प्रतीकात्मक फोटो.
बेंगलुरु:
सूचना तकनीक क्रांति ने किस तरह दुनिया को एक सूत्र में पिरो दिया है उसकी जीती जागती मिसाल है कर्नाटक के कोलार का 10 साल का एक बच्चा जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट की ज़रूरत थी और यह ज़रूरत पूरी की जर्मनी के एक शख़्स ने. अब यह बच्चा बिल्कुल तंदरुस्त है.
अस्पताल ने इस 10 साल के बच्चे को सैम नाम दिया है. यह बच्चा अब बिल्कुल ठीक है लेकिन पिछले छह महीने से यह जिंदगी और मौत के बीच झूलता रहा क्योंकि उसे ऐपलस्टिक एनीमिया नाम की बीमारी थी जिसका इलाज सिर्फ बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन था. कॉन्ट्रैक्ट पर मज़दूरी करने वाले सैम के पिता सुरेश के लिए सैम के इलाज के लिए 30 लाख रुपये का इंतजाम करना नामुमकिन था. लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि यह नामुमकिन मुमकिन हो गया.
सैम के पिता सुरेश बी ने बच्चे के स्वस्थ होने पर कहा "मेरे बेटे को नई जिंदगी मिली है. मैं बहुत खुश हूं. सैम का बोन मैरो देश के डोनरों से मैच नहीं हो रहा था लेकिन ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन में जर्मनी में एक डोनर के प्रोफाइल से सैम का प्रोफाइल मिला और फिर उसका ट्रांसप्लांटेशन किया गया.
यह भी पढ़ें : एक पाकिस्तानी महिला ने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से कहा शुक्रिया...
बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने वाले चिकित्सक डॉ सुनील भट्ट ने बताया कि बोन मैरो मैच होने के बाद एक मानव कूरियर उसे जर्मनी से लेकर यहां आया.
सैम का का ट्रांसप्लांटेशन नारायण हेल्थ सिटी के मजूमदार शॉ कैंसर सेन्टर में हुआ. लेकिन 30 लाख रुपये के आसपास का खर्चा आखिर एक कॉन्ट्रैक्ट वर्कर के पास कैसे आया? इस सवाल का जवाब नारायण ह्र्दयालय की डॉ देवी शेट्टी से मिला. उन्होंने बताया कि देखिए केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं से मिलने वाले फंड के साथ साथ कई लोग निजी तौर पर भी मदद देते हैं. उसी से यह संभव हो पाया.
VIDEO : बेबी आरिशा को मदद का इंतजार
फिलहाल देश मे दो लाख बोन मैरो डोनर हैं जबकि जरूरत 10 लाख डोनरों की है.
अस्पताल ने इस 10 साल के बच्चे को सैम नाम दिया है. यह बच्चा अब बिल्कुल ठीक है लेकिन पिछले छह महीने से यह जिंदगी और मौत के बीच झूलता रहा क्योंकि उसे ऐपलस्टिक एनीमिया नाम की बीमारी थी जिसका इलाज सिर्फ बोन मैरो ट्रांसप्लांटेशन था. कॉन्ट्रैक्ट पर मज़दूरी करने वाले सैम के पिता सुरेश के लिए सैम के इलाज के लिए 30 लाख रुपये का इंतजाम करना नामुमकिन था. लेकिन कुछ ऐसा हुआ कि यह नामुमकिन मुमकिन हो गया.
सैम के पिता सुरेश बी ने बच्चे के स्वस्थ होने पर कहा "मेरे बेटे को नई जिंदगी मिली है. मैं बहुत खुश हूं. सैम का बोन मैरो देश के डोनरों से मैच नहीं हो रहा था लेकिन ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन में जर्मनी में एक डोनर के प्रोफाइल से सैम का प्रोफाइल मिला और फिर उसका ट्रांसप्लांटेशन किया गया.
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बोन मैरो ट्रांसप्लांट करने वाले चिकित्सक डॉ सुनील भट्ट ने बताया कि बोन मैरो मैच होने के बाद एक मानव कूरियर उसे जर्मनी से लेकर यहां आया.
सैम का का ट्रांसप्लांटेशन नारायण हेल्थ सिटी के मजूमदार शॉ कैंसर सेन्टर में हुआ. लेकिन 30 लाख रुपये के आसपास का खर्चा आखिर एक कॉन्ट्रैक्ट वर्कर के पास कैसे आया? इस सवाल का जवाब नारायण ह्र्दयालय की डॉ देवी शेट्टी से मिला. उन्होंने बताया कि देखिए केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं से मिलने वाले फंड के साथ साथ कई लोग निजी तौर पर भी मदद देते हैं. उसी से यह संभव हो पाया.
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फिलहाल देश मे दो लाख बोन मैरो डोनर हैं जबकि जरूरत 10 लाख डोनरों की है.
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