराबरी का प्रतिनिधित्व' है। इस प्रक्रिया में अभी एक साल का समय लगेगा।
-सदस्य देश विभिन्न बिंदुओं पर अपने सुझाव देंगे। जैसे विस्तार का आधार क्या हो? प्रक्रिया में क्या-क्या बदलाव किए जाएं, नए देशों को वीटो पावर दिया जाए या नहीं आदि।
-मसौदा तैयार हो जाने के बाद जनरल असेंबली में उसे वोटिंग के लिए रखा जाएगा। वहां पास होने के लिए दो-तिहाई वोट की जरूरत होगी।
- मसौदे पर वोटिंग के समय यदि दो-तिहाई यानी 129 देश समर्थन दे देंगे, तो स्थायी सदस्यों के लिए वीटो का उपयोग करना आसान नहीं होगा। ऐसे में भारत को 129 से अधिक देशों का समर्थन हासिल करना होगा।
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