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This Article is From Nov 28, 2016

अमेरिकी वीसा नियम सख्त होने के आसार, जमकर अधिग्रहण, भर्तियां कर रही हैं भारतीय आईटी कंपनियां

अमेरिकी वीसा नियम सख्त होने के आसार, जमकर अधिग्रहण, भर्तियां कर रही हैं भारतीय आईटी कंपनियां
बेंगलुरू: डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति काल में टेक्नोलॉजी वीसा प्रोग्राम (वीसा नियमों) को कड़े बना दिए जाने के आसार देखते हुए 150 अरब अमेरिकी डॉलर वाला भारत का आईटी सेवा सेक्टर अब अमेरिका में अधिग्रहण की प्रक्रिया को तेज़ करेगा, और वहां के कॉलेजों से ज़्यादा भर्तियां करेगा.

टाटा कन्सल्टेंसी सर्विसेज़ (टीसीएस), इन्फोसिस तथा विप्रो समेत आईटी कंपनियों ने अब तक एच1-बी कुशल कामगार वीसा का जमकर इस्तेमाल किया है, ताकि भारत से कम्प्यूटर इंजीनियरों को अपने सबसे बड़े विदेशी बाज़ार अमेरिका में ले जाया जा सके, ताकि वे अस्थायी रूप से उनके क्लायंटों के लिए काम कर सकें.

वर्ष 2005 से 2014 के बीच इन तीन कंपनियों - टीसीएस, इन्फोसिस तथा विप्रो - ने लगभग 86,000 सॉफ्टवेयर इंजीनियरों को एच1-बी वीसा के ज़रिये भेजा है, जबकि अमेरिका मौजूदा समय में सालाना लगभग इतने ही कुल एच1-बी वीसा जारी करता है.

अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान अपनाए गए रुख तथा मौजूदा वीसा कार्यक्रम के कटु आलोचक सीनेटर जेफ सेशन्स को अटॉर्नी जनरल के रूप में चुने जाने की वजह से अधिकतर लोगों को लग रहा है कि वीसा कार्यक्रम अब सख्त होने जा रहा है.

भारत की दूसरी सबसे बड़ी आईटी कंपनी इन्फोसिस के सीओओ प्रवीण राव का कहना है, "दुनियाभर में प्रोटेक्शनिज़्म आ रहा है, और इमिग्रेशन को खत्म किया जा रहा है... दुर्भाग्य से लोग अस्थायी कुशल कामगारों को इमिग्रेशन से जोड़ रहे हैं, क्योंकि हम वास्तव में अस्थायी कामगार हैं..."

कुछ को तो लग रहा है कि कामगार वीसा पूरी तरह बंद कर दिए जाएंगे, जिससे लागत के बढ़ने की आशंका है, क्योंकि सिलिकॉन वैली में भारतीय इंजीनियरों का महती योगदान है, और भारतीयों की वजह से ही अमेरिकी कारोबार कम लागत में अपना काम चला पाते हैं.

अब अगर वीसा नियम सख्त किए गए, तो भारतीय कंपनियां कम डेवलपरों और इंजीनियरों को अमेरिका भेज पाएंगी, और अब वहीं के कॉलेजों से ज़्यादा भर्तियां करेंगी.

प्रवीण राव ने कहा, "हम लोगों को उपलब्ध स्थानीय लोगों की भर्तियां तेज़ करनी होंगी, और वहां की यूनिवर्सिटियों से फ्रेशरों को भर्ती करना होगा..." उनके इस बयान से साफ है कि अब तक तजुर्बेकार लोगों को ही अमेरिका के लिए भर्ती करने का मौजूदा चलन बदलने के आसार हैं.

उन्होंने कहा, "अब हमें एक ऐसे मॉडल पर काम करना होगा, जहां हम फ्रेशरों को भर्ती करेंगे, उन्हें प्रशिक्षित करेंगे, और फिर उन्हें काम पर रखेंगे, और इससे हमारी लागत बढ़ जाएगी..." उन्होंने यह भी बताया कि इन्फोसिस आमतौर पर हर तिमाही में अमेरिका और यूरोप में 500 से 700 लोगों को काम पर रखती है, जिनमें से 80 फीसदी स्थानीय लोग होते हैं...

© Thomson Reuters 2016

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