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This Article is From Oct 26, 2017

ताजमहल का डिजाइन खुद शाहजहां ने बनाया था, जानें अनसुनी सचाइयां, तथ्य और इतिहास...

शाहजहां और मुमताज़ का साथ 19 साल रहा और आखिरी सांसें लेती मुमताज़ को देखने के लिए शाहजहां दौड़े-दौड़े आए थे.

ताजमहल का डिजाइन खुद शाहजहां ने बनाया था, जानें अनसुनी सचाइयां, तथ्य और इतिहास...
ताजमहल का डिजाइन खुद शाहजहां ने बनाया था, जानें अनसुनी सचाइयां, तथ्य और इतिहास...
आइए आपको बताते हैं ताजमहल का पूरा इतिहास क्या है...कैसे शाहजहां के मन में अपनी बेग़म मुमताज़ महल के लिए इसे बनाने का ख्याल आया और भी इससे जुड़ी कई रोचक जानकारियां दे रहे हैं हमारे सहयोगी ऑनिन्द्यो चक्रवर्ती...

मुमताज़ महल को लेकर कई कहानियां मशहूर हैं. शाहजहां और मुमताज़ का साथ 19 साल रहा और आखिरी सांसें लेती मुमताज़ को देखने के लिए शाहजहां दौड़े-दौड़े आए थे. सगाई पहले मुमताज़ से ही हुई थी, लेकिन शादी किसी और बेगम से पहले की, और मुमताज़ शाहजहां की दूसरी बेगम बनीं. मगर तीन बीवियों में सबसे प्रिय मुमताज़ ही थीं. शाहजहां बाकी दोनों बेगमों को नेगलेक्ट किया करते थे.

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कहा जाता है कि मुमताज़ महल ने मरते वक्त मकबरा बनाए जाने की ख्वाहिश जताई थी. बता दें कि मुमताज का देहांत बुरहानपुर में हुआ था और शव को आगरा लाकर दफनाया गया था. पहले वहां शिव मंदिर होने का कहीं कोई सबूत नहीं मिलता है. आमेर के राजा से यमुना तट पर 1632 में मकबरे के लिए ज़मीन खरीद गई थी. बदले में आमेर के राजा को ज़मीन के चार टुकड़े दिए गए.

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इसके अलावा, मीर अब्दुल करीम और मुकम्मत खां को निर्माण का ज़िम्मा सौंपा गया. आर्किटेक्ट के तौर पर अबू ईसा, ईसा मोहम्मद एफ्फेंदी, जेरोनिमो वेरोनियो का भी ज़िक्र आता है लेकिन दरबारी इतिहासकार लाहौरी लिखते हैं कि ताजमहल खुद शाहजहां का बनाया डिज़ाइन है.

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जिन मजदूरों को इस काम में लगाया गया, उनके लिए मुमताज़ाबाद बसाया गया. इस काम में 5,000 से 20,000 मज़दूर लगाए गए. ताजमहल बनवाने के लिए जो पत्थर लाए जाते, उसके लिए 20 से 30 बैलों से खींची जाने वाली गाड़ियों का इस्तेमाल किया जाता. इसके लिए 10 मील लम्बा ऊंचा रास्ता बनाया गया. ताजमहल के लिए फारसी नक्काश अमानत खां ने नक्काशी शुरू की. दो जगह उन्होंने अपना नाम और तारीख भी लिखी है. 1635 और 1638 की दो तारीखें मिलती हैं.

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ताजमहल को चीन, रूस, मिस्र, श्रीलंका और तिब्बत से लाए जवाहरात से सजाया गया था. 1643 में अपनी बेगम के लिए शोक जताने ताजमहल गए शाहजहां ने मोतियों की चादर चढ़ाई थी.

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