बेंगलुरु:
पिछले एक हफ्ते के दौरान तीसरी बार बेंगलुरु के यमलूर नहर के गंदे पानी में आग की लपटें दिखीं। पर्यावरण के जानकार पुख्ता तौर पर इसकी वजह नहीं बता पा रहे कि आखिर बहते पानी में आग कैसे लग रही है।
पिछले शुक्रवार रात से यमलूर नहर के पानी में आग लगने का सिलसिला शरू हुआ था जो कि सोमवार और मंगलवार को भी जारी रहा। मंगलवार दिन में भी लपटें दिखीं।
कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष वामन आचार्य के मुताबिक इसमें कोई दो राय नहीं कि आग लगने की वारदात लगातार हो रही है लेकिन मैं ये दावे के साथ नहीं कह सकता कि इसकी वजह क्या है। दो विकल्प दिखते हैं। या तो कुछ शरारती लोग आग लगा रहे हैं या फिर खुद ही आग लग जा रही है।
बेंगलुरु शहर का आधे से भी ज्यादा गंदा पानी यमलूर नहर होकर वरतूर लेक तक पहुंचता है। इसमें सर्विस स्टेशन से निकले पेट्रोल, डीज़ल के कचरे के साथ-साथ कई ज़हरीले रसायन मौजूद होते हैं जो बायो गैस बनाते हैं।
लेकिन सवाल ये उठता है कि इसमें आग कैसे लगती है। ज्वलनशील पदार्थ में आग के लिए चिंगारी चाहिए। इसी बात का पता लगाने की कोशिश हो रही है कि ये आग रासायनिक प्रक्रियाओं की वजह से खुद लग जा रही है या कोई शरारत कर रहा है।
डॉ. वामन आचार्य के मुताबिक झाग और आग से बड़ी चुनौति है इसके नीचे एक दशक से जमा ज़हरीला कचरा जो हनिकरक रसायनों का मिश्रण है। उसे कैसे हटाया जाय इसपर सरकार को फ़ौरन ध्यान देना चाहिए।
पिछले शुक्रवार रात से यमलूर नहर के पानी में आग लगने का सिलसिला शरू हुआ था जो कि सोमवार और मंगलवार को भी जारी रहा। मंगलवार दिन में भी लपटें दिखीं।
कर्नाटक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष वामन आचार्य के मुताबिक इसमें कोई दो राय नहीं कि आग लगने की वारदात लगातार हो रही है लेकिन मैं ये दावे के साथ नहीं कह सकता कि इसकी वजह क्या है। दो विकल्प दिखते हैं। या तो कुछ शरारती लोग आग लगा रहे हैं या फिर खुद ही आग लग जा रही है।
बेंगलुरु शहर का आधे से भी ज्यादा गंदा पानी यमलूर नहर होकर वरतूर लेक तक पहुंचता है। इसमें सर्विस स्टेशन से निकले पेट्रोल, डीज़ल के कचरे के साथ-साथ कई ज़हरीले रसायन मौजूद होते हैं जो बायो गैस बनाते हैं।
लेकिन सवाल ये उठता है कि इसमें आग कैसे लगती है। ज्वलनशील पदार्थ में आग के लिए चिंगारी चाहिए। इसी बात का पता लगाने की कोशिश हो रही है कि ये आग रासायनिक प्रक्रियाओं की वजह से खुद लग जा रही है या कोई शरारत कर रहा है।
डॉ. वामन आचार्य के मुताबिक झाग और आग से बड़ी चुनौति है इसके नीचे एक दशक से जमा ज़हरीला कचरा जो हनिकरक रसायनों का मिश्रण है। उसे कैसे हटाया जाय इसपर सरकार को फ़ौरन ध्यान देना चाहिए।
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