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This Article is From Dec 05, 2016

ग्राउंड रिपोर्ट : ग्रामीण इलाकों में खत्‍म नहीं हो रहा कैश का इंतजार, सरकारी दावे नाकाफी

ग्राउंड रिपोर्ट : ग्रामीण इलाकों में खत्‍म नहीं हो रहा कैश का इंतजार, सरकारी दावे नाकाफी
हापुड़: सरकार के तमाम दावों के बावजूद ग्रामीण इलाक़ों में कैश का संकट बना हुआ है. सबसे ज़्यादा मार उन लोगों पर पड़ रही है जो सबसे ज़रूरतमंद या किसी इमरजेंसी के शिकार हैं. हापुड़ के देहरा दांव में रहने वाले मुख्तयार का पांव एक हादसे में 15 दिन पहले टूट गया. पास में कैश न होने की वजह से इलाज तक कराना मुहाल हो गया है?

मुख्तयार ने एनडीटीवी से कहा, "कोई डॉक्टर मेरा इलाज करने को तैयार नहीं है. सभी डॉक्टर कहते हैं, कैश लेकर आओ. मेरा बैंक में खाता भी नहीं है. मैं कहां से पैसे लाऊं?" परिवार का संकट बढ़ता जा रहा है. क्योंकि गांवों में मज़दूरी के अवसर कम होने से कमाई के अवसर भी घटते जा जा रहे हैं.

देहरा गांव की सिंडिकेट बैंक की शाखा के बाहर लाइन में खड़े लोग गुस्से में हैं. लाइन में ऐसे कई लोग हैं जो पिछले तीन-चार दिनों से लगातार लाइन में खड़े हो रहे हैं लेकिन पैसे नहीं निकाल पाए. परिवार में कैश खत्म होने से आम रोज़मर्रा की चीज़ें खरीदना मुश्किल हो रहा है. लाइन में खड़ी महिलाएं कहती हैं कि दुकानदारों ने उधार देना बंद कर दिया है. इसलिए अकसर खाने-पीने का सामान खरीदना हर रोज़ मुश्किल हो रहा है.

यहां से एक-दो किलोमीटर आगे धौलाना के ज़िला सहकारी बैंक की शाखा ख़ाली पड़ी है. शुक्रवार से बैंक में एक भी रुपया नहीं आया है. बैंक के मैनेजर अनिल कहते हैं, "हमारे पास कैश पिछले शुक्रवार से नहीं आया है. जिसकी वजह से हम पिछले तीन दिन से कैश किसानों और दूसरे स्थानीय लोगों को नहीं बांट पाए हैं.'' बैंक के कैशियर पंकज कहते हैं, "नोटबंदी की वजह से सहकारी बैंकों की छवि खराब हुई है. लोग नाराज़ हो रहे हैं और अपने अकाउंट का पैसा दूसरे बैंकों में ट्रांसफर करने की अर्ज़ी दे रहे हैं. बैंक को बहुत नुकसान हो रहा है."

सरकार ने 23 नवंबर को ऐलान किया था कि NABARD के ज़रिये ज़िला सहकारी बैंकों को 21000 करोड़ रुपया अलग से रबी सीज़न के लिए मुहैया कराया जाएगा जिससे किसानों के पास क्रेडिट बेहतर तरीके से पहुंचे. लेकिन 12 दिन बाद ज़िला सहकारी बैंक की धौलाना शाखा में सिर्फ 4 लाख रुपया पहुंचा है. मुश्किल ये है कि पिछले तीन दिनों से बैंक में एक रुपया भी नहीं बांटा जा सका है.

कैश का ये संकट अब नए संकट पैदा कर रहा है. सहकारी बैंक में ही हमें विमल मिले, जिन्हें अपने बच्चों की स्कूल फीस जमा कराने की फिक्र है. विमल कहते हैं, "एंजल इंटरनेशनल स्कूल ने 5 दिसंबर की डेडलाइन दे दी है फीस जमा करने के लिए, 12000 रुपये जमा करने हैं. स्कूल ने कहा है कि मेरे दोनों बच्चे एक्ज़ाम नहीं दे पाएंगे अगर हमने फीस जमा नहीं की." ज़ाहिर है... ये नोटबंदी ग्रामीण भारत पर अब ख़ासी भारी पड़ने लगी है.

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