पुणे से एक ऐसे डॉक्टर की कहानी जिन्होंने अपने पिता को कोविड के कारण खो दिया लेकिन खुद कोविड मरीज़ों का इलाज करने के लिए पिता के अंतिम संस्कार के एक दिन बाद ही ड्यूटी पर लौट गए. माँ और भाई भी कोविड के कारण अस्पताल में भर्ती हैं पर कहते हैं लोगों का कष्ट देखते हुए भी घर पर रहकर शोक कैसे मनाऊँ? डॉक्टर को धरती का भगवान यूँ ही नहीं कहा जाता, जो फ़र्ज़ के सामने अपनी पीड़ा भूल जाते हैं.
ये पुणे के संजीवनी अस्पताल के डॉ मुकुंद पेनुरकर(45) हैं, 26 अप्रिल-सोमवार को कोविड ने इनसे, इनके पिता को छीन लिया, लेकिन शोक मनाने का वक़्त कहाँ था, पिता के अंतिम संस्कार के एक दिन के बाद ही बुधवार को कोविड रोगियों के इलाज के लिए ड्यूटी पर लौट गए, माँ और भाई भी संक्रमित हैं और अस्पताल में भर्ती हैं.
संजीवनी अस्पताल के डॉक्टर मुकुंद पेनुरकर ने कहा कि एक हफ़्ते के ट्रीटमेंट के बाद मेरे पिता की कोविड से मौत हो गयी उनकी उम्र क़रीब 86 थी, कोमोर्बिड भी थे लेकिन कोविड नहीं हुआ होता तो शायद कुछ और साल जी लेते और अपने बीच उन्हें देखकर हम खुश रहते. मेरे भाई और माँ यहाँ संजीवनी में भर्ती हैं. अपने पिता को बचाने की डॉक्टर मुकुंद ने हर सम्भव कोशिश की पर नाकाम रहे. पुणे के बिगड़े हालात में अपने जैसे कईयों को मजबूर देखा, कहते हैं लोगों के कष्ट के आगे, घर पर आराम करने की हिम्मत नहीं थी.
डॉक्टर मुकुंद पेनुरकर ने कहा कि सोमवार को पिता की मौत हुई और बुधवार से काम शुरू करना पड़ा क्यूँकि पुणे में हालात अभी बेहद ख़राब है की हम घर पर आराम नहीं कर सकते, ऐसे वक्त में जब लोग ऐसे कष्ट से गुजर रहे हैं, मैं खुद इससे गुज़र चुका हूँ और इससे गुजरते हुए मैंने देखा की लोगों की कई ज़रूरतें हैं जिसे पूरा करना ज़रूरी है. जरूरतमंदों के इलाज को ही डॉ मुकुंद, अपने पिता के लिए श्रद्धांजलि मान रहे हैं.
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