दिल्ली के प्लास्टिक किंग कहे जानेवाले और करोड़ों की संपत्ति के मालिक भंवरलाल दोशी अहमदाबाद में एक कार्यक्रम में सब कुछ त्यागकर जैन संत बन गए हैं। उन्होंने अपने गुरु गुणरत्न सूरीश्वरजी महाराज से एक भव्य कार्यक्रम में दीक्षा ली। इस मौके पर उनका पूरा परिवार और गौतम अदानी जैसे बड़े उद्योगपती भी मौजूद रहे।
मूलत: राजस्थान के रहने वाले भंवरलाल दोशी ने कड़ी मेहनत से दिल्ली में अपना प्लास्टिक और उससे जुड़ी वस्तुओं का बड़ा कारोबार विकसित किया था और पहनने से लेकर फिल्म देखने तक के शौकीन रहे। उनके अपने बच्चे भी हैं।
उनकी पत्नी मधु बेन कहती हैं कि वह हमेशा से समाज से जुड़े साधु संतों से मिलते रहे हैं और पिछले कुछ समय से उनमें संन्यास लेने की तीव्र इच्छा जगी थी। पिछले करीब 3-4 सालों से परिवार में इस संबंध में चर्चा हो रही थी और उनके बेटे हर बार उन्हें बहला फूसला कर दूसरे रास्ते पर ले जाने की कोशिश करते थे। लेकिन पिछले साल नवम्बर महीने में उन्होंने ये घोषणा कर दी कि वो संन्यास ले लेंगे। उनके गुरु दिल्ली नहीं आ सकते थे इसलिए उन्होंने ही दीक्षा लेने के लिये अहमदाबाद चुना क्योंकि यहां पर भी जैन धर्म से जुड़े बहुत से लोग रहते हैं।
और अहमदाबाद में तीन दिन तक बड़े ही भव्य कार्यक्रम होते रहे। करोड़ों खर्च करके एक जहाज बनाया गया था जिसका नाम भी संयम जहाज रखा था। इस पर सवार हो तीन दिनों तक अलग-अलग जुलूस निकलते रहे और रविवार को इसी के पंडाल में 1 लाख लोगों की उपस्थिती में उन्होंने संन्यास ले लिया और भंवरलाल दोषी से उनका नामकरण कर दिया गया भव्यरत्न विजय।
परिवार के लिये ये बेहद दुविधा की घड़ी रही। एक तरफ इतने लोग उनकी जय जयकार कर रहे थे और उनके पिता उनसे दूर हो रहे थे। संन्यास लेने के बाद भी उनकी पत्नी मिली उनसे, लेकिन उनका कहना है कि उन्हें एक क्षण भी उनके प्रति परिवार का कोइ भाव हो ऐसा नहीं लगा। वो जैसे समाज के किसी आम व्यक्ति से मिले हों ऐसा ही उनका व्यवहार रहा।
लेखक रॉबिन शर्मा की एक किताब है मोंक हू सोल्ड हिज फरारी। भंवरलाल से भव्यरत्न विजय तक की कहानी भी उससे कुछ कम रोचक नहीं है। हालांकि एक चर्चा ये भी रही की जब साधु बन रहे हैं तो करोड़ों का खर्चा कर दिखावा क्यों?
मूलत: राजस्थान के रहने वाले भंवरलाल दोशी ने कड़ी मेहनत से दिल्ली में अपना प्लास्टिक और उससे जुड़ी वस्तुओं का बड़ा कारोबार विकसित किया था और पहनने से लेकर फिल्म देखने तक के शौकीन रहे। उनके अपने बच्चे भी हैं।
उनकी पत्नी मधु बेन कहती हैं कि वह हमेशा से समाज से जुड़े साधु संतों से मिलते रहे हैं और पिछले कुछ समय से उनमें संन्यास लेने की तीव्र इच्छा जगी थी। पिछले करीब 3-4 सालों से परिवार में इस संबंध में चर्चा हो रही थी और उनके बेटे हर बार उन्हें बहला फूसला कर दूसरे रास्ते पर ले जाने की कोशिश करते थे। लेकिन पिछले साल नवम्बर महीने में उन्होंने ये घोषणा कर दी कि वो संन्यास ले लेंगे। उनके गुरु दिल्ली नहीं आ सकते थे इसलिए उन्होंने ही दीक्षा लेने के लिये अहमदाबाद चुना क्योंकि यहां पर भी जैन धर्म से जुड़े बहुत से लोग रहते हैं।
और अहमदाबाद में तीन दिन तक बड़े ही भव्य कार्यक्रम होते रहे। करोड़ों खर्च करके एक जहाज बनाया गया था जिसका नाम भी संयम जहाज रखा था। इस पर सवार हो तीन दिनों तक अलग-अलग जुलूस निकलते रहे और रविवार को इसी के पंडाल में 1 लाख लोगों की उपस्थिती में उन्होंने संन्यास ले लिया और भंवरलाल दोषी से उनका नामकरण कर दिया गया भव्यरत्न विजय।
परिवार के लिये ये बेहद दुविधा की घड़ी रही। एक तरफ इतने लोग उनकी जय जयकार कर रहे थे और उनके पिता उनसे दूर हो रहे थे। संन्यास लेने के बाद भी उनकी पत्नी मिली उनसे, लेकिन उनका कहना है कि उन्हें एक क्षण भी उनके प्रति परिवार का कोइ भाव हो ऐसा नहीं लगा। वो जैसे समाज के किसी आम व्यक्ति से मिले हों ऐसा ही उनका व्यवहार रहा।
लेखक रॉबिन शर्मा की एक किताब है मोंक हू सोल्ड हिज फरारी। भंवरलाल से भव्यरत्न विजय तक की कहानी भी उससे कुछ कम रोचक नहीं है। हालांकि एक चर्चा ये भी रही की जब साधु बन रहे हैं तो करोड़ों का खर्चा कर दिखावा क्यों?
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