बनारस की मशहूर हस्त शिल्प गुलाबी मीनाकारी, लकड़ी के खिलौने और मिर्जापुर की दरी को देश के बौद्धिक सम्पदा अधिकार का दर्जा हासिल हो गया है। इस आशय का प्रमाण पत्र जीआई पंजीकरण कार्यालय चेन्नई द्वारा जारी कर दिया गया है।
जीआई का दर्जा मिलने से अब बनारस के इन कुटीर उद्योगों की पहचान तो विश्वस्तरीय होगी ही साथ ही कारोबार में भी बीस से तीस प्रतिशत का इज़ाफा होगा। साथ ही अब इन हस्तशिल्पों की नक़ल कर कोई अपना नहीं बता सकेगा, लिहाजा देश के किसी भी कोने में बनने वाला बनारसी लकड़ी का खिलौना, मिर्ज़ापुर की दरी, और गुलाबी मीनाकारी नहीं कहलाएगी।
जीआई यानी ज्योग्राफिकल इंडिकेशन के लिये किसी उत्पाद को किसी एक विशेष स्थान में, उसकी ऐतिहासिकता और उसकी विशेषता के साथ स्किल के बैकग्राउंड में रखते हुए दिया जाता है। गौरतलब है कि बनारस की गुलाबी मीनाकारी, मिर्जापुर की दरी, और लकड़ी का खिलौना अब ख़त्म होने के कगार पर पहुंच गए थे। उन्हें इस क़ानूनी संरक्षण से फिर से नया जीवन मिल सकता है।
जनवरी 2013 में गुलाबी मीनाकारी के लिए और अक्टूबर 2013 में दरी और लकड़ी के खिलौने के लिए नाबार्ड के सहयोग से ह्यूमन वेलफेयर असोसिएशन के जरिये इस उद्योग में लगी तीन हस्तशिल्प संस्थाओं ने आवेदन किया था। जिसमें अब जाकर सफलता मिली है।
इसके पहले 2009 में बनारसी साड़ी एवं ब्रोकेड्स को तथा 2010 में भदोही की कालीन को यह दर्जा मिल चुका है। लिहाजा सबसे बड़ी बात यह है अब वाराणसी के 5 हस्तशिल्प को जीआई का दर्ज़ा मिल गया है जिससे वाराणसी देश का सबसे बड़ा बौद्धिक सम्पदा अधिकार का हब बन गया है।
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