देशभर के किसान कृषि बिल का विरोध कर रहे हैं. उनकी मांग है कि फसलों का समर्थन मूल्य अनिवार्य किया जाए. न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों को क्यों नहीं मिल पा रहा है और ये किसानों के लिए इतनी जरुरी क्यों है. किसानों को क्या परेशानी आती है. हापुड़ के पीरनगर सूदना गांव के किसानों के बीच धान के समर्थन मूल्य को लेकर नाराजगी है. योगेंद्र और उनका पूरा गांव बासमती 1509 नंबर धान पैदा करते हैं, लेकिन बासमती की अच्छी गुणवत्ता के बावजूद उनको अपना धान 1500 से 1600 रुपए में आढ़ती को बेचना पड़ा जबकि मोटे धान का सरकारी समर्थन मूल्य 1868 रुपए है.
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समर्थन मूल्य कागजों में कुछ डिक्लेयर होता लेकिन मंडी में दो सौ ढ़ाई सौ रुपए कम ही मूंजी बिकी. पीछे देखा कि पंजाब में 2400 में मूंजी बिकी यहां 1600 रुपए में बिकी.
एक किसान का कहना है कि मैं चना पैदा करता हूं. बीते साल 35 कुंतल चना था. सरकारी समर्थन मूल्य 4700 रुपए था लेकिन मेरा चना 3700 में बिका. मैंने खूब बताया कि गाजियाबाद, मेरठ कहीं दाम मिल रहा हो तो मैं पहुंचा दूं लेकिन कहीं सरकारी तोल है ही नहीं, सिर्फ कागजों में है समर्थन मूल्य. समर्थन मूल्य आप दस हजार कर दो लेकिन कोई खरीदने वाला होगा ही नहीं तो क्या करेंगे समर्थन मूल्य का.
यही नहीं, अच्छे दाम मिलने की उम्मीद में यहां के किसान अपना धान 60 किमी दूर दिल्ली की नरेला मंडी तक लेकर गए, लेकिन वहां भी भाव 1500 से ऊपर नहीं मिला. इसी के चलते समर्थन मूल्य को लेकर चल रहे किसान आंदोलन के लिए सहानुभूति है.
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किसानों का कहना है कि हम अकेले जा नहीं पा रहे. पिटाई का डर है लेकिन किसान अच्छा कर रहे हैं. इनकी नीति खराब है हम चाहते हैं पहले समर्थन मूल्य घोषित किया जाए और उसी पर दाम मिले. हम चाहते हैं हमें सरकार दो हजार रुपए न दे लेकिन समर्थन मूल्य दे जो सरकार का वायदा है हमारी फसल का समर्थन मूल्य दे हमें सस्ता धान बाजार में बेचना पड़ रहा है.
सरकारी समर्थन मूल्य क्यों नहीं मिल रहा है ये जानने हम हापुड़ के नवीन गल्ला मंडी पहुंचे. बहुत खोजने पर हमें सरकारी धान खरीद केंद्र मिला. यहां न तो कोई बिक्री केंद्र का बोर्ड था और न ही किसी तरह की तैयारी. जब हमने खरीद केंद्र के इंचार्ज से फोन पर बात की तो बताया गया कि एक हजार क्विंटल धान खरीदा जा चुका है जो तय लक्ष्य से छह गुना ज्यादा है. लेकिन जहां सरकारी खरीद केंद्र पर सन्नाटा था वहीं आढ़ती धान खरीद रहे थे. लवली नारंग करीब बीस साल से किसानों का धान खरीद रहे हैं वो भी कृषि बिल से नाराज है उनका कहना है कि अभी गन्ना प्राइवेट कंपनी को किसान बेच रहा है क्या किसानों को पैसा मिल रहा है?
दरअसल न्यूनतम समर्थन मूल्य किसानों के लिए एक सरकारी गारंटी होती है कि इससे नीचे अगर फसल नहीं बिकती है तो वो सरकार को बेच सकता है. किसान चाहते हैं इस न्यूनतम मूल्य को अनिवार्य घोषित किया जाए. इस गारंटी के बिना उनका अनाज कौड़ियों के मोल बिकता रहेगा.
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