गुजरात उच्च न्यायालय ने तीन दशक से अधिक समय बाद एमबीबीएस कोर्स में फिर से दाखिले की मांग करने वाले 50 वर्षीय व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए बुधवार को उसे फटकार लगायी और कहा कि याचिकाकर्ता को उसकी मर्जी के अनुसार काम करने और लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती. न्यायमूर्ति भार्गव डी करिया की अदालत कंदीप जोशी द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी जोकि वर्ष 1988 में बड़ौदा मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की द्वितीय वर्ष की परीक्षा में शामिल हुए थे और बाद में व्यक्तिगत कारणों से कोर्स बीच में ही छोड़ दिया था.
जोशी के वकील ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता, जो वर्तमान में किसी अन्य व्यवसाय में है, अपना एमबीबीएस कोर्स पूरा करना चाहते हैं और उसी कॉलेज में परीक्षा देने के इच्छुक हैं, जहां वह करीब 30 साल से अधिक समय पहले पढ़ रहे थे.
अदालत ने जानना चाहा कि क्यों याचिकाकर्ता को जीवन के इस पड़ाव पर एमबीबीएस कोर्स करना जारी रखना चाहिए. अदालत ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा, ''मान लीजिए (इस तरह के प्रवेश के लिए) इस तरह का कोई नियम नहीं है. फिर भी, आपको अपनी मर्जी से काम करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, खासकर तब, जब आप लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने जा रहे हैं.''
जब जोशी के वकील ने दलील दी कि याचिकाकर्ता परीक्षा देने से पहले तीसरे वर्ष के पाठ्यक्रम के अध्ययन के इच्छुक हैं, तो अदालत ने कहा कि ऐसी अनुमति नहीं दी जा सकती.
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