फाइल फोटो
हैदराबाद:
सीपीएम का महासम्मेलन आज से हैदराबाद में शुरू हो रहा है. हर चौथे साल होने वाले पार्टी के महासम्मेलन को पार्टी कांग्रेस कहा जाता है. पार्टी कांग्रेस सीपीएम की सबसे बड़ी निर्णायक समिति है, जिसमें देश भर के प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं. पार्टी कांग्रेस में राजनीतिक प्रस्ताव पर बहस के साथ-साथ पार्टी की संगठनात्मक रिपोर्ट पर भी चर्चा की जायेगी. सीपीएम इस वक्त अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है. पार्टी की त्रिपुरा में करारी हार के बाद केरल में ही सरकार बची है और ऐसे में उसे अपने वजूद को बचाने के लिए आगे का रास्ता तय करना है.
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पार्टी में सूत्रों ने बताया कि बुधवार से शुरु हो रहे सम्मेलन में यह महत्वपूर्ण रहेगा कि कांग्रेस के साथ किसी तरह की समझ बनाने के लिए पार्टी क्या रणनीति बनायेगी. राजनीतिक प्रस्ताव में सीपीएम ने बीजेपी को पहले राजनीतिक शत्रु माना है और कहा है, "मोदी सरकार के करीब 4 साल के अनुभव को देखते हुए यह ज़रूरी हो जाता है कि भाजपा की सरकार को शिकस्त दी जाये, ताकि हिंदुत्ववादी साम्प्रदायिक ताकतों को अलग-थलग किया जा सके और जनविरोधी आर्थिक नीतियों को पलटा जा सके."
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सीपीएम ने जहां अपने राजनीतिक प्रस्ताव में कहा है कि भाजपा विरोधी वोट की एकता को अधिकतम करने के लिये समुचित चुनावी कार्यनीति अपनायी जानी चाहिये वहीं वह कांग्रेस से किसी गठजोड़ के पक्ष में नहीं है. पार्टी का राजनीतिक प्रस्ताव कहता है कि मुख्य काम बीजेपी को हराना है लेकिन साथ में ये भी लिखा है कि ये काम "कांग्रेस पार्टी के साथ कोई समझदारी या चुनावी गठबंधन किये बिना करना होगा."
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कांग्रेस के साथ चुनावी गठजोड़ या तालमेल को लेकर पार्टी के भीतर काफी घमासान हो चुका है. जहां केरल के कॉमरेडों का खेमा वरिष्ठ नेता प्रकाश करात की अगुवाई में कांग्रेस के साथ किसी तरह के गठजोड़ के खिलाफ है. वहीं, वर्तमान महासचिव सीताराम येचुरी और बंगाल के कई नेता रणनीतिक रूप से कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल या समझ बनाने की बात करते हैं. लेकिन पार्टी की आखिरी लाइन क्या होगी वह इस महासम्मेलन के बाद पता चलेगा.
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पार्टी में सूत्रों ने बताया कि बुधवार से शुरु हो रहे सम्मेलन में यह महत्वपूर्ण रहेगा कि कांग्रेस के साथ किसी तरह की समझ बनाने के लिए पार्टी क्या रणनीति बनायेगी. राजनीतिक प्रस्ताव में सीपीएम ने बीजेपी को पहले राजनीतिक शत्रु माना है और कहा है, "मोदी सरकार के करीब 4 साल के अनुभव को देखते हुए यह ज़रूरी हो जाता है कि भाजपा की सरकार को शिकस्त दी जाये, ताकि हिंदुत्ववादी साम्प्रदायिक ताकतों को अलग-थलग किया जा सके और जनविरोधी आर्थिक नीतियों को पलटा जा सके."
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