प्रतीकात्मक चित्र
भोपाल:
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में गुरुवार से शुरू हो रहे 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन के स्वरूप पर रचनाधर्मियों ने बुधवार को चिंता जाहिर की और कहा कि सरकार ने इस सम्मेलन को व्यापार मेला बना दिया है।
रचनाधर्मियों ने आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सम्मेलन में व्यापारिक कंपनियों की भरमार है, और उद्घाटन से लेकर समापन समारोह तक के मंचों पर नेता और अभिनेता ही नजर आने वाले हैं। उन्होंने कहा है कि इस आयोजन की कमान बॉलीवुड को सौंप दी जाती तो बेहतर होता।
भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी नगर में बदल चुके लाल परेड मैदान में गुरुवार 10 सितम्बर से तीन दिवसीय 10वां विश्व हिंदी सम्मेलन शुरू हो रहा है। इस सम्मेलन का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उद्घाटन करने वाले हैं। आयोजन में प्रदेश के प्रमुख साहित्यकारों, लेखकों को अब तक आमंत्रण नहीं मिला है।
जाने माने कवि राजेश जोशी ने कहा, "साहित्यकारों को बुलाया गया या नहीं बुलाया गया है, यह सवाल नहीं है, बल्कि चिंता इस बात की है कि इस आयोजन को व्यापार मेला बना दिया गया है। गूगल, सीडेक जैसी सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनियां बुलाई गई हैं, ये कंपनियां तकनीक तो दे सकती हैं, भाषा में मदद नहीं सकतीं।"
उन्होंने आगे कहा, "लेखकों और साहित्यकारों को भाषा के संवाहक की प्रतिष्ठा दी जाती है, मगर इस सम्मेलन में देश-प्रदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकारों को हाशिए पर रखा गया है। उन्हें आमंत्रण पाने के लिए जिलाधिकारी से मिलना होगा। यह अपमानजनक है।"
आयोजकों और सरकार की ओर से बार-बार कहा जा रहा है कि यह सम्मेलन साहित्य सम्मेलन नहीं है। इस पर जाने-माने लेखक रामप्रकाश त्रिपाठी ने कहा, "कोई भी भाषा लेखक से परे नहीं हो सकती। इस सम्मेलन में भाषाविदों को भी नहीं बुलाया गया है। अगर अभिनेता अमिताभ बच्चन ही हिंदी के प्रचार-प्रसार का हिस्सा हो सकते हैं, तो यह आयोजन बॉलीवुड को सौंप दिया जाना चाहिए।"
सामाजिक कार्यकर्ता और चिंतक लज्जाशंकर हरदेनिया ने कहा कि 1918 में पहला हिदी सम्मेलन महात्मा गांधी की अगुवाई में हुआ था। उस समय सम्मेलन आयोजित करने वाली संस्था 'हिंदी प्रचारिणी सभा, इंदौर' के किसी भी सदस्य को इस सम्मेलन में नहीं बुलाया गया है।
संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित राजेश शर्मा, कुमार अंबुज और महेंद्र सिंह ने कहा, "विश्व हिंदी सम्मेलन में भाषा के विकास और विस्तार पर चर्चा होनी चाहिए, भू-मंडलीकरण के इस दौर में भाषाई भूमंडलीकरण के नाम पर जारी अंग्रेजी भाषा के हिंसक साम्राज्यवाद के विरोध पर विचार होना चाहिए। वास्तव में यह सम्मेलन लोगों को जोड़ने, हिंदी से जुड़ी बोलियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए होना चाहिए था। मगर यह अफसरशाही की भेंट चढ़ गया है।"
रचनाधर्मियों ने बीते दो वषरें में तीन विचारकों की हुई हत्या पर भी चिंता जताई और कहा कि इन हत्याओं पर प्रधानमंत्री का मौन चिंताजनक है। यह विचार, असहमति, लोकतंत्र की हत्या है। इस पर प्रधानमंत्री को मौन तोड़ना चाहिए।
रचनाधर्मियों ने आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सम्मेलन में व्यापारिक कंपनियों की भरमार है, और उद्घाटन से लेकर समापन समारोह तक के मंचों पर नेता और अभिनेता ही नजर आने वाले हैं। उन्होंने कहा है कि इस आयोजन की कमान बॉलीवुड को सौंप दी जाती तो बेहतर होता।
भोपाल में माखनलाल चतुर्वेदी नगर में बदल चुके लाल परेड मैदान में गुरुवार 10 सितम्बर से तीन दिवसीय 10वां विश्व हिंदी सम्मेलन शुरू हो रहा है। इस सम्मेलन का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उद्घाटन करने वाले हैं। आयोजन में प्रदेश के प्रमुख साहित्यकारों, लेखकों को अब तक आमंत्रण नहीं मिला है।
जाने माने कवि राजेश जोशी ने कहा, "साहित्यकारों को बुलाया गया या नहीं बुलाया गया है, यह सवाल नहीं है, बल्कि चिंता इस बात की है कि इस आयोजन को व्यापार मेला बना दिया गया है। गूगल, सीडेक जैसी सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनियां बुलाई गई हैं, ये कंपनियां तकनीक तो दे सकती हैं, भाषा में मदद नहीं सकतीं।"
उन्होंने आगे कहा, "लेखकों और साहित्यकारों को भाषा के संवाहक की प्रतिष्ठा दी जाती है, मगर इस सम्मेलन में देश-प्रदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकारों को हाशिए पर रखा गया है। उन्हें आमंत्रण पाने के लिए जिलाधिकारी से मिलना होगा। यह अपमानजनक है।"
आयोजकों और सरकार की ओर से बार-बार कहा जा रहा है कि यह सम्मेलन साहित्य सम्मेलन नहीं है। इस पर जाने-माने लेखक रामप्रकाश त्रिपाठी ने कहा, "कोई भी भाषा लेखक से परे नहीं हो सकती। इस सम्मेलन में भाषाविदों को भी नहीं बुलाया गया है। अगर अभिनेता अमिताभ बच्चन ही हिंदी के प्रचार-प्रसार का हिस्सा हो सकते हैं, तो यह आयोजन बॉलीवुड को सौंप दिया जाना चाहिए।"
सामाजिक कार्यकर्ता और चिंतक लज्जाशंकर हरदेनिया ने कहा कि 1918 में पहला हिदी सम्मेलन महात्मा गांधी की अगुवाई में हुआ था। उस समय सम्मेलन आयोजित करने वाली संस्था 'हिंदी प्रचारिणी सभा, इंदौर' के किसी भी सदस्य को इस सम्मेलन में नहीं बुलाया गया है।
संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित राजेश शर्मा, कुमार अंबुज और महेंद्र सिंह ने कहा, "विश्व हिंदी सम्मेलन में भाषा के विकास और विस्तार पर चर्चा होनी चाहिए, भू-मंडलीकरण के इस दौर में भाषाई भूमंडलीकरण के नाम पर जारी अंग्रेजी भाषा के हिंसक साम्राज्यवाद के विरोध पर विचार होना चाहिए। वास्तव में यह सम्मेलन लोगों को जोड़ने, हिंदी से जुड़ी बोलियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए होना चाहिए था। मगर यह अफसरशाही की भेंट चढ़ गया है।"
रचनाधर्मियों ने बीते दो वषरें में तीन विचारकों की हुई हत्या पर भी चिंता जताई और कहा कि इन हत्याओं पर प्रधानमंत्री का मौन चिंताजनक है। यह विचार, असहमति, लोकतंत्र की हत्या है। इस पर प्रधानमंत्री को मौन तोड़ना चाहिए।
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