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This Article is From Jan 28, 2019

बजट 2019: खाद्य तेल उद्योग की मांग, कच्चे खाद्य तेलों पर बढ़ाया जाए आयात शुल्क

आयातित सस्ते तेलों के दबाव से जूझ रहे घरेलू खाद्य तेल उद्योग ने सरकार से विभिन्न प्रकार के खाद्य तेलों पर आयात-शुल्क को तर्कसंगत बनाने की मांग की है

बजट 2019: खाद्य तेल उद्योग की मांग, कच्चे खाद्य तेलों पर बढ़ाया जाए आयात शुल्क
प्रतीकात्मक तस्वीर
नई दिल्ली:

आयातित सस्ते तेलों के दबाव से जूझ रहे घरेलू खाद्य तेल उद्योग ने सरकार से विभिन्न प्रकार के खाद्य तेलों पर आयात-शुल्क को तर्कसंगत बनाने की मांग की है ताकि स्थानीय खाद्यतेल प्रसंस्करण इकाइयों और तिलहन उत्पादक किसानों के हितों की रक्षा की जा सके. उन्होंने खास कर सोयाबीन डीगम, रेपसीड और सूरजमुखी जैसे तेलों पर शुल्क बढ़ाने की जरूरत पर बल दिया है. आम-बजट से उम्मीदों के बारे में खाद्य तेल उद्योग का कहना है कि सरसों, सोयाबीन और सूरजमुखी पैदा करने वाले किसानों और घरेलू तेल प्रसंस्करण इकाइयों के हित में खाद्य तेलों पर आयात पर शुल्क बढ़ा कर उचित स्तर पर रखा जाना चाहिये. खाद्य तेलों पर डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत सरकार अधिकतम 45 प्रतिशत तक शुल्क लगा सकती है. पंजाब आयल मिल्स एसोसियेशन के अध्यक्ष सुशील जैन ने कहा, ‘‘बजट में सरकार को घरेलू खाद्य तेल उद्योग के हित में दीर्घकालिक कदम उठाने चाहिये. सोयाबीन डीगम, रेपसीड और सूरजमुखी के कच्चे तेल पर यदि आयात शुल्क बढ़ाया जाए तो इससे किसानों को भी लाभ मिलेगा.'' 

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जैन ने कहा, ‘‘सोयाबीन डीगम, रेपसीड, सूरजमुखी कच्चे तेल पर आयात शुल्क को बढ़ा कर रिफाइंड के नजदीक ले जाया जाए.'' उन्होंने तर्क दिया कि इनके कच्चे तेल पर आयात शुल्क 35 प्रतिशत और रिफाइंड पर 45 प्रतिशत है जबकि इन कच्चे तेलों के प्रसंस्करण का खर्च ज्यादा नहीं है इस लिए घरेलू बाजार में इनके आयात का प्रलोभन ज्यादा है. एक अन्य खाद्य तेल उद्यमी और जानकी प्रसाद एंड कंपनी के आयुष गुप्ता ने कहा कि मलेशिया के साथ अक्तूबर 2010 के व्यापार समझौते के तहत सरकार ने वहां के रिफाइंड पामोलिन पर शुल्क घटा कर 45 प्रतिशत और कच्चे पॉम तेल पर आयात शुल्क को बढ़ाकर 40 प्रतिशत कर दिया है.  

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गुप्ता ने कहा, ‘‘जिस प्रकार पोमोलीन में कच्चे और रिफाइंड तेलों के आयात शुल्क में पांच प्रतिशत का अंतर है उसी तरह दूसरे तेलों के आयात शुल्क को तर्कसंगत किया जाना चाहिये.' खाद्य तेल उद्योग के आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 225 लाख टन खाद्य तेलों की खपत है जिसमें से करीब 160 लाख टन तेलों का आयात किया जाता है. इसमें 90 से 100 लाख टन कच्चे और रिफाइंड पॉम तेल का आयात होता है जबकि शेष 60 से 70 लाख टन सोयाबीन डीगम, रेपसीड और दूसरे तेलों का आयात किया जाता है. तेल उद्योग के व्यापारियों का कहना है कि इस बार देश में सरसों की फसल अच्छी हुई है. सरकार ने सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाकर 4,200 रुपये क्विंटल कर दिया है लेकिन अधिक उत्पादन को देखते हुये इसका भाव समर्थन मूल्य से नीचे जाने की चिंता किसानों और व्यापारियों को सता रही है. एक अन्य तेल व्यापारी पवन गुप्ता ने सरकार से मक्का खल पर माल एवं सेवाकर (जीएसटी) समाप्त करने की मांग की है.

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गुप्ता ने कहा कि बिनौला खल को जीएसटी से छूट प्राप्त है जबकि मक्का खल जो कि पशुओं के लिये दूध उत्पादन के लिहाज से काफी लाभदायक है उसपर पांच प्रतिशत की दर से जीएसटी लागू है. उन्होंने कहा कि देश में बिनौला खल का 60 लाख टन उत्पादन है जबकि मक्का खल अभी बढ़ता उद्योग है औरा इसका दो लाख टन उत्पादन हो रहा है. व्यापारियों का कहना है कि पामोलीन का एक पेड़ 25-30 वर्षो तक फसल देता है इस लिए पामोलीन तेल की लागत कम आती है. ऐसी स्थिति में सरसों, सोयाबीन इत्यादि तिलहन की खेती करने वाले किसानों और इनका तेल- प्रसंस्करण करने वाली इकाइयों के हितों की रक्षा का बजट में पुख्ता इंतजाम करने की आवश्यकता है.

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