पांच साल पहले डेंगू के हाथों बेटा खोया, पिछले महीने बेटी खो दी..
नई दिल्ली:
मेनका और अंकित राजधानी दिल्ली के उन दो बच्चों के नाम है जो अब अब इस दुनिया में नहीं हैं और दोनों की ही मौत का कारण डेंगू है। 11 साल के अंकित की मौत 2010 में हुई थी और उसकी बहन मेनका (11 साल) की मौत पिछले महीने हुई। इनके पिता दिनेश कुमार के लिए यह कितना दर्दनाक होगा, यह सोचकर ही रूह कांप जाती है।
'मेरे दोनों बच्चे नहीं रहे, मैं बेबस हूं...'
दिनेश कुमार कहते हैं कि मैंने डॉक्टरों से कहा कि मैं अपना घर-बार, सबकुछ बेच दूंगा लेकिन बस मेरे बच्चों की जान बचा लें। मेरे दोनों बच्चे नहीं रहे, मैं बेबस हूं...।
45 साल के दिनेश साउथ दिल्ली के मदनपुर खादर में रहते हैं। वहां गलियों में बच्चे ठहरे हुए पानी के पास खेलते रहते हैं। डेंगू के बाद भी वहां कोई खास साफ सफाई या छिड़काव नहीं किया गया है।
'डॉक्टरों ने कहा था, बच्ची को दूसरे हॉस्पिटल ले जाओ'
दिनेश ने बताया कि पिछले महीने जब बच्ची बीमार थी तब हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने उसे कहा कि वे बच्ची को किसी दूसरे हॉस्पिटल में ले जाएं। दो दिन बाद बच्ची की मौत हो गई। कुमार ने कहा कि दोनों ही बच्चों के लिए मैंने डॉक्टरों से गिड़गिड़ा कर कहा था कि ट्रीटमेंट में देरी न करें। मेडिकल रिकॉर्ड्स के मुताबिक, बच्ची की मौत हार्ट अटैक से हुई।
पांच साल पहले डेंगू के चलते बेटे को खो दिया था...
दिनेश कुमार का 11 साल का बेटा पांच साल पहले इसी बीमारी से गुजर गया था। उसे भी एक हॉस्पिटल से दूसरे ले जाना पड़ा था। जहां बच्चे की मौत हुई थी, परिवार का कहना है कि वहां ढंग से ट्रीटमेंट होने के लिए वह घंटों इंतजार करते रहे।
डेंगू टेस्ट के ज्यादा पैसे नहीं वसूल पाएंगे डॉक्टर
चार किस्म के विषाणुओं के लिए कैसे एक बने टीका
डेंगू को लेकर अब हुई सरकार सख्त और सतर्क...
डेंगू पीड़ित दो बच्चों के दिल्ली के कई हॉस्पिटल्स द्वारा इलाज से इंकार करने के बाद हुई मौतों ने पूरे देश में रोष पैदा किया। दक्षिणी दिल्ली में इनमें से बच्चे के माता पिता ने बिल्डिंग से कूद कर जान दे दी। इसके बाद सरकार पर जबरदस्त दबाव पड़ा कि वह पिछले पांच सालों में सबसे अधिक घातक तरीके से फैल रहे डेंगू के मामलों और हॉस्पिटल्स के रवैये पर गौर करे।
सरकार ने हॉस्पिटल्स को चेताया है कि उनका लाइसेंस रद्द किया जा सकता है यदि वे डेंगू के पेशंट्स को भर्ती करने से इंकार करेंगे। राज्य सरकार के हॉस्पिटल्स में सीएम अरविंद केजरीवाल और कई मंत्रियों ने औचक दौरे किए। लेकिन अब भी हॉस्पिटल्स में पेशंट्स ज्यादा हैं और उन्हें अटेंड करने के लिए डॉक्टर कम।
अक्टूबर में हालात और बिगड़ने के आसार हैं। अब तक 1900 केस सामने आ चुके हैं।
'मेरे दोनों बच्चे नहीं रहे, मैं बेबस हूं...'
दिनेश कुमार कहते हैं कि मैंने डॉक्टरों से कहा कि मैं अपना घर-बार, सबकुछ बेच दूंगा लेकिन बस मेरे बच्चों की जान बचा लें। मेरे दोनों बच्चे नहीं रहे, मैं बेबस हूं...।
45 साल के दिनेश साउथ दिल्ली के मदनपुर खादर में रहते हैं। वहां गलियों में बच्चे ठहरे हुए पानी के पास खेलते रहते हैं। डेंगू के बाद भी वहां कोई खास साफ सफाई या छिड़काव नहीं किया गया है।
'डॉक्टरों ने कहा था, बच्ची को दूसरे हॉस्पिटल ले जाओ'
दिनेश ने बताया कि पिछले महीने जब बच्ची बीमार थी तब हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने उसे कहा कि वे बच्ची को किसी दूसरे हॉस्पिटल में ले जाएं। दो दिन बाद बच्ची की मौत हो गई। कुमार ने कहा कि दोनों ही बच्चों के लिए मैंने डॉक्टरों से गिड़गिड़ा कर कहा था कि ट्रीटमेंट में देरी न करें। मेडिकल रिकॉर्ड्स के मुताबिक, बच्ची की मौत हार्ट अटैक से हुई।
पांच साल पहले डेंगू के चलते बेटे को खो दिया था...
दिनेश कुमार का 11 साल का बेटा पांच साल पहले इसी बीमारी से गुजर गया था। उसे भी एक हॉस्पिटल से दूसरे ले जाना पड़ा था। जहां बच्चे की मौत हुई थी, परिवार का कहना है कि वहां ढंग से ट्रीटमेंट होने के लिए वह घंटों इंतजार करते रहे।
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सरकार ने हॉस्पिटल्स को चेताया है कि उनका लाइसेंस रद्द किया जा सकता है यदि वे डेंगू के पेशंट्स को भर्ती करने से इंकार करेंगे। राज्य सरकार के हॉस्पिटल्स में सीएम अरविंद केजरीवाल और कई मंत्रियों ने औचक दौरे किए। लेकिन अब भी हॉस्पिटल्स में पेशंट्स ज्यादा हैं और उन्हें अटेंड करने के लिए डॉक्टर कम।
अक्टूबर में हालात और बिगड़ने के आसार हैं। अब तक 1900 केस सामने आ चुके हैं।
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