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This Article is From Dec 15, 2016

नोटबंदी की मार से हलकान है कालीन उद्योग, पैसा न मिलने से काम छोड़ रहे हैं बुनकर

नोटबंदी की मार से हलकान है कालीन उद्योग, पैसा न मिलने से काम छोड़ रहे हैं बुनकर
Quick Take
Summary is AI generated, newsroom reviewed.
कालीन उद्योग में 50 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई
पैसे की कमी में काम छोड़ रहे हैं बुनकर
कारोबारियों को रद्द करने पड़ रहे हैं विदेशी करार
नई दिल्ली: देश का कालीन उद्योग भी नोटबंदी की चपेट में आ गया है. बुनकर नकदी न मिलने से काम छोड़ रहे हैं और इस काम में लगे कारोबारियों के पास माल की किल्लत के कारण इस उद्योग से जुड़े सभी लोग मुफलिसी का दंश झेल रहे हैं.

बुनकर उद्योग का गढ़ कहे जाने वाले भदोही, मिर्ज़ापुर, पानीपत आदि जगहें, जो कभी हथकरघों की आवाज से गुलजार हुआ करती थीं, वहां इन दिनों सन्नाटा पसरा हुआ है.  बुनकर अब दूसरे कामों की तलाश में अपनी जगहों को छोड़कर नए काम और नई जगह की तलाश में निकल रहे हैं.

चार दशक से कालीन उद्योग से जुड़े ओपी गर्ग के सामने ऐसा संकट कभी नहीं आया, जैसा पिछले पांच हफ्तों में आया है. ओपी गर्ग बेहद नाउम्मीदी की आवाज में बताते हैं, 'जो बुनकर गांवों में काम करते हैं उनमें से ज़्यादातर के पास बैंक के खाते नहीं हैं. अब वे काम छोड़कर अपने-अपने राज्य वापस जा चुके हैं या जो बचे हैं वे जाने की तैयारी कर रहे हैं.'

वह बताते हैं कि कालीन उद्योग के फलने-फूलने में ठेकेदार एक अहम कड़ी हुआ करते हैं. लेकिन अब तो ठेकेदारों के पास ही पैसा नहीं है, जिससे वे बुनकरों को भुगतान नहीं कर पा रहे हैं. इसका नतीजा यह हुआ कि कारोबारियों के पास कालीनों की आपूर्ति 50 फीसदी से भी कम हो गई है.

यह संकट ऐसे समय आया है जब कालीन का सबसे ज्यादा निर्यात होता है. कारोबारियों को अंदेशा है कि विदेशी बाज़ारों में सप्लाई के जो क़रार हैं, वे टूट न जाएं.

गर्ग बताते हैं कि अक्टूबर से मार्च तक कालीन उद्योग का सीज़न होता है, इन दिनों विदेशी बाज़ारों में हमारे यहां के कालीनों की मांग सबसे ज़्यादा होती है. बाहर से मांग आने पर कारोबारियों को कभी कोहरा तो कभी सर्दी की वजह से यातायात ठप होने का बहाना बनाना पड़ रहा है.

कारोबारियों को डर है कि अगर माल की आपूर्ति में देरी होगी तो आने वाले दिनों में सभी करार रद्द हो जाएंगे और निर्यातकों को फारेन एक्सचेंज का नुकसान होगा.

एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल फॉर हेंडीक्रॉफ्ट्स के अध्यक्ष दिनेश कुमार कहते हैं कि सरकार को हर हफ्ते बैंक से नकदी निकालने की मौजूदा सीमा 50,000 से बढ़ाकर 2 से 3 लाख करनी चाहिए जिससे व्यापारियों के पास बुनकरों को देने के लिए ज़्यादे पैसा हों. अगर सरकार यह फैसला करती है तो आने वाले दिनों में हालात सुधर सकते हैं. अब सबको बुनकर उद्योग में सरकार की पहल का इंतज़ार है.

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