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This Article is From May 24, 2017

असम में बोडो उग्रवादियों को मार गिराने वाला एनकाउंटर फर्जी था : सीआरपीएफ आईजी

रजनीश राय ने अपनी 13 पेज की रिपोर्ट, जिसे NDTV ने देखा है, में कहा है, "सीआरपीएफ की आधिकारिक रिपोर्ट सुरक्षाबलों के संयुक्त ऑपरेशन की काल्पनिक कथा पेश करती है, ताकि दो लोगों की हिरासत में रखकर की गई सोची-समझी हत्या पर पर्दा डाला जा सके, और उसे बहादुरी से हासिल की गई उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत करती है..."

असम में बोडो उग्रवादियों को मार गिराने वाला एनकाउंटर फर्जी था : सीआरपीएफ आईजी
सीआरपीएफ आईजी रजनीश राय ने अपनी रिपोर्ट में सुरक्षाबलों को फर्ज़ी मुठभेड़ का दोषी करार दिया है...
नई दिल्ली: बोडो के जिन दो उग्रवादियों को असम के चिरांग जिले में सुरक्षाबलों द्वारा इसी साल मार्च में मुठभेड़ के दौरान मार गिराए जाने की ख़बरें आई थीं, उन्हें दरअसल पहले पकड़ा गया था, और फिर उनकी हत्या की गई थी. यह बात शीर्ष अर्द्धसैनिक अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में सरकार को बताई है. अधिकारी ने इस मौतों को 'सोची-समझी हत्याएं' करार देते हुए इस मामले की स्वतंत्र जांच कराने की सिफारिश भी की है.

रिपोर्ट तैयार करने वाले रजनीश राय केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के महानिरीक्षक (आईजी) हैं, और असम तथा पूर्वोत्तर भारत के अन्य क्षेत्रों में उग्रवाद-विरोधी बल के प्रभारी हैं.

घटना के आधिकारिक वर्णन के मुताबिक, 30 मार्च को एक संयुक्त ऑपरेशन के वक्त पुलिस पर चार-पांच लोगों ने अंधाधुंध फायरिंग करना शुरू कर दिया था. पुलिस का दावा था कि इसी मुठभेड़ में नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड (सॉन्गबिजित) के दो संदिग्ध उग्रवादी मारे गए. मारे गए उग्रवादियों के पास से हथियार तथा गोला-बारूद भी बरामद किया गया था.

----- ----- वीडियो रिपोर्ट ----- -----
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लेकिन अब, रजनीश राय ने अपनी 13 पेज की रिपोर्ट, जिसे NDTV ने देखा है, में कहा है कि पुलिस की इस कहानी में बहुत-सी खामियां हैं. उनकी रिपोर्ट कई सबूतों के अलावा उन गवाहों के बयानों पर आधारित है, जिन्होंने घटना से काफी वक्त पहले सुरक्षाबलों को इन दो उग्रवादियों को किसी अन्य गांव से उठाते देखने का दावा किया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि सुरक्षाबलों को उनके कब्ज़े से सिर्फ एक चीन-निर्मित ग्रेनेड मिला था, और शेष सभी हथियार 'प्लान्ट' किए गए थे.

रजनीश राय ने लिखा, "सीआरपीएफ की आधिकारिक रिपोर्ट सुरक्षाबलों के संयुक्त ऑपरेशन की काल्पनिक कथा पेश करती है, ताकि दो लोगों की हिरासत में रखकर की गई सोची-समझी हत्या पर पर्दा डाला जा सके, और उसे बहादुरी से हासिल की गई उपलब्धि के रूप में प्रस्तुत करती है..."

सीआरपीएफ के आईजी रजनीश राय के मुताबिक हिरासत में की गई हत्याओं को 'मानवाधिकारों के नृशंसतम उल्लंघनों में से एक' करार देते हुए कहा कि हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की पारिवारिक तथा सामाजिक पृष्ठभूमि का कोई महत्व नहीं है, क्योंकि 'निर्मम से निर्मम अपराधियों तथा कट्टर आतंकवादियों / उग्रवादियों को भी कानून की सही और उचित प्रक्रिया से गुज़ारा जाना चाहिए...'

रिपोर्ट में कहा गया है, "सुरक्षाबलों को समाज के फायदे की आड़ लेकर सोच-समझकर उनकी हत्या कर देने का हक नहीं है... इसलिए उग्रवाद से लड़ते हुए सामाजिक हितों तथा व्यक्तिगत मानवाधिकारों के बीच सही संतुलन बनाए रखना बेहद अहम है...."

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