यह ख़बर 22 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

धारावी की लड़कियों का कमाल, खुद बना रही हैं एप्स

मुंबई:

मुंबई- धारावी की झुग्गी में रविवार शाम सुस्ती का माहौल देखते ही बनता है, लेकिन अलसाते लोग और खेलते बच्चों के बीच पानी आने की खबर से अफरातफरी मचती है। हंडियां, बाल्टियां लेकर पानी लेने दौड़ती भीड़ के बीच एक क्लासरूम में बारह लड़कियां अपने कम्प्यूटर शिक्षक के साथ अभ्यास में मश्गूल हैं।

कम्प्यूटर सीखकर यह लड़कियां सोशल मीडिया पर वक्त जाया नहीं कर रहीं। ये ऐसे ऐप बना रही हैं, जो बाहर पानी के नल पर बनी भीड़ की भगदड़ कम कर सकते हैं, या पानी की लाइन पर बनते झगड़े रोक सकते हैं।

इस ऐप का नाम जल ही जीवन रखा गया है। 11 साल की फौजिया अंसारी ने बताया, इस ऐप से पानी आने के समय लोगों को नोटिफ़िकेशन आ सकते हैं। मोहल्ले के कई लोग अगर एक इस ऐप पर गुट बनाकर सदस्य बनते हैं, तो पानी आने से पहले अपनी बारी का टोकन फोन पर सहेज सकते हैं, जिससे ऐन वक्त पर क़तार को लेकर बनते झगड़े रुक सकते हैं।

ऐसा ही एक ऐप महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाया है, जिसमें चार विकल्प हैं। पहले विकल्प में एक बटन दबाकर अलार्म बजता है, जिससे मनचलों को महिलाएं डरा सकती हैं। अगर फिर भी खतरा हो, तो दूसरे विकल्प का बटन दबाकर एक साथ पांच लोगों को एसएमएस भेज कर आगाह किया जा सकता है। दूसरे दो विकल्पों में एक फोन कॉल और नक्शे पर मोबाइल का ठिकाना भेजा जा सकता है।

इस ऐप को बनाती सपना नौवीं कक्षा की छात्रा है। वह महिलाओं के साथ बढ़ते अपराधों से वाकिफ है और कहती है कि यह ऐप इलाक़े की उन महिलाओं के काम आएगा, जिन्हें धारावी की अंधेरी गलियों या सड़कों से अकेले गुजरना पड़ता है।

सबसे खास बात है कि इन लड़कियों ने कम्प्यूटर बस एक साल पहले देखे थे। इन्हें कम्प्यूटर सिखाने वाले टीचर हैं, नवनीत रंजन, जो एक डॉक्यूमेंट्री बनाने धारावी में आए थे। डॉक्यूमेंट्री बनाते हुए उन्हें ऐसी महिलाएं दिखीं, जो ख़ुद रोज़गार के लिए लैपटॉप के बैग सिलती थीं या घरेलू काम करने जाती थीं। इनकी इच्छा थी कि इनके बच्चों को बेहतर अवसर मिलें।

नवनीत रंजन ने एनडीटीवी से कहा, इन बच्चियों ने तीन-तीन हफ्तों का एक कोर्स किया, जिसके बाद इन्हें ऑनलाइन ऐप डेवलपमेंट सिखाया गया। ऐप्स के विषय इन्होंने बैठकर चुने और कोडिंग-प्रोग्रामिंग जैसी चीजें अपने-आप की।

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भारत की झुग्गियों में जहां 2014 के अंत में भी शिक्षा और पोषण ही बुनियादी मुद्दे हैं, वहां इन लड़कियों ने अपनी समस्याओं से जूझने के लिए तकनीक का रास्ता पकड़ा है। इनमें दिखती हौसले की चमक न सिर्फ़ इनके अभिभावकों-शिक्षकों के जज़्बे की बानगी है, बल्कि मोबाइल तकनीक की पहुंच की भी, जो शायद कई सरकारी योजनाओं की पहुंच और खुद सरकारी इच्छाशक्ति से मीलों आगे है।