प्रकाश जावड़ेकर का फाइल फोटो
नई दिल्ली:
केंद्र सरकार ने बुधवार को उस अध्ययन को खारिज कर दिया जिसमें दावा किया गया था कि वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली में जीवन प्रत्याशा छह साल कम हो गई है । सरकार ने कहा कि यूरोप और अमेरिका में किए गए शोध के आधार पर यह दावा किया गया है और भारत को 'बदनाम' करने के लिए इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया ।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह दावा भी किया कि पृथ्वी विज्ञान विभाग अध्ययन के निष्कर्षों से सहमत नहीं है ।
केंद्रीय मंत्री जिस अध्ययन पर सवाल उठा रहे हैं वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी (आईआईटीएम) की ओर से किया गया है। यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्था है । अमेरिका के कोलारेडो स्थित नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेयर रिसर्च (एनसीएआर) के साथ मिलकर आईआईटीएम के वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया ।
जावड़ेकर ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, 'हम एक तथाकथित आलेख में किए गए इस दावे को खारिज करते हैं कि प्रदूषण के कारण भारतीय अपनी जिंदगी के छह साल गंवा रहे हैं । यह अध्ययन क्षेत्रीय वायुमंडलीय रसायन मॉडल पर आधारित है...यूरोप और अमेरिका में किए गए अध्ययनों के आधार पर यह शोध किया गया है, जिसे भारत पर लागू किया जा रहा है । यह अध्ययन सैंपलिंग, जमीनी अध्ययन और दीर्घकालिक पर्यवेक्षण पर आधारित नहीं है । लिहाजा यह पूरी तरह गैर-जरूरी है और भारत को बदनाम करता है ।'
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है)
केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने यह दावा भी किया कि पृथ्वी विज्ञान विभाग अध्ययन के निष्कर्षों से सहमत नहीं है ।
केंद्रीय मंत्री जिस अध्ययन पर सवाल उठा रहे हैं वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटियोरोलॉजी (आईआईटीएम) की ओर से किया गया है। यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त संस्था है । अमेरिका के कोलारेडो स्थित नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेयर रिसर्च (एनसीएआर) के साथ मिलकर आईआईटीएम के वैज्ञानिकों ने यह अध्ययन किया ।
जावड़ेकर ने एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, 'हम एक तथाकथित आलेख में किए गए इस दावे को खारिज करते हैं कि प्रदूषण के कारण भारतीय अपनी जिंदगी के छह साल गंवा रहे हैं । यह अध्ययन क्षेत्रीय वायुमंडलीय रसायन मॉडल पर आधारित है...यूरोप और अमेरिका में किए गए अध्ययनों के आधार पर यह शोध किया गया है, जिसे भारत पर लागू किया जा रहा है । यह अध्ययन सैंपलिंग, जमीनी अध्ययन और दीर्घकालिक पर्यवेक्षण पर आधारित नहीं है । लिहाजा यह पूरी तरह गैर-जरूरी है और भारत को बदनाम करता है ।'
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