हरियाणा में 75 सीटों से ज्यादा जीतने का दावा करने वाली बीजेपी अब 35 से 40 सीटों के बीच सिमटती नजर आ रही है. ऐसा लग रहा है कि बीजेपी हरियाणा में पूरी तरह से अति आत्मविश्वास में डूबी हुई थी. उसे लग रहा था कि वह कमजोर विपक्ष का फायदा उठाकर आसानी से चुनाव जीत जाएगी. पार्टी के रणनीतिकारों को लगता था कि वह हरियाणा जैसे राज्य, जहां बड़ी संख्या में लोग सेना और सुरक्षाबलों में हैं, वहां पर वह अनुच्छेद 370 और राष्ट्रवाद के मुद्दे पर एकतरफा लड़ाई जीत जाएगी. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही थी. कांग्रेस के नेताओं को भी इसका अंदाजा नहीं रहा होगा कि वह बिना किसी रणनीति और बगावत को झेलते हुए बीजेपी को 50-50 लड़ाई लड़ने पर मजबूर कर देगी. मिल रही जानकारी के अनुसार अब पार्टी जेजेपी के दुष्यंत चौटाला के साथ मिलकर सरकार बनाने की कोशिश कर रही है. 25 अक्टूबर को दिल्ली में जेजेपी की बैठक है जिसमें इस मुद्दे पर फैसला लिया जाएगा. हरियाणा में बीजेपी की सत्ता से दूर रहने के ये 5 बड़े कारण हो सकते हैं:
किसानों की नाराजगी
हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की सरकार ने किसानों से बड़े-बड़े वादे किए थे जिसमें किसानों से उनकी फसल का उचित मूल्य दिलाने का वादा था. यह वादा बीजेपी ने चुनावी घोषणापत्र में किया गया था. लेकिन सच्चाई यह है कि खट्टर सरकार अपने इस वादे को सही तरीके से पूरा करने में सफल नहीं रही. हो सकता है किसानों से किए गए वादे पूरा न होना बीजेपी के प्रति उसकी नाराजगी का एक प्रमुख कारण बन गया हो.
मनोहर लाल खट्टर और मंत्रियों का बड़बोलापन
असम में जिस तरीके से एनआरसी लागू की जा रही है ठीक उसी तरीके से हरियाणा में भी लागू की जाएगी. यह बात हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कही थी. साथ ही इसका भी जिक्र किया था कि परिवार पहचान पत्र पर हरियाणा सरकार तेजी से कार्य कर रही है. इसके आंकड़ों का उपयोग राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में भी किया जाएगा. कुछ बयान अनुच्छेद 370 को लेकर भी आया था. बयान के कुछ अंश को लेकर काफी बवाल मचा था. उनके मंत्रियों के बयान भी कई बार पार्टी के बड़े नेताओं को परेशानी में डाल देते थें और बीजेपी को सफाई देनी पड़ती थी.
महिलाओं के साथ अपराधबीते 5 सालों में हरियाणा में महिलाओं के लेकर अपराध की कई घटनाएं हुई हैं और आंकड़े भी बताते हैं कि हरियाणा में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़े हैं. इन घटनाओं के लेकर सरकार के मंत्रियों का रवैया भी ठीक नहीं रहता था.
मंदी का भी असर
देश में आर्थिक मंदी की बात की जाती रही है. इसका असर ऑटो, टेक्साटाइल, इंफ्रास्ट्रक्चर समेत कई अन्य सेक्टर में भी देखने को मिल रहे हैं. राज्य में भी इसका असर हुआ. गुड़गांव, फरीदाबाद जैसे शहरों में कई ऑटो शो रूम से कर्मचारियों को निकाले गए. छोटे-छोटे उद्योग धंधे पर इसका काफी असर हुआ. पानीपत में कंबल उद्योग से जुड़े व्यापारी अपनी परेशानी बताते रहे हैं. इन सबका असर भी चुनाव में देखने को मिला.
बेरोजगारी
एक और मंदी की वजह निजी क्षेत्र में नौकरियां जा रही हैं तो दूसरी ओर हरियाणा में बेरोजगारी के मामले में नंबर वन पर पहुंच गया है. खट्टर सरकार के कार्यकाल में राज्य में निवेश भी नहीं हुआ जिससे नौकरियों के अवसर बढ़ते.
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