वाशिंगटन:
डेंगू ने पूरे देश में हाहाकार मचा रखा है। कहीं अस्पतालों में बेड नहीं होने की खबरें आ रही हैं तो कहीं सही इलाज और दवा के आभाव में सैंकडों लोगों की जान चली गई है। लेकिन इससे भी डराने वाली खबर ये है कि अगले साल डेंगू महामारी बन सकता है। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि उच्च तापमान की वजह से अगले साल दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में डेंगू के मामलों में तेजी आएगी।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि डेंगू महामारी (की संभावना) अल नीनो मौसम परिघटना से तापमान में वृद्धि से जुड़ी है। ये निष्कर्ष बिल्कुल समय पर आए हैं, क्योंकि प्रशांत क्षेत्र में पिछले करीब दो दशकों में सबसे प्रबल अल नीनो उभर रहा है।
इससे चिंता पैदा हो गयी है कि दक्षिणपूर्व एशियाई देशों में डेंगू के मामलों में बड़ी वृद्धि होगी। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि 1997 और 1998 में ऐतिहासिक रूप से सबसे प्रबल अल नीनो परिघटना के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया के आठ देशों में डेंगू के मामलों में वृद्धि हुई।
फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेरेक कम्मिंग्स ने कहा, 'डेंगू हर साल इस उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों पर असर डालता है, हालांकि साल दर साल के हिसाब से उनके मामले घटते बढ़ते हैं।'
कम्मिंग्स ने कहा, 'सालों के दौरान बड़े पैमाने पर मामले आने पर बड़ी संख्या में लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराने की जरूरत पड़ती है और स्वास्थ्य व्यवस्था छोटी पड़ जाती है।' यह अध्ययन पत्रिका पीएनएस में प्रकाशित हुआ है।
अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि डेंगू महामारी (की संभावना) अल नीनो मौसम परिघटना से तापमान में वृद्धि से जुड़ी है। ये निष्कर्ष बिल्कुल समय पर आए हैं, क्योंकि प्रशांत क्षेत्र में पिछले करीब दो दशकों में सबसे प्रबल अल नीनो उभर रहा है।
इससे चिंता पैदा हो गयी है कि दक्षिणपूर्व एशियाई देशों में डेंगू के मामलों में बड़ी वृद्धि होगी। अनुसंधानकर्ताओं ने कहा कि 1997 और 1998 में ऐतिहासिक रूप से सबसे प्रबल अल नीनो परिघटना के दौरान दक्षिण पूर्व एशिया के आठ देशों में डेंगू के मामलों में वृद्धि हुई।
फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डेरेक कम्मिंग्स ने कहा, 'डेंगू हर साल इस उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोगों पर असर डालता है, हालांकि साल दर साल के हिसाब से उनके मामले घटते बढ़ते हैं।'
कम्मिंग्स ने कहा, 'सालों के दौरान बड़े पैमाने पर मामले आने पर बड़ी संख्या में लोगों को अस्पतालों में भर्ती कराने की जरूरत पड़ती है और स्वास्थ्य व्यवस्था छोटी पड़ जाती है।' यह अध्ययन पत्रिका पीएनएस में प्रकाशित हुआ है।
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