भारत का बेटा होने पर गर्व- दलाई लामा के प्रणय रॉय को दिए इंटरव्यू की मुख्य बातें  

तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि उन्हें इस बात पर गर्व है कि वे मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से भारत के बेटे हैं. उन्होंने कहा कि पचास साल से ज्यादा समय से यह शरीर भारत के 'दाल चावल' पर चल रहा है.

भारत का बेटा होने पर गर्व- दलाई लामा के प्रणय रॉय को दिए इंटरव्यू की मुख्य बातें  

नई दिल्ली:

तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने कहा कि उन्हें इस बात पर गर्व है कि वे मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से भारत के बेटे हैं. उन्होंने कहा कि पचास साल से ज्यादा समय से यह शरीर भारत के 'दाल चावल' पर चल रहा है. दलाई लामा ने अपने 85वें जन्मदिन से पहले  एनडीटीवी के प्रणय राय के साथ विशेष बातचीत में ये बातें कहीं. दलाई लामा ने आध्यात्म से जुड़े सवालों का जवाब दिया और कहा कि "आध्यात्मिक रूप से भारत हमारा घर है और लोकतांत्रिक देश है." 

उन्होंने बातचीत में कहा, "मेरे दिमाग और दिमाग के हर हिस्से में भारतीय विचार समाहित हैं. बौद्ध विचार, भारतीय है, भारतीय परंपरा है. मेरा मानना है कि 50 साल से भी अधिक समय से यह शरीर भारत की दाल और चावल पर चल रहा है. इसलिए शारीरिक और मानसिक तौर पर मेरा यह विचार है कि मैं भारत का बेटा हूं. मुझे वाकई में इस पर गर्व होता है."

कर्म के बारे में बताएं, 2020 में भूकंप, वायरस और ऐसी कई चीजें हुईं, क्या यह सामूहिक कर्म है जो नकारात्मक है?
हां, लोगों का समूह है, कुछ नकारात्मक कर्म हैं. चूंकि हमारे कर्म का सृजन हम खुद करते हैं, इसलिए अंतत: हमारे पास कर्म को बदलने का अवसर है. मुझे लगता है कि कुछ आलसी लोग हैं, जो बिना बहुत ज्यादा प्रयास किए सिर्फ कर्म, कर्म, कर्म कहकर चिल्लाते हैं. 

किस तरह से कर्म को बदला जा सकता है? कैसे एक व्यक्ति नकरात्मक कर्म को सकारात्मक कर्म में बदल सकता है?
उदाहरण के तौर पर, कुछ नकारात्मक कर्म गुस्से या हिंसा की वजह से होते हैं. ऐसे में जितना ज्यादा हो सके दया और क्षमा जैसी गतिविधियों को बढ़ाना चाहिए. ये अच्छे कर्म नकारात्मक कर्म को घटाते हैं क्योंकि आप देखते सकते हैं कि कर्म एक भावनात्मक क्रिया है. इसलिए नकारात्मक क्रियाकलापों से कुछ नकारात्मक कर्मों का सृजन होता है. नकारात्मक क्रियाकलापों के कारण सृजित कर्म ज्यादा समय से परिणाम नहीं देते हैं. 

एक बात जो आप हमेशा कहते हैं कि महिला नेतृत्वकर्ता बेहतर होती हैं? वास्तव में इस महामारी का जिन नेताओं ने सबसे बेहतर तरीके से प्रबंधन किया है, वे महिला नेता हैं?
इतिहास देखिए. सभी हीरो. हीरो से मतलब वे जिन्होंने दूसरों का मारा. वो ज्यादातर हीरो पुरुष ही हैं. अब कुछ वैज्ञानिकों के मुताबिक, महिलाओं की शारीरिक स्थितियां हैं जो उन्हें दूसरों के प्रति अधिक प्यार और दया दिखाने वाला बनाती हैं. सबसे पहले, हमारी मां एक महिला है. मेरे अपने मामले में, मेरे पिता जल्दी गुस्सा करने वालों में (शॉर्ट टेंपर) थे. कुछ मौकों पर मुझे कुछ सजा भी मिली. मेरे पिता पोर्क के शौकीन थे. जब वह पोर्क खाते तो कुछ तेल अपनी मूंछों पर लगाते थे. कभी-कभी मैं पोर्क के कुछ टुकड़ों की उम्मीद में उनके पास बैठ जाता था. कभी-कभी मैं उनकी मूछें खींचता था और वह कभी-कभी मजाक में थप्पड़ मारते और हंसते. लेकिन मेरी मां ने कभी गुस्सा नहीं दिखाया. मैं आमतौर पर कहता हूं कि मेरी मां करुणा (दया) के बारे में मेरी पहली गुरु हैं.

