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This Article is From Jan 31, 2022

चुनाव आयोग को अपनी इमेज का ख्‍याल रखना चाहिए : NDTV से पूर्व CEC एसवाय कुरैशी

NDTV से बात करते हुए कुरैशी ने कहा, ' चुनाव आयोग को अपनी इमेज का  ख्‍याल रखना चाहिए. जनता को सब दिखाई देता है.अच्छी इमेज थी तो उसका फायदा था.लोग उंगली नहीं उठाते थे, लोग समझते थे.' उन्‍होंने कहा कि अच्‍छी इमेज का फायदा होता है.

पूर्व मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त एसवाय कुरैशी

नई दिल्‍ली:

ऐसे समय जब पांच राज्‍यों में विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, चुनाव आयोग के कुछ फैसलों को लेकर विपक्ष के नेताओं ने सवाल उठाए हैं. पूर्व मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त (Former CEC)एसवाय कुरैशी ने इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है. NDTV से बात करते हुए कुरैशी ने कहा, ' चुनाव आयोग को अपनी इमेज का  ख्‍याल रखना चाहिए. जनता को सब दिखाई देता है.अच्छी इमेज थी तो उसका फायदा था.लोग उंगली नहीं उठाते थे, लोग समझते थे.' उन्‍होंने कहा कि अच्‍छी इमेज का फायदा होता है.

कुछ पार्टियों को ही चुनाव आयोग का नोटिस मिलने संबंधी विपक्ष के आरोप को लेकर पूछे गए सवाल पर कुरैशी ने कहा, 'इस बात को स्टडी नहीं किया, लेकिन किस को नोटिस गया है किसको नहीं गया सबको पता है.एक-दूसरे के खिलाफ शिकायतें बढ़-चढ़कर बताई जाती है.चुनाव आयोग यह सब कुछ देखता है. इस बारे में चर्चा होती है.' आम आदमी पार्टी के पंजाब में दो माह पहले रजिस्‍टर्ड पार्टी को मान्‍यता देने संबंधी आरोप के जवाब में उन्‍होंने कहा, 'मुझे इसका बैकग्राउंड नहीं पता. 3 दिन के नोटिस को 7 दिन में बदला गया.चुनाव से ठीक पहले लोगों को झगड़ा करने का मौका मिल जाता है. ये ही चीज़ 6 महीने पहले होती तो कुछ नहीं होता. 'उन्‍होंने बताया कि चुनाव आयोग के ऑब्‍ज़र्वर्स होते हैं. लोकल एसपी, डीएम की रिपोर्ट भी ली जाती है. चुनाव आयोग दिल्ली में होता है, वो रिपोर्ट के मुताबिक फैसला करते हैं. पूर्व मुख्‍य चुनाव आयुक्‍त ने कहा एविडेंट तो चाहिए ही होता है.कोई अगर हवा में कंप्लेंट करेगा तो उसका तो कुछ नहीं होता. अगर एविडेंस होता है तो उसे हम देखते हैं, तथ्यों को देखकर फैसला होता है. इसके अलावा जरूरत पड़ने पर फील्ड से रिपोर्ट मांगी जाती है, डीएम का वर्जन मंगाया जाता है. 

पार्टी के प्रचार पर खर्च के प्रश्‍न पर कुरैशी ने कहा, 'वर्चुअल रैली के साधन नहीं हैं, तो नॉर्मल रैली के साधन चाहिए होते हैं. भीड़ के ऊपर लाखों का खर्चा है वो भी तो सब करते ही हैं तो इसका तो कोई जवाब नहीं हैं. लिमिट सबके लिए बराबर है. एक अन्‍य प्रश्‍न के जवाब में कहा कि पोस्टल बैलेट की गिनती तो पहले ही की जाती थी लेकिन कुछ साल पहले इसे बदल दिया गया. मार्जिन ऑफ लीड अगर कम है और वोट ज्यादा है, तो ये एक धांधली ही है. झगड़े शुरू हो जाते हैं. इन मामलों को शुरू में ही ले लेना चाहिए, इससे डाउट क्लीयर हो जाता है. 

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