प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:
भारत सरकार की छह अत्याधुनिक पनडुब्बी निर्माण करने की महत्वकांक्षी परियोजना के लिये चार विदेशी कंपनियां मुख्य रूप से सामने आई हैं. यह परियोजना 60,000 करोड़ रुपये की है और इसे रणनीतिक भागीदारी नमूने के तहत पूरा किया जाएगा. ये पनडुब्बियां रडार की पकड़ में नहीं आने वाली प्रौद्योगिकी से लैस होंगी. आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी देते हुये कहा कि फ्रांस की कंपनी नावन ग्रुप, रूस की रोसोबोरोनएक्सपोटर्स रुबिन डिजाइन ब्यूरो, जर्मनी की थिसेनक्रुप मरीन सिस्टम्स और स्वीडन की साब ग्रुप ने सरकार की इस परियोजना के लिये प्रस्ताव के लिये आग्रह पर अपना जवाब भेजा है.
सूत्रों ने बताया की स्पेन की नवान्तिया और जापान की मित्शुबिशी कवासाकी हैवी इंडस्ट्रीज ने प्रस्ताव के आग्रह पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई. हालांकि, इन कंपनियों को परियोजना के लिये प्रमुख दावेदार माना जा रहा था. ऐसे संकेत हैं कि जापान इस परियोजना के लिये सरकार से सरकार के स्तर पर इच्छुक था. इस परियोजना के लिये प्रस्ताव के लिये आग्रह पर जवाब देने की अंतिम तिथि 16 अक्टूबर रखी गई थी.
सरकार की महत्वकांक्षी ‘रणनीतिक भागीदारी’ नमूने के तहत इसे रक्षा क्षेत्र की पहली अधिग्रहण परियोजना माना जा रहा है. सरकार की इस योजना का लक्ष्य विदेशी कंपनियों के साथ मिलकर देश में पनडुब्बी और लड़ाकू विमान बनाने जैसे सैन्य प्लेटफार्म तैयार करना है.
अब सरकार जल्द ही चयनित विदेशी कंपनी के साथ मिलकर पनडुब्बी विनिर्माण के लिये भारतीय जहाजरानी कंपनी के चयन की प्रक्रिया शुरू करेगी. सरकार की इस परियोजना को चीन की पनडुब्बी के बढ़ती संख्या का मुकाबला करने के लिये उठाये जा रहे कदम के तौर पर देखा जा रहा है. नौसेना इस परियोजना को मंजूरी देने के लिये सरकारी पर दबाव बनाए हुए है. बहरहाल, भारतीय कंपनियों में से इंजीनियरिंग क्षेत्र की कंपनी लार्सन एण्ड टुब्रो और रिलायंस डिफेंस ही वह कंपनियां हैं जो सरकार के इस पी-75 (आई) कार्यक्रम में भाग लेने की पात्र हैं. सार्वजनिक क्षेत्र की मझगांव डॉक लिमिटेड को भी परियोजना का दावेदार माना जा रहा है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
सूत्रों ने बताया की स्पेन की नवान्तिया और जापान की मित्शुबिशी कवासाकी हैवी इंडस्ट्रीज ने प्रस्ताव के आग्रह पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई. हालांकि, इन कंपनियों को परियोजना के लिये प्रमुख दावेदार माना जा रहा था. ऐसे संकेत हैं कि जापान इस परियोजना के लिये सरकार से सरकार के स्तर पर इच्छुक था. इस परियोजना के लिये प्रस्ताव के लिये आग्रह पर जवाब देने की अंतिम तिथि 16 अक्टूबर रखी गई थी.
सरकार की महत्वकांक्षी ‘रणनीतिक भागीदारी’ नमूने के तहत इसे रक्षा क्षेत्र की पहली अधिग्रहण परियोजना माना जा रहा है. सरकार की इस योजना का लक्ष्य विदेशी कंपनियों के साथ मिलकर देश में पनडुब्बी और लड़ाकू विमान बनाने जैसे सैन्य प्लेटफार्म तैयार करना है.
अब सरकार जल्द ही चयनित विदेशी कंपनी के साथ मिलकर पनडुब्बी विनिर्माण के लिये भारतीय जहाजरानी कंपनी के चयन की प्रक्रिया शुरू करेगी. सरकार की इस परियोजना को चीन की पनडुब्बी के बढ़ती संख्या का मुकाबला करने के लिये उठाये जा रहे कदम के तौर पर देखा जा रहा है. नौसेना इस परियोजना को मंजूरी देने के लिये सरकारी पर दबाव बनाए हुए है. बहरहाल, भारतीय कंपनियों में से इंजीनियरिंग क्षेत्र की कंपनी लार्सन एण्ड टुब्रो और रिलायंस डिफेंस ही वह कंपनियां हैं जो सरकार के इस पी-75 (आई) कार्यक्रम में भाग लेने की पात्र हैं. सार्वजनिक क्षेत्र की मझगांव डॉक लिमिटेड को भी परियोजना का दावेदार माना जा रहा है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
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