सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्ली:
क्या धर्म के आधार वोट मांगने पर चुनाव रद्द किया जाए, सुप्रीम कोर्ट ने ये सुनवाई पूरी कर आदेश सुरक्षित रख लिया है. चुनाव में धर्म के दुरुपयोग को कैसे रोका जाए, इस मामले में दो हफ्ते तक सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संवैधानिक पीठ ने सुनवाई की है.
इस मामले में सुनवाई में प्रश्न है कि क्या किसी चुनाव को रद्द किया जाए अगर किसी प्रत्याशी ने, उसके एजेंट ने या फिर पार्टी और उसके किसी दूसरे धर्म के समर्थक ने धर्म के आधार पर वोट मांगी हो.
हिंदुत्व की व्याख्या नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने फिर साफ किया कि हिंदुत्व धर्म है या जीवन शैली, इसे मुद्दे पर 7 जजों की संविधान पीठ विचार नहीं कर रही है.
His पर उलझा है मामला
दरअसल सुप्रीम कोर्ट को जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधान 123 के अनुभाग 3 की व्याख्या करनी है. इसमें HIS religion (उसका धर्म) कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि His religion का मतलब क्या है? इसे किस तौर पर देखा जाये उम्मीदवार, एजेंट, या वोटर के धर्म के तौर पर? एक्ट के मुताबिक धर्म, जाति या भाषा के आधार पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण के तहत होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि धर्म मानने का अधिकार संविधान देता है लेकिन धर्म के आधार पर वोट मांगने का नहीं. अगर कोई धर्म गुरु किसी उम्मीदवार के लिए वोट मांगता है तो क्या उसे गलत माना जाएगा या नहीं? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिर साफ किया कि हिंदुत्व धर्म है या जीवन शैली, इसे मुद्दे पर 7 जजों की संविधान पीठ विचार नहीं कर रही है.
सीपीएम की दलील
सुनवाई में CPM की ओर से दलील दी गई कि धर्म के आधार पर कोई भी वोट मांगे, उस चुनाव को रद्द कर देना चाहिए.
बीजेपी प्रत्याशी की दलील
1990 के बीजेपी प्रत्याशी की दलील है कि इसे सिर्फ प्रत्याशी के धर्म के तौर पर देखा जाना चाहिए. इसके साथ ही कहा कि मुस्लिम लीग और अकाली दल जैसी पार्टी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए बनी हैं. ऐसे में धर्म के नाम पर वोट मांगने पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई जा सकती.
कांग्रेस प्रत्याशी की दलील
कांग्रेस प्रत्याशी की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि किसी प्रत्याशी, उसके एजेंट या किसी अन्य द्वारा धर्म के नाम पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण होता है. ऐसे में चुनाव रद्द किया जाना चाहिए. इंटरनेट के इस नए जमाने में उम्मीदवार सोशल मीडिया के जरिए धर्म के नाम पर वोटरों को लुभा सकता है, इसलिए बदलते वक्त में इस बारे में भी विचार करने की जरूरत है.
गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान की दलील
तीनों राज्यों की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि धर्म को चुनावी प्रक्रिया से अलग नहीं रखा जा सकता. हालांकि कोई प्रत्याशी धर्म के आधार पर वोट मांगता है तो ये भ्रष्ट आचरण होना चाहिए.
तीस्ता शीतलवाड
तीस्ता की ओर से दलील है कि सभी तरह की अपील जो धर्म के आधार पर की गई हों, उन्हें रोका जाए.
इस मामले में सुनवाई में प्रश्न है कि क्या किसी चुनाव को रद्द किया जाए अगर किसी प्रत्याशी ने, उसके एजेंट ने या फिर पार्टी और उसके किसी दूसरे धर्म के समर्थक ने धर्म के आधार पर वोट मांगी हो.
हिंदुत्व की व्याख्या नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने फिर साफ किया कि हिंदुत्व धर्म है या जीवन शैली, इसे मुद्दे पर 7 जजों की संविधान पीठ विचार नहीं कर रही है.
His पर उलझा है मामला
दरअसल सुप्रीम कोर्ट को जनप्रतिनिधि अधिनियम के प्रावधान 123 के अनुभाग 3 की व्याख्या करनी है. इसमें HIS religion (उसका धर्म) कहा गया है. सुप्रीम कोर्ट को तय करना है कि His religion का मतलब क्या है? इसे किस तौर पर देखा जाये उम्मीदवार, एजेंट, या वोटर के धर्म के तौर पर? एक्ट के मुताबिक धर्म, जाति या भाषा के आधार पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण के तहत होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि धर्म मानने का अधिकार संविधान देता है लेकिन धर्म के आधार पर वोट मांगने का नहीं. अगर कोई धर्म गुरु किसी उम्मीदवार के लिए वोट मांगता है तो क्या उसे गलत माना जाएगा या नहीं? हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिर साफ किया कि हिंदुत्व धर्म है या जीवन शैली, इसे मुद्दे पर 7 जजों की संविधान पीठ विचार नहीं कर रही है.
सीपीएम की दलील
सुनवाई में CPM की ओर से दलील दी गई कि धर्म के आधार पर कोई भी वोट मांगे, उस चुनाव को रद्द कर देना चाहिए.
बीजेपी प्रत्याशी की दलील
1990 के बीजेपी प्रत्याशी की दलील है कि इसे सिर्फ प्रत्याशी के धर्म के तौर पर देखा जाना चाहिए. इसके साथ ही कहा कि मुस्लिम लीग और अकाली दल जैसी पार्टी अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए बनी हैं. ऐसे में धर्म के नाम पर वोट मांगने पर पूरी तरह रोक नहीं लगाई जा सकती.
कांग्रेस प्रत्याशी की दलील
कांग्रेस प्रत्याशी की ओर से पेश वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि किसी प्रत्याशी, उसके एजेंट या किसी अन्य द्वारा धर्म के नाम पर वोट मांगना भ्रष्ट आचरण होता है. ऐसे में चुनाव रद्द किया जाना चाहिए. इंटरनेट के इस नए जमाने में उम्मीदवार सोशल मीडिया के जरिए धर्म के नाम पर वोटरों को लुभा सकता है, इसलिए बदलते वक्त में इस बारे में भी विचार करने की जरूरत है.
गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान की दलील
तीनों राज्यों की ओर से पेश एएसजी तुषार मेहता ने कोर्ट में कहा कि धर्म को चुनावी प्रक्रिया से अलग नहीं रखा जा सकता. हालांकि कोई प्रत्याशी धर्म के आधार पर वोट मांगता है तो ये भ्रष्ट आचरण होना चाहिए.
तीस्ता शीतलवाड
तीस्ता की ओर से दलील है कि सभी तरह की अपील जो धर्म के आधार पर की गई हों, उन्हें रोका जाए.
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