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This Article is From Jul 08, 2017

G-20 : जलवायु परिवर्तन पर अलग-थलग पड़ा अमेरिका, बाकी 19 देशों ने पेरिस डील का संकल्प दोहराया

अमेरिका को छोड़कर जी-20 के बाकी सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन के लिए 2015 में किए गए पेरिस समझौते के प्रति संकल्प दोहराया है.

G-20 : जलवायु परिवर्तन पर अलग-थलग पड़ा अमेरिका, बाकी 19 देशों ने पेरिस डील का संकल्प दोहराया
जी-20 सम्मेलन के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति से बातचीत करते भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
हैमबर्ग: अमेरिका के अलग रास्ता अपना लेने के बावजूद जी-20 के बाकी सभी देशों ने जलवायु परिवर्तन के लिए 2015 में किए गए पेरिस समझौते के प्रति संकल्प दोहराया है. जी-20 सम्मेलन के दूसरे दिन दिए गए साझा बयान में अमेरिका को छोड़ बाकी 19 देशों ने कहा है कि पेरिस डील से पीछे नहीं हटा जा सकता.

साझा बयान में संयुक्त राष्ट्र के उस संकल्प को पूरा करने के महत्व को दोहराया गया है जिसमें साफ ऊर्जा के इस्तेमाल बढ़ाने और क्लाइमेट के खतरों से लड़ने के लिए विकसित देशों को गरीब और विकासशील देशों की मदद करेंगे. साझा बयान में इन देशों ने पेरिस समझौते के तहत किये वादों को तेज़ी से पूरा करने की बात कही है. गौरतलब है कि 2 साल पहले जलवायु परिवर्तन के खतरों से लड़ने और दुनिया के तापमान को बढ़ने से रोकने के लिए पेरिस में करीब 200 देशों ने एक संधि की जिसमें सभी देशों ने ग्लोबल वॉर्मिग औऱ कार्बन उत्सर्जन को रोकने के लिए साफ ऊर्जा के लिए अपने अपने लक्ष्य तय किए हैं.

उधर, अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पद भार संभालने के बाद पेरिस डील से बाहर आने का ऐलान कर दिया. ट्रंप का कहना है कि जलवायु परिवर्तन चीन जैसे देशों का खड़ा किया हुआ हौव्वा है. उनके मुताबिक भारत औऱ चीन जैसे देशों को अमेरिका को अरबों डॉलर देने होंगे जो अमेरिका के हित में नहीं हैं. साझा बयान में जी-20 देशों ने माना है कि अमेरिका पेरिस समझौते से बाहर आ गया है और वह तत्काल प्रभाव से उन कोशिशों को रोक देगा जो वादे पेरिस डील में किए गए हैं. बयान में ये भी कहा गया है कि अमेरिका पूरी दुनिया के देशों को पारम्परिक ईंधन ज्यादा प्रभावी तरीके से और साफ सुथरे तरीके से इस्तेमाल करने में मदद करेगा.

साझा बयान से साफ है जहां अमेरिका के पक्ष के जगह मिली है वहीं बाकी देशों ने जलवायु परिवर्तन से लड़ने में एकजुटता दिखाई है. जलवायु परिवर्तन का अगला सम्मेलन जर्मनी के बोन में इसी साल नवंबर में होना है. अब देखना है कि क्या यूरोपीय देश अपने संकल्प को पूरा करेंगे? नए परिदृश्य में चीन और भारत जैसे देशों के लिए अगुवाई की संभावनाएं भी बन रही हैं.

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