आप अपनी फिटनेस और प्रतिरक्षा के स्तर का निर्माण कैसे करते हैं? 
मुझे लगता है कि मुख्य रूप से मन की शांति इसमें मदद कर सकती है. जैसा कि मैंने पहले ही चर्चा की है कि जब समस्याएं शुरू होती हैं, तो ज्यादा न सोचें, चिंता न करें, घबराये नहीं. मुझे लगता है कि यह मुख्य कारक है और फिर शारीरिक स्थिति को भी प्रभावित करता है. मैं योगाभ्यास करता हूं. मुझे लगता है कि वह भी फिट रहने और प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करने में मदद करता है.

आप हमेशा विज्ञान से जुड़े रहे हैं. क्या विज्ञान के साथ आध्यात्मिकता को जोड़ना संभव है? 
बचपन से, बहुत कम उम्र से, मुझे कुछ दिलचस्पी थी. जब भी मुझे खिलौने तो कुछ न कुछ करता था. मैं इसे खोलता था देखने के लिए कि यह कैसे काम करता है. जब 13 साल का हुआ तो एक फिल्म प्रोजेक्टर मिला. उससे कुछ रोशनी आ रही थी. इसलिए मैंने उसे खोला, यह देखने के लिए कि एक छोटी सी डायनमिक मूव कैसे लाइट प्रोड्यूस करता है. इसलिए, मुझे बचपन से कुछ दिलचस्पी है.

वायरस की वजह से बहुत सारे लोग अपने चहेतों को खो रहे हैं, यह बहुत दुख की बात है, क्या आपने कभी अपने जीवन में दुख का सामना किया?
हां, बिल्कुल. जब मेरी की मां की मौत हुई तो मुझे चिंता हुई और मैंने प्रार्थना की. फिर एक व्यक्ति, एक भिक्षु, जिन्होंने बचपन से ही मेरा ख्याल रखा, मुझे लगता है कि जब मैं 3 साल का था, तब से वह भिक्षु मेरी देखभाल कर रहे थे. 1959 में, वह भी मेरे साथ आए. मुझे साल नहीं याद जब उनकी मृत्यु हुई, मुझे वास्तव में बहुत दुख हुआ और कुछ आंसू भी आ गए. हालांकि, मृत्यु का मतलब हर चीज का अंत नहीं है.

वायरस की वजह से पूरी दुनिया में डर का माहौल है, क्या युवा रहने के दौरान आप ने कभी डर महसूस किया?
निश्चित रूप से, मेरी जिंदगी में कुछ पल ऐसे आएं जो वास्तव में बहुत-बहुत ज्यादा डराने वाले थे. एक विशेष बात, 17 मार्च 1959... 10 मार्च को पूरे ल्हासा के लोग चीन के व्यवहार के खिलाफ थे और आपने देख की, अगले हफ्ते से मैं माहौल को शांत बनाने की कोशिश में लग गया. मैं तिब्बतियों के साथ बात करता था और उन्हें शांतिपूर्ण और सतर्क रहने के लिए कहता था. दूसरी तरफ, मैंने चीनियों से भी कहा कि सैन्य ताकतों का उपयोग नहीं करना चाहिए. मैंने पूरी कोशिश की फिर असफल हो गया, कुछ नहीं हुआ. इस बीच आप नोरबुलिंगका में देखा है, जहां मैं गर्मियों के समय में रहता था, हर रात मैं बहुत से चीनी सैनिकों की आवाजाही देखता था. तो फिर मैंने कुछ पत्र भी लिखे, लेकिन इसके बाद चीन का रवैया अधिक सख्त हो गया और लगता था कि वे दबाने चाहते थे. 17 मार्च 1959 को मैंने सोचा... हमारी एक परंपरा है, स्टेट ऑरेकल के साथ चर्चा की. 17 मार्च की सुबह स्टेट ऑरेकल ने भी कहा कि जाने का समय आ गया है. उसी रात को मुझे इस ख्याल के साथ कि मैं अगला दिन देख भी पाऊंगा या नहीं नोरबुलिंगका छोड़ना पड़ा. यह रास्ता चीन के सैन्य रेजिमेंट से काफी करीब था. इसलिए जब मैं घोड़े पर था तो बिना फ्लैशलाइट जलाए बढ़ रहा था. नदी के दूसरी ओर मैंने चीनी पुलिस या चीनी सेना को देखा. मैं बहुत डर गया. हम पूरी रात चलते रहे. अगले दिन जब सूरज निकला तब मुझे ठीक लगा.  

क्या आपने कभी शांति और खुशी के बीच एक विकल्प चुनने का सामना किया है?
शांति खुशी का आधार है. इसलिए मुझे लगता है कि शांति, बाहरी शांति और मुख्य रूप से मानसिक शांति, यही खुशी और उमंग का आधार है. कोई चिंता नहीं, कोई घबराहट नहीं.

वीडियो: दलाई लामा के साथ विशेष इंटरव्यू
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