
नई दिल्ली:
प्लास्टिक की बोतल में मिलने वाली दवाइयां आपके लिये खतरनाक हो सकती हैं। यह बात सरकार की ओर से कराए गए एक लैब टेस्ट में ही सामने आई है। फिर सरकार के ड्रग टैक्निकल एडवाइज़री बोर्ड यानी डीटीएबी ने भी इस जांच पर मुहर लगाई। एडवाइज़री बोर्ड ने पिछले महीने सरकार से कहा था कि कोई भी दवा निर्माता मुंह से दी जानी वाली दवाओं के लिये - जिसमें बच्चों को दी जाने वाली दवाओं के अलावा जेनेरिक, गर्भवती और रिप्रोडक्टिव एज ग्रुप की महिलाओं के लिये बनी दवा हों - उसके लिए प्लास्टिक के कंटेनर का इस्तेमाल नहीं करेगा।
अपनी रिपोर्ट में बोर्ड ने यह भी कहा कि जो भी निर्माता इसका उल्लंघन करेगा उस पर ड्रग और कॉस्मेटिक एक्ट - 1940 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन इन लैब टेस्ट और अपने ही एडवाइज़री बोर्ड की इस राय के खिलाफ स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसी साल मार्च में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी में हलफनामा दाखिल किया। सरकार ने लैब टेस्ट की रिपोर्ट आने के बाद एक पूर्व ब्यूरोक्रेट एम के भान की अगुवाई में उच्च स्तरीय कमेटी बनाई जिसमें लैब टेस्ट को अपर्याप्त बताया गया है।
सरकार की कमेटी कुछ और कहती है
ऑल इंडिया इंस्ट्टिट्यट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ (AIIH&PH) ने अपनी जांच में कहा था कि प्लास्टिक की बोतलों में बिक रही दवाओं में लैड, एंटीमनी और क्रोमियम जैसे भारी तत्व मिल रहे हैं जो स्वास्थ्य के लिये खतरनाक हैं। जबकि सरकार की ओर से NGT के सामने भान कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर इस जांच को अपर्याप्त बताया गया। हालांकि भान कमेटी की ओर से पूछे गए सवालों के जवाब में AIIH&PH ने जवाब दिए और भान कमेटी की आपत्तियों को खारिज किया। सरकार ने एनजीटी के आगे जो हलफनामा दिया है उसमें सिर्फ लैब टेस्ट को अपर्याप्त कहा गया है। जांच की रिपोर्ट एनजीटी के सामने नहीं रखी गई है।
असल में प्लास्टिक की बोतलों में दवाइयों का विवाद 2013 से चल रहा है। 2014 में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर ने भी प्लास्टिक बोतलों में दी जाने वाली दवा में खतरनाक तत्व होने की बात कही है। साथ ही कहा था कि गर्भवती महिलाओं और बच्चों को ये दवाएं न दी जायें। तो सवाल उठता है कि क्या सरकार प्लास्टिक बनाने वाली कंपनियों के दबाव में है क्योंकि पैकिजिंग के मामले में ये कंपनियां पिछले दो साल से सरकार के किसी भी प्रस्तावित बैन का विरोध कर रही हैं।
अपनी रिपोर्ट में बोर्ड ने यह भी कहा कि जो भी निर्माता इसका उल्लंघन करेगा उस पर ड्रग और कॉस्मेटिक एक्ट - 1940 के तहत कार्रवाई की जा सकती है। लेकिन इन लैब टेस्ट और अपने ही एडवाइज़री बोर्ड की इस राय के खिलाफ स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसी साल मार्च में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी में हलफनामा दाखिल किया। सरकार ने लैब टेस्ट की रिपोर्ट आने के बाद एक पूर्व ब्यूरोक्रेट एम के भान की अगुवाई में उच्च स्तरीय कमेटी बनाई जिसमें लैब टेस्ट को अपर्याप्त बताया गया है।
सरकार की कमेटी कुछ और कहती है
ऑल इंडिया इंस्ट्टिट्यट ऑफ हाइजीन एंड पब्लिक हेल्थ (AIIH&PH) ने अपनी जांच में कहा था कि प्लास्टिक की बोतलों में बिक रही दवाओं में लैड, एंटीमनी और क्रोमियम जैसे भारी तत्व मिल रहे हैं जो स्वास्थ्य के लिये खतरनाक हैं। जबकि सरकार की ओर से NGT के सामने भान कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर इस जांच को अपर्याप्त बताया गया। हालांकि भान कमेटी की ओर से पूछे गए सवालों के जवाब में AIIH&PH ने जवाब दिए और भान कमेटी की आपत्तियों को खारिज किया। सरकार ने एनजीटी के आगे जो हलफनामा दिया है उसमें सिर्फ लैब टेस्ट को अपर्याप्त कहा गया है। जांच की रिपोर्ट एनजीटी के सामने नहीं रखी गई है।
असल में प्लास्टिक की बोतलों में दवाइयों का विवाद 2013 से चल रहा है। 2014 में इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च यानी आईसीएमआर ने भी प्लास्टिक बोतलों में दी जाने वाली दवा में खतरनाक तत्व होने की बात कही है। साथ ही कहा था कि गर्भवती महिलाओं और बच्चों को ये दवाएं न दी जायें। तो सवाल उठता है कि क्या सरकार प्लास्टिक बनाने वाली कंपनियों के दबाव में है क्योंकि पैकिजिंग के मामले में ये कंपनियां पिछले दो साल से सरकार के किसी भी प्रस्तावित बैन का विरोध कर रही हैं।
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