मौलाना सैयद अरशद मदनी (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
जमीअत उलेमा-ए-हिन्द के अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने केंद्र सरकार पर हमला बोलते हुए कहा है कि चुनाव के दौरान देश की जनता से केंद्र सरकार ने जो वादे किए गए थे उन्हें पूरा करने में वह पूर्ण रूप से विफल हो गई है। अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए सूफी सम्मेलन आयोजित कर मूल विषयों से ध्यान हटाने का असफल प्रयास कर रही है।
मदनी ने कहा कि सूफी सम्मेलन आयोजित करने वालों से हमारा कोई मतभेद नहीं है। क्योंकि हमारा अल्लाह एक, पैगम्बर एक, कुरान एक, इबादत के तरीके एक हैं। वास्तव में जो लोग धर्म को नहीं समझते वे विरोध करते हैं। उन्होंने कहा वर्तमान सरकार के संरक्षण और उच्च अधिकारियों की देखरेख में सूफी सम्मेलन के आयोजन को हम खतरे की दृष्टि से देखते हैं। विज्ञान भवन में प्रधानमंत्री ने ढाई घंटे से अधिक समय दिया इससे इस संदेह को बल मिलता है।
मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री ने इस्लाम को शांति और प्रेम का धर्म कहा है और इस बात को भी जोर देकर कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और यह लड़ाई किसी धर्म के विरुद्ध नहीं है लेकिन इस प्रकार की बातों का सच्चाई से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि देश में जैसे ही कोई आतंकवाद की घटना होती है, शक की सुई न केवल मुसलमानों की ओर मोड़ दी जाती है बल्कि गिरफ्तारियां भी शुरू कर दी जाती हैं। ज़बान से कहा कुछ जाता है कार्य इसके विपरीत होता है। मदनी ने कहा कि वास्तव में एक वर्ग का संरक्षण करके वर्तमान सरकार मुसलमानों के अंदर पंथ के नाम पर कलह एवं अराजकता पैदा करके अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने का प्रयास कर रही है।
‘भारत माता की जय’ के सवाल पर मौलाना मदनी ने कहा कि इसका उर्दू में अनुवाद ‘मादर-ए-वतन जिंदाबाद’ किया जाता है। मुसलमान भी ‘मादर-ए-वतन जिंदाबाद’ और ‘हिंदुस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाते हैं। इसमें कोई हर्ज नहीं है। लेकिन अगर कुछ लोग दिल में कुछ और रखते हैं या उसे ‘माबूद’ समझकर पूजा की बात करते हैं तो यह जायज़ नहीं। यह उनका अपना मामला है, हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं करते हैं।
जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष ने कहा कि मूल मुद्दा भारत माताकी जय नहीं, यह मूल मुद्दे से ध्यान हटाने और उसे पीछे डालने की रणनीति है। देश की असल समस्या सांप्रदायिकता है। इसे समाप्त किया जाए। हर देशवासियों को शांति के साथ जीवन जीने के अवसर प्राप्त हों, देश से विकास के के जो वादे किए गए थे उन्हें पूरा किया जाए और सभी के साथ न्याय हो, क्योंकि सामाजिक न्याय के बिना विकास की बातें अर्थहीन होंगी।
मदनी ने कहा कि सूफी सम्मेलन आयोजित करने वालों से हमारा कोई मतभेद नहीं है। क्योंकि हमारा अल्लाह एक, पैगम्बर एक, कुरान एक, इबादत के तरीके एक हैं। वास्तव में जो लोग धर्म को नहीं समझते वे विरोध करते हैं। उन्होंने कहा वर्तमान सरकार के संरक्षण और उच्च अधिकारियों की देखरेख में सूफी सम्मेलन के आयोजन को हम खतरे की दृष्टि से देखते हैं। विज्ञान भवन में प्रधानमंत्री ने ढाई घंटे से अधिक समय दिया इससे इस संदेह को बल मिलता है।
मौलाना मदनी ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री ने इस्लाम को शांति और प्रेम का धर्म कहा है और इस बात को भी जोर देकर कहा कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता और यह लड़ाई किसी धर्म के विरुद्ध नहीं है लेकिन इस प्रकार की बातों का सच्चाई से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा कि देश में जैसे ही कोई आतंकवाद की घटना होती है, शक की सुई न केवल मुसलमानों की ओर मोड़ दी जाती है बल्कि गिरफ्तारियां भी शुरू कर दी जाती हैं। ज़बान से कहा कुछ जाता है कार्य इसके विपरीत होता है। मदनी ने कहा कि वास्तव में एक वर्ग का संरक्षण करके वर्तमान सरकार मुसलमानों के अंदर पंथ के नाम पर कलह एवं अराजकता पैदा करके अपनी विफलताओं पर पर्दा डालने का प्रयास कर रही है।
‘भारत माता की जय’ के सवाल पर मौलाना मदनी ने कहा कि इसका उर्दू में अनुवाद ‘मादर-ए-वतन जिंदाबाद’ किया जाता है। मुसलमान भी ‘मादर-ए-वतन जिंदाबाद’ और ‘हिंदुस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाते हैं। इसमें कोई हर्ज नहीं है। लेकिन अगर कुछ लोग दिल में कुछ और रखते हैं या उसे ‘माबूद’ समझकर पूजा की बात करते हैं तो यह जायज़ नहीं। यह उनका अपना मामला है, हम अल्लाह के सिवा किसी की इबादत नहीं करते हैं।
जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष ने कहा कि मूल मुद्दा भारत माताकी जय नहीं, यह मूल मुद्दे से ध्यान हटाने और उसे पीछे डालने की रणनीति है। देश की असल समस्या सांप्रदायिकता है। इसे समाप्त किया जाए। हर देशवासियों को शांति के साथ जीवन जीने के अवसर प्राप्त हों, देश से विकास के के जो वादे किए गए थे उन्हें पूरा किया जाए और सभी के साथ न्याय हो, क्योंकि सामाजिक न्याय के बिना विकास की बातें अर्थहीन होंगी।
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