नई दिल्ली:
मैगी के ख़तरनाक होने के सवाल पर देश में एक बड़ी बहस शुरू हो गयी है। लेकिन ये सवाल भी महत्वपूर्ण है कि जो दूसरे खाद्य पदार्थ बाज़ार में बिक रहे हैं उनकी असलियत क्या है? क्या वे मैगी से कम नुकसानदेह हैं? क्या सरकार के पास इनकी नियमित जांच का कोई तरीका है?
बाराबंकी में एक अधिकारी की पहल पर शुरू हुई मैगी की जांच एक राष्ट्रीय मुद्दा ज़रूर बन गई है लेकिन ये सवाल भी खड़ी कर रही है कि क्या नूडल्स और दूसरे ऐसे खाद्य पदार्थों की जांच नहीं होनी चाहिए। बुधवार को दिल्ली सरकार ने इस दिशा में पहल करते हुए मैगी पर 15 दिन के लिए प्रतिबंध लगाने के साथ ही दूसरे नूडल्स प्रोडक्ट्स के नमूने इकट्ठा करना शुरू कर दिया।
अब तैयारी दिल्ली सरकार के लैब्स में इनकी बारिकी से जांच कराने की है। दिल्ली के स्वास्थय मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा है कि जो भी दोषी पाया जाता है उसके खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जाएगी। लेकिन असली सवाल ये है कि इतने वर्षों तक हमारे राज्यों के खाद्य सुरक्षा महकमों की नज़र ऐसी किसी गड़बड़ी पर क्यों नहीं पड़ी? क्या हम वाकई इस बात को लेकर संजीदा हैं कि हम बाज़ार का जो बहुत सारा खाते-पीते हैं, उनमें ख़तरनाक कंटेंट ज़्यादा तो नहीं हैं।
डॉक्टर शिखा शर्मा कहती हैं कि मैगी पर प्रतिबंध लगाने से नूडल्स के प्रेमी दूसरे ब्रैंड्स की तरफ जा सकते हैं। ऐसें में ये बेहद ज़रूरी है कि सभी खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता की नियमित जांच के लिए बड़े स्तर पर पहल शूरू की जाए। जहां तक मैगी का सवाल है, तमाम राज्य उसके नमूनों की जांच करा रहे हैं। यूपी और दिल्ली में नमूनों में गड़बड़ी मिली है, जबकि गोवा, चंडीगढ़ और केरल में कुछ नहीं निकला है।
उधर अखिल भारतीय खाद्य प्रसंस्करण संघ का कहना है, एमएसजी किसी भी पदार्थ में कुदरतन होती है। लेकिन नेस्ले को बताना होगा कि इसमें सीसा ज़्यादा क्यों है। अखिल भारतीय खाद्य प्रसंस्करण संघ के उपाध्यक्ष सागर कुराड़े ने एनडीटीवी से बातचीत में ये बात कही।
उनका कहना है कि पूरे देश में खाद्य सामग्रियों में सीसा है या नहीं इसके लिए भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के मानकों के आधार पर जांच होनी चाहिये। उधर नेस्ले अभी तक ये कहती रही है कि मैगी में सीसे या एमएसजी की मात्रा उसके लैब में ज़्यादा नहीं निकली है।
बाराबंकी में एक अधिकारी की पहल पर शुरू हुई मैगी की जांच एक राष्ट्रीय मुद्दा ज़रूर बन गई है लेकिन ये सवाल भी खड़ी कर रही है कि क्या नूडल्स और दूसरे ऐसे खाद्य पदार्थों की जांच नहीं होनी चाहिए। बुधवार को दिल्ली सरकार ने इस दिशा में पहल करते हुए मैगी पर 15 दिन के लिए प्रतिबंध लगाने के साथ ही दूसरे नूडल्स प्रोडक्ट्स के नमूने इकट्ठा करना शुरू कर दिया।
अब तैयारी दिल्ली सरकार के लैब्स में इनकी बारिकी से जांच कराने की है। दिल्ली के स्वास्थय मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा है कि जो भी दोषी पाया जाता है उसके खिलाफ सख्ती से कार्रवाई की जाएगी। लेकिन असली सवाल ये है कि इतने वर्षों तक हमारे राज्यों के खाद्य सुरक्षा महकमों की नज़र ऐसी किसी गड़बड़ी पर क्यों नहीं पड़ी? क्या हम वाकई इस बात को लेकर संजीदा हैं कि हम बाज़ार का जो बहुत सारा खाते-पीते हैं, उनमें ख़तरनाक कंटेंट ज़्यादा तो नहीं हैं।
डॉक्टर शिखा शर्मा कहती हैं कि मैगी पर प्रतिबंध लगाने से नूडल्स के प्रेमी दूसरे ब्रैंड्स की तरफ जा सकते हैं। ऐसें में ये बेहद ज़रूरी है कि सभी खाद्य सामग्रियों की गुणवत्ता की नियमित जांच के लिए बड़े स्तर पर पहल शूरू की जाए। जहां तक मैगी का सवाल है, तमाम राज्य उसके नमूनों की जांच करा रहे हैं। यूपी और दिल्ली में नमूनों में गड़बड़ी मिली है, जबकि गोवा, चंडीगढ़ और केरल में कुछ नहीं निकला है।
उधर अखिल भारतीय खाद्य प्रसंस्करण संघ का कहना है, एमएसजी किसी भी पदार्थ में कुदरतन होती है। लेकिन नेस्ले को बताना होगा कि इसमें सीसा ज़्यादा क्यों है। अखिल भारतीय खाद्य प्रसंस्करण संघ के उपाध्यक्ष सागर कुराड़े ने एनडीटीवी से बातचीत में ये बात कही।
उनका कहना है कि पूरे देश में खाद्य सामग्रियों में सीसा है या नहीं इसके लिए भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण के मानकों के आधार पर जांच होनी चाहिये। उधर नेस्ले अभी तक ये कहती रही है कि मैगी में सीसे या एमएसजी की मात्रा उसके लैब में ज़्यादा नहीं निकली है।
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