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This Article is From Jul 18, 2014

दिल्ली में सरकार गठन पर खींचातानी : बेकरार बीजेपी, बौखलाई आम आदमी पार्टी

दिल्ली में सरकार गठन पर खींचातानी : बेकरार बीजेपी, बौखलाई आम आदमी पार्टी
नई दिल्ली:

दिल्ली में राजनीतिक सरगर्मी चरम पर है, और अगर सूत्रों की मानें तो सरकार बनाने के लिए बीजेपी की कांग्रेस के छह विधायकों से अंदरखाना बातचीत भी हो चुकी है। दरअसल, बातचीत महीनेभर से चल रही थी, लेकिन अब मीडिया में ख़बरें आ जाने से आरोप-प्रत्यारोप और सियासी साजिशों का दौर भी शुरू हो गया है। एक बीजेपी विधायक का यह भी कहना है कि सब कुछ लगभग साफ हो चुका है, और अब तो बस आलाकमान से हरी झंडी मिलने का इंतज़ार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विदेश यात्रा पर होने के चलते दूसरे सभी बड़े नेता इस सियासी घटनाक्रम पर बातचीत करने से कतरा रहे थे, लेकिन अब उम्मीद है कि बीजेपी सोमवार तक सरकार बनाने या चुनाव में जाने के बारे में बड़ा फैसला ले ले। उधर, कांग्रेस के विधायक मोहम्मद आसिफ ने भी यह दावा कर सियासी हलकों में हलचल मचा दी कि आम आदमी पार्टी भी विधायकों की खरीद-फरोख्त के जरिये सरकार बनाने का प्रयास कर रही है और उन्हें 'आप' सरकार को समर्थन देने के बदले कैबिनेट मंत्री का दर्जा देने की पेशकश की गई थी।

बीजेपी का दिल्ली में मुख्यमंत्री कौन
कहावत है, "सूत न कपास, जुलाहों में लट्ठम-लट्ठा...", और कुछ इसी तर्ज पर बीजेपी में इस वक्त मुख्यमंत्री पद को लेकर खींचतान चल रही है। सूत्रों के मुताबिक अगर दिल्ली में बीजेपी की सरकार बनती है तो पार्टी के वरिष्ठ नेता जगदीश मुखी मुख्यमंत्री हो सकते हैं, लेकिन एनसीपी से बीजेपी में शामिल हुए रामवीर सिंह विधूड़ी भी मुख्यमंत्री पद की दावेदारी जता रहे हैं। माना जाता है कि बीजेपी दरअसल रामवीर सिंह विधूड़ी के माध्यम से ही कांग्रेस से टूटकर आने वाले छह विधायकों के संपर्क में है। खुद रामवीर सिंह विधूड़ी कहते हैं कि फिलहाल किसी का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए सामने नहीं है, और अगर सरकार बनती है तो पहले विधायक दल का नेता चुना जाएगा, और तभी कोई उपराज्यपाल के यहां दावा पेश कर सकता है। लेकिन दूसरी ओर, उनका दावा इसलिए कमजोर माना जा रहा है, क्योंकि वह दल बदलकर बीजेपी में शामिल हुए हैं, और ऐसे में उनके नाम पर आरएसएस राजी हो जाए, इसकी संभावना बहुत कम है।

बेकरार बीजेपी, बौखलाई आम आदमी पार्टी
चुनाव में जाने को लेकर दिल्ली में बीजेपी का मनोबल कमजोर हुआ है, और इसी के चलते वह सरकार बनाना चाहती है, ऐसा होने की स्थिति में ज़्यादा मुश्किलें आम आदमी पार्टी की बढ़ेंगी, और इसीलिए 'आप' किसी भी कीमत पर उनकी सरकार नहीं बनने देना चाहती। एक ही घंटे में कई-कई ट्वीट कर यह दावा करना कि बीजेपी 20-20 करोड़ रुपये में कांग्रेस विधायकों को खरीद रही है, अरविंद केजरीवाल की छटपटाहट को दर्शाता है। लोकसभा चुनाव में करारी हार का मुंह देख चुकी आम आदमी पार्टी को डर है कि अगर बीजेपी पांच साल के लिए सरकार बना लेती है तो उनके लिए अपनी ही पार्टी के विधायकों और कार्यकर्ताओं को एकजुट रखना भी बहुत बड़ी चुनौती साबित होगा। खुद आम आदमी पार्टी के विधायक राजेश गर्ग ही कई बार कह चुके हैं कि 'आप' को सरकार बनाने की पहल करनी चाहिए, क्योंकि किसी भी पार्टी का विधायक इतनी जल्दी चुनाव में नहीं जाना चाहता। और आम आदमी पार्टी इसी के चलते कांग्रेस से भी ज़्यादा मुखर होकर बीजेपी पर विधायकों की खरीद-फरोख्त और उपराज्यपाल पर पक्षपात के आरोप लगा रही है।

पोस्टरों से गंदी होती राजनीति
सरकार बनाने की कवायद तेज होते ही दिल्ली की दीवारों पर पोस्टर लगाकर राजनीतिक गंदगी फैलाने का दौर भी शुरू हो चुका है। यह 'पोस्टर वार' बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच चल रही है। पहले 49 दिन के काम की तुलना का पोस्टर लगाया गया, फिर विधायकों की खरीद-फरोख्त के आरोप वाला पोस्टर चिपकाया गया। और अब बीजेपी को मुस्लिम विधायकों के समर्थन की सुगबुगाहट होते ही धर्म को आधार बनाकर पोस्टर छपवाने का सिलसिला शुरू हो गया है। कांग्रेस के विधायक मोहम्मद आसिफ कहते हैं कि जब आम आदमी पार्टी ने अपनी सरकार नहीं बनते देखी तो मुस्लिम विधायकों के इलाकों में मुसलमानों को भड़काने वाले पोस्टर लगवाने शुरू कर दिए। वैसे, दिल्ली पुलिस ने इस तरह के पोस्टर लगाने वाले कुछ लोगों को हिरासत में भी लिया है।

दिल्ली में तीन साल तक चल सकता है राष्ट्रपति शासन
संविधान विशेषज्ञ एसके शर्मा के मुताबिक दूसरे राज्यों में अगर कानून के मुताबिक सरकार न चल रही हो तो अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता है, लेकिन दिल्ली एनसीटी एक्ट से शासित होती है, जिसकी धारा 50 में लिखा है कि दिल्ली में राष्ट्रपति शासन अधिकतम एक साल की अवधि के लिए लग सकता है। इसमें यह भी लिखा है कि अगर संसद चाहे तो प्रस्ताव पारित करके इसकी अवधि दो साल और बढा सकती है। यानि, दिल्ली में अधिकतम तीन साल तक के लिए ही राष्ट्रपति शासन लग सकता है। दूसरी तरफ संविधान यह भी कहता है कि उपराज्यपाल का कर्तव्य है कि राज्य में चुनी हुई सरकार बने। अब अगर किसी पार्टी का नेता बहुमत का दावा पेश करता है, तब यह उपराज्यपाल पर है कि वह उन्हें आमंत्रित करते हैं या नहीं।

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