दिल्ली हाई कोर्ट में आई याचिका...
नई दिल्ली:
दिल्ली हाई कोर्ट के सामने आज सवाल आया कि क्या संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत राष्ट्रपति आदेश के बिना जम्मू-कश्मीर में किसी संवैधानिक संशोधन का लागू नहीं होना न्यायाधीशों के लिए वहां भारतीय संविधान के क्रियान्वयन को अनिवार्य नहीं बनाता? हालांकि मामले के गुणदोष में जाए बिना ही हाई कोर्ट ने कहा कि वह केन्द्र और राज्य से इस बारे में जवाब चाहता है कि जम्मू-कश्मीर के हाई कोर्ट के न्यायाधीश संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हैं या नहीं.
मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायामूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने यह आदेश उस समय दिया जब याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया कि ‘‘ऐसा लगता है कि’’ जम्मू-कश्मीर में हाईकोर्ट के न्यायाधीश भारतीय संविधान को लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं.
पीठ ने कहा कि पहली नजर में उसका मानना है कि ‘फोरम कनवीनियेंस’ के सिद्धांत को देखते हुए याचिकाकर्ता के लिए जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय से गुहार लगाना उचित होगा.
पीठ ने इस मामले में सुनवाई के लिए 13 फरवरी की तारीख तय की और कहा, ‘‘याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ऐसा लगता है कि जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के न्यायाधीश भारत के संविधान को लागू करने के लिए निष्ठा की शपथ नहीं लेते हैं. हम इस मुद्दे पर प्रतिवादियों (केन्द्र और जम्मू कश्मीर) को सुनना चाहते हैं.’’ वकील सुरजीत सिंह ने संविधान आदेश 1954 को चुनौती दी है जिसमें संविधान के अनुच्छेद 368 के एक प्रावधान को जोड़ा गया है.
संविधान आदेश 1954 में अनुच्छेद 368 (संविधान में संशोधन और उसकी प्रक्रिया के बारे में संसद के अधिकार) का एक प्रावधान जोडा गया जिसमें कहा गया है कि ऐसा कोई भी संशोधन जम्मू-कश्मीर राज्य के मामले में उस समय तक प्रभावी नहीं होगा जब तब राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 के उपबंध (1) के तहत राष्ट्रपति के आदेश से लागू नहीं किया जाये.
मुख्य न्यायाधीश जी रोहिणी और न्यायामूर्ति संगीता ढींगरा सहगल की पीठ ने यह आदेश उस समय दिया जब याचिकाकर्ता के वकील ने आरोप लगाया कि ‘‘ऐसा लगता है कि’’ जम्मू-कश्मीर में हाईकोर्ट के न्यायाधीश भारतीय संविधान को लागू करने के लिए बाध्य नहीं हैं.
पीठ ने कहा कि पहली नजर में उसका मानना है कि ‘फोरम कनवीनियेंस’ के सिद्धांत को देखते हुए याचिकाकर्ता के लिए जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय से गुहार लगाना उचित होगा.
पीठ ने इस मामले में सुनवाई के लिए 13 फरवरी की तारीख तय की और कहा, ‘‘याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि ऐसा लगता है कि जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट के न्यायाधीश भारत के संविधान को लागू करने के लिए निष्ठा की शपथ नहीं लेते हैं. हम इस मुद्दे पर प्रतिवादियों (केन्द्र और जम्मू कश्मीर) को सुनना चाहते हैं.’’ वकील सुरजीत सिंह ने संविधान आदेश 1954 को चुनौती दी है जिसमें संविधान के अनुच्छेद 368 के एक प्रावधान को जोड़ा गया है.
संविधान आदेश 1954 में अनुच्छेद 368 (संविधान में संशोधन और उसकी प्रक्रिया के बारे में संसद के अधिकार) का एक प्रावधान जोडा गया जिसमें कहा गया है कि ऐसा कोई भी संशोधन जम्मू-कश्मीर राज्य के मामले में उस समय तक प्रभावी नहीं होगा जब तब राष्ट्रपति अनुच्छेद 370 के उपबंध (1) के तहत राष्ट्रपति के आदेश से लागू नहीं किया जाये.
